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रंगमंच की दिग्गज हस्ती और विख्यात ड्रामा टीचर इब्राहिम अल्काजी का मंगलवार दोपहर को निधन हो गया। वह 94 वर्ष के थे।

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नयी दिल्ली. रंगमंच की दिग्गज हस्ती और विख्यात ड्रामा टीचर इब्राहिम अल्काजी का मंगलवार दोपहर को निधन हो गया। वह 94 वर्ष के थे। अल्काजी के बेटे ने बताया कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा था।अल्काजी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में सबसे लंबे समय तक निदेशक के पद पर रहे। उन्होंने गिरीश कर्नाड के ‘तुगलक’, धर्मवीर भारती के ‘अंधायुग’ जैसे लोकप्रिय नाटकों का निर्माण किया।

अल्काजी के परिवार में बेटे फैसल अल्काजी और बेटी अमाल अलाना है। दोनों जाने-माने नाट्य निर्देशक हैं। फैसल अल्काजी ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘’ दिल के तेज दौरे के बाद आज दो बजकर 45 मिनट पर मेरे पिता का निधन हो गया। उन्हें परसों एस्कॉर्ट अस्पताल में भर्ती किया गया था।” नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी जैसे बड़े कलाकारों को अभिनय की बारीकियां सिखाने वाले अल्काजी कुछ दिनों से बीमार थे। अल्काजी का अंतिम संस्कार बुधवार को किया जाएगा।

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) के, 1962 से लेकर 1977 तक निदेशक रहे अल्काजी के लिए श्रद्धांजलि का तांता लग गया। लोग उन्हें ‘भारतीय आधुनिक रंगमंच के जनक’ कह कर अपनी श्रद्धांजलि दे रहे हैं। एनएसडी के प्रभारी निदेशक सुरेश शर्मा ने कहा, ‘‘ वह भारतीय आधुनिक रंगमंच के जनक थे। हम भारतीय रंगमंच को जिस रूप में जानते हैं, उसकी स्थापना उन्होंने ही की। उन्होंने न केवल रंगमंच में प्रशिक्षण के महत्व पर जोर दिया , बल्कि यदि आप देश के सभी प्रसिद्ध कलाकारों को देखेंगे तो आप पायेंगे कि उनमें से कई उनके मार्गदर्शन में ही प्रशिक्षित हुए।”

फिल्म और नाट्य कलाकार अमोल पालेकर ने कहा कि अल्काजी ‘सच्चे पुनर्जागरण व्यक्ति’ ‘अंतिम रोमन’ थे। पालेकर के गुरु सत्यदेव दुबे को अल्काजी ने ही अभिनय का प्रशिक्षण दिया था। नसीरूद्दीन शाह ने कहा, ‘‘मुझ जैसे कई लोगों ने इन अजेय ज्ञानवान व्यक्ति से रंगमंच के प्रति जुनून सीखा। रंगमंच में सटीकता और नाट्य कार्य के हर पहलू में उनकी अनुशासन की भावना का कोई सानी नहीं थी।” रंगमंच के क्षेत्र में योगदान को लेकर अल्काजी को 1966 में पद्म श्री, 1991 में पद्मभूषण और 2010 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उन्हें 1962 में ‘निर्देशन’ के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भी मिला और बाद में उन्हें रंगमंच के प्रति जीवनपर्यंत योगदान को लेकर संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप से सम्मानित किया गया। फिल्म और रंगमंच के कलाकार रघुबीर यादव ने कहा कि उन्होंने दिवंगत निदेशक से ‘अपने काम से कभी भी संतुष्ट नहीं होने’ की सीख ली।

अल्काजी के माता-पिता सऊदी अरब से थे लेकिन उनके पिता मुम्बई आ गये और पुणे में बस गये। अल्काजी नौ भाई-बहन थे। जब वह पुणे के सेंट विसेंट हाईस्कूल में पढ़ रहे थे तभी उनमें रंगमंच के प्रति रुचि पैदा हुई। वह मुम्बई के सेंट जेवियर कॉलेज में सुल्तान ‘बॉबी’ पदमसी की अंग्रेजी थियेटर कंपनी से जुड़ गये। अपने बेटे में रंगमंच के प्रति रूचि देख उनके पिता ने उन्हें लंदन जाने की सलाह दी। उन्होंने 1947 में रॉयल एकेडेमी ऑफ ड्रमेटिक आर्ट में प्रशिक्षण लिया और नाम एवं कीर्ति पायी। वह भारत लौटने के बाद थियेटर ग्रुप से फिर जुड़ गये। हालांकि अल्काजी की प्रांरभिक रुझान चित्रकारी में थी। बाद में वह रंगमंच को यथासंभव ऊंचाइयों तक ले गये।