(Photo Credits: Instagram)
(Photo Credits: Instagram)

भारतीय सिनेमा को विदेशों में कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल्स में सम्मानित किया जा चुका है. शाहरुख खान, अमिताभ बच्चन कई समेत सुप्रसिद्ध कलाकारों की विदेशों में भी बड़ी फैन फॉलोवींग है.

    Loading

    •  सिनेमा ने बढ़ाया रोजगार
    • एचडी वीडियो-डॉल्बी एटमॉस साउंड में बन रही फिल्में
    • सुपरस्टार्स की जगह कंटेंट को मिली प्राथमिकता
    • सोशल डिस्टेंसिंग के दौर में कामयाब हुआ ओटीटी
    • हर वर्ष 18 से 20 प्रतिशत की हुई प्रगति

    मुंबई: सन 1913 में दादासाहेब फाल्के ने पहली मूक फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ के साथ भारत में सिनेमा की नींव रखी. कई अड़चनों का सामना करते हुए आज 21वीं सदी तक सिनेमा का सफर आर्थिक, व्यापारिक और मनोरंजन के दृष्टिकोण से प्रगतिशील रहा है. ब्लैक एंड वाइट फिल्मों को कोसों पीछे छोड़ आज भारत अल्ट्रा हाई डेफिनिशन (4के) सिनेमा और 4डीएक्स सिनेमा के दौर में पहुंच चुका है. मशहूर फिल्मकार श्याम बेनेगल बताते हैं कि 1928 तक देश में मूक फिल्मों का ही चलन रहा और इसके बाद इसमें आवाज डालने की तकनीक ने जन्म लिया. 1937 में ‘किसान कन्या’ के साथ पहली रंगीन फिल्म बनी और देश में सिनेमा अपनी जगह बना चुका.

    टीवी से बढ़ा सिनेमा का संघर्ष

    बेनेगल ने कहा कि टीवी के आने से सिनेमा हॉल्स ने ऑडियंस खोना शुरू कर दिया. लोगों को घर बैठे मनोरंजन मिलने लगा. यहां से टीवी लोगों के घर का एक जरूरी हिस्सा बन गया. ब्लॉकबस्टर फिल्मों ने कलाकारों को सुपरस्टार का दर्जा दिलाया.

    सिंगल स्क्रीन से मल्टीप्लेक्स का सफर

    Preparations for Unlock 3 begin, cinema hall and gym may get approval: sources
    Representational Pic

    पूर्व सेंसर बोर्ड अध्यक्ष पहलाज निहलानी बताते हैं कि राजश्री प्रोडक्शन्स ने 1994 में ‘हम आपके हैं कौन’ के साथ लक्जरी और सिनेमेटिक अनुभव को संवारा. जितने सिंगल सिनेमाज थे उनमें बदलाव की पहल की और उसे आगे बढ़ाया जिसके बाद 1997 से मल्टीप्लेक्स की शुरुआत हुई. पहले हर प्रकार की सिनेमा के लिए अलग स्क्रीन होते थे लेकिन आज मल्टीप्लेक्स का दौर है. सिनेमाघर अब तकनीकी रूप से सुविधाओं से लैस हैं.

    शूटिंग स्टूडियो ने पाया वजूद

    आनंद रूंगटा (Photo Credits: Instagram)

    मुंबई में आज 8 से भी ज्यादा बड़े शूटिंग स्टूडियोज मौजूद हैं जिसमें नितिन देसाई स्टूडियो से लेकर यशराज स्टूडियोज समेत अन्य नाम शामिल हैं. फेमस स्टूडियोज के एमडी अनंत रूंगटा ने इस बाबत कहा कि पहले के जमाने में शूटिंग सेट्स बेहद साधारण ढ़ंग से तैयार किए जाते थे. सन 1990 से लेकर 2000 की शुरुआत तक नेगेटिव पर काम होता था. इसके बाद डिजिटल कैमरों की शुरुआत हुई जिससे कम समय में ज्यादा फिल्मों पर काम किया जाने लगा. आज हमारे पास डॉल्बी एटमॉस साउंड टेक्नोलॉजी है जिसने एक्शन से लेकर हर प्रकार की फिल्मों को सिनेमाघर में देखने के अनुभव को बेहतर बनाया है.

    कोरोना काल में फला-फूला ओटीटी

    OTT Platforms पर जल्द रिलीज होने वाली कुछ बेस्ट फिल्में | Best upcoming movies on OTT in India

    2020 में कोरोना महामारी ने ओटीटी के मार्ग प्रशस्त किए क्योंकि ये ‘एंटरटेनमेंट एट होम’ की सुविधा देता है. फिल्म प्रोड्यूसर गिरीश जौहर कहते हैं कि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर जो बढ़ोतरी 3 या 4 साल में होनी थी वो महज 10 से 12 महीने में देखने को मिली. निहलानी ने कहा कि ओटीटी रिलीज में विशेष मार्केटिंग पर ज्यादा पैसे खर्च करने नहीं पड़ रहे हैं. रूंगटा ने भी सहमती जताते हुए कहा कि ओटीटी के साथ ही वीडियो ऑन डिमांड (वीओडी) की शुरुआत हुई जिसमें हम मोबाइल पर ही नहीं बल्कि अपने समयानुसार टीवी, कंप्यूटर, टेबलेट और अन्य उपकरणों पर फिल्में देख ऑनलाइन व ऑफलाइन डाउनलोड कर सकते हैं.

    सितारों की राय…

    वेटेरन एक्ट्रेस पद्मिनी कोल्हापुरी ने कहा, “जब से मैंने काम शुरू किया तब से अब तक सिनेमा काफी बदला है, आज हम वेब सीरीज के दौर में हैं जहां कई बेहतरीन विषयों पर फिल्में बन रही हैं. आज दर्शकों की विचारधारा भी बदल गई है जिसे ध्यान में रखते हुए फिल्में बनाई जा रही हैं. कई प्रेरनातक हस्तियों की बायोपिक बनाई जा रही है जोकि अच्छी बात है. सिनेमा के साथ महिलाओं ने भी बड़ी तरक्की की है क्योंकि आज वो अपने काम और घर को बखूबी संभाल रही हैं.”

    पंकज त्रिपाठी 

     

     
     
     
     
     
    View this post on Instagram
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     

    A post shared by Pankaj Tripathi (@pankajtripathi)

     

    बीते कई वर्षों में रूढ़िवादी विषयों को सिनेमा ने चर्चा में लेकर हमारी विचारधारा को प्रगतिशील बनाया. आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बर्लिन, वेनिस और बाहर के फिल्म फेस्टिवल में हमारे सिनेमा को सम्मान मिल रहा है जिसे पता चलता है कि भारत का कलात्मक मानचित्र बढ़ा है. सिनेमा समाज बनाता है और समाज देश का निर्माण करता है. नवभारत के पाठकों को मेरी ओर से स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं. 

    चंकी पांडे

     
     
     
     
     
    View this post on Instagram
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     

    A post shared by Chunky Panday (@chunkypanday)

    मैंने जब 1887 में सिनेमा में शुरुआत की थी तब वीचएस होती थी. लोगों को लगा था फिल्म इंडस्ट्री को नुकसान सहना होगा लेकीन ये और बढ़ती चली गई. इसके बाद सीडी फिर टीवी…इस तरह से मनोरंजन के माध्यम बढ़ते चले गए. मेरा मानना है की सिनेमा थिएटर का दायरा बढ़ा है क्योंकि फिल्मों को दर्शकों का भरपूर प्यार मिला. सिनेमा सर्वश्रेष्ठ है और इसका मनोरंजन पाने के लिए खर्च भी कम लगता है. इसलिए इसका चलन कभी खत्म नहीं होगा.

    शंकर महादेवन

     
     
     
     
     
    View this post on Instagram
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     

    A post shared by Shankar Mahadevan (@shankar.mahadevan)

    सिनेमा के माध्यम बड़े तेजी से बदले हैं. पहले फिल्मों में स्टार को बड़ा महत्त्व दिया जाता था. लेकिन अब ऐसा नहीं है, अब कंटेंट किंग बन चूका है. कहानी में दम है तो कलाकार भी हिट है. अब दुनियाभर के लोग एक-दूसरे के देशों की फिल्में देख रहे हैं जिसके चलते अब इसका दायरा भी बढ़ा है. संगीत के लिहाज से बात करें तो अब रीमिक्स कल्चर बढ़ा है. लेकीन आज भी अच्छा संगीत खत्म नहीं हुआ है बस उसे थोड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है.

    अपारशक्ति खुराना

     
     
     
     
     
    View this post on Instagram
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     

    A post shared by Aparshakti Khurana (@aparshakti_khurana)

    सिनेमा बनाने की कला में तो बदलाव आया ही है साथ ही दर्शकों के कारण इसकी कहानियों में भी बदलाव आया. ऑडियंस फिल्मों में नयापन चाहती है. पहले फिल्मों में डांस नंबर्स और बड़ी स्टारकास्ट उसे हिट बनाने में कारगार साबित होती थी लेकिन अब अगर फिल्म की कहानी प्रभावशाली है तो वो हिट है. दर्शकों के कारण अब सिनेमा भी तेजी से बदल रहा है.

    संजय मिश्रा

     
     
     
     
     
    View this post on Instagram
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     

    A post shared by Sanjay Mishra (@imsanjaimishra)

    सिनेमा में बड़े पैमाने पर बदलाव देखने को मिला है. तकनीकी तरक्की के चलते अब कम समय में ज्यादा फिल्में बनाई जा रही हैं. सिनेमा पर डिजिटल मीडियम जैसे कि ओटीटी और इससे जुड़ी चीजों का बड़ा प्रभाव देखने को मिला. सबसे महत्वपूर्ण ये कि सिनेमा को लेकर अब दर्शकों की पसंद बदली है जिसके चलते कंटेंट में बदलाव आया है. ऑडियंस अब नई कहानी देखना चाहती हैं जिस वजह से अलग-अलग प्रकार की फिल्में दर्शकों के लिए पेश की जा रही हैं.

    दिव्यांका त्रिपाठी

     
     
     
     
     
    View this post on Instagram
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     

    A post shared by Divyanka Tripathi Dahiya (@divyankatripathidahiya)

    भारत में सिनेमा की शुरुआत से लेकर अब तक प्रोडक्शन और तकनीकी रूप से कई बदलाव आए लेकिन कोविड-19 की चुनौतियों के बाद इसने नया मोड़ लिया. आज सिनेमा की रूप-रेखा ही बदल चुकी है. कई फिल्में थिएटर के लिए बनी थी लेकिन आज उसे हम डिजिटल ऐप्स (ओटीटी) पर घर बैठे देख रहे हैं. कहानियों को लेकर ऑडियंस का स्वाद बदला है. पहले सिनेमा सितारों के दम पर बिकता था लेकिन अब ये अपनी कहानी और कलाकार के दम पर प्रशंसा बटोरता है. अब कई सारी वीमेन ओरिएंटेड फिल्में भी बन रही हैं. हालांकि मेकर्स को अब इस तरह की फिल्मों में नए चेहरों को भी तवज्जो देना चाहिए.

    सौम्या टंडन

     
     
     
     
     
    View this post on Instagram
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     

    A post shared by Saumya Tandon (@saumyas_world_)

    सिनेमा के साथ उसे देखने वाले लोग अब बदल गए हैं. थिएटर और टीवी के बाद अब ओटीटी के आगमन से कंटेंट का स्तर बढ़ा है. अब सिर्फ बांद्रा से लेकर जुहू तक के मेकर्स ही फिल्में नहीं बना रहे बल्कि विभिन्न क्षेत्रों से आनेवाले फिल्मकार, लेखक और अन्य प्रतिभाओं को अवसर मिला है जिनके काम को ऑडियंस ने सराहा भी है. पहले फिल्मों में विदेशी लोकेशन और स्विटजरलैंड की वादियां ज्यादा दिखाई जाती थी लेकिन आज की बड़ी बजट की फिल्मों में हमारे देश के छोटे शहर और गांव दिखाई देते हैं, ये बात मध्यम वर्गीय दर्शकों के दिलों को छू रही है.