मुंबई, निर्देशक विष्णु वरदान की फिल्म ''शेरशाह'' का आज फर्स्ट लुक सामने आ गया है. इस फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा अडवाणी मुख्य भूमिका में नजर आने वाले है. यह फिल्म कैप्टन विक्रम बत्रा की
मुंबई, निर्देशक विष्णु वरदान की फिल्म ‘शेरशाह’ का आज फर्स्ट लुक सामने आ गया है. इस फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा अडवाणी मुख्य भूमिका में नजर आने वाले है. यह फिल्म कैप्टन विक्रम बत्रा की जीवन पर आधरित है. यह फिल्म 3 जुलाई 2020 रिलीज होने वाली है. विष्णु वरदान के निर्देशन में बन रही इस फिल्म में सिद्धार्थ कैप्टन विक्रम बत्रा के किरदार में नजर आने वाले है. आइये जानते है आखिर कौन है कैप्टन विक्रम बत्रा.
कैप्टन विक्रम बत्रा भारतीय सेना के एक अधिकारी थे. जिन्होंने कारगिल युद्ध में अपना वीरता का परिचय दिया और शहीद हो गए. विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को पालमपुर में हुआ. विक्रम और विशाल दोनों जुड़वाँ भाई थे और दोनों के जन्म में महज 15 मिनट का ही अंतर था. विक्रम की शुरुआती पढ़ाई पालमपुर के ही सेंट्रल स्कूल में हुई थी, जबकि बाद की पढ़ाई उन्होंने सेना की छावनी में स्थित स्कूल से पूरी की. उसी वक्त उनके मन में फौजी बनने की ललक जगी थी. पढ़ाई के साथ विक्रम खेल में भी अव्वल थे. उसके बाद विक्रम कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के लिए वह चंडीगढ़ चले गए थे.
चंडीगढ़ से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद विक्रम बत्रा ने इंडियन मिलिट्री एकेडमी में दाखिला लिया. यहाँ उन्होंने कड़ी मेहनत कि और एक लेफ्टिनेंट के तौर पर वह भारतीय सेना के कमीशंड ऑफिसर बने. उसके बाद उन्होंने कारगिल युद्ध में 13 जम्मू एवं कश्मीर राइफल्स का नेतृत्व किया. कारगिल युद्ध में उन्होंने अपनी वीरता का प्रदर्शन किया. इस महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से अगस्त 1999 को सम्मानित किया गया.
विक्रम बत्रा ने युद्ध पर जाने से पहले कहा था कि "या तो मैं तिरंगे को लहराकर आऊंगा या फिर तिरंगे में लिपटकर, लेकिन मुझे यकीन हैं, मैं आऊंगा जरूर". उन्हाेंने जाे कहा था वाे कर दिखाया था. 20 जून 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा ने कारगिल की प्वाइंट 5140 से दुश्मनों का खात्मा करने के लिए अभियान छेड़ा. कई घंटों की गोलीबारी के बाद आखिरकार विक्रम बत्रा अपने मिशन में कामयाब हो गए. इस जीत के बाद जब उनसे पूछा गया तब उन्होंने कहा, ‘ये दिल मांगे मोर,’. बस यही लाइन थी जो दुश्मनों के लिए आफत बन गई. विक्रम बत्रा दुश्मनों के लिए मुसीबत बन गए थे. एक वक्त ऐसा आया था कि पाकिस्तान के तरफ से विक्रम बत्रा के लिए कोडनेम रखा गया. यह कोडनेम कुछ और नहीं बल्कि उनका निकनेम शेरशाह था.
5140 प्वाइंट पर कब्जा करने के बाद कैप्टन बत्रा ने 7 जुलाई 1999 को 4875 प्वाइंट पर भी कब्जा करने निर्णय लिया. यह मिशन लगभग पूरा हो चुका था. लेकिन युद्ध के दौरान लेफ्टीनेंट नवीन के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गए थे. उस वक्त कैप्टन विक्रम बत्रा लेफ्टीनेंट को बचाने के लिए पीछे घसीट रहे थे. तभी दुश्मनों ने उनपर गोलिया चलाई और वे ‘जय माता दी’ कहते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए.