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    Lata Mangeshkar remembers her singing journey that started 7 decades ago: अपने नए गीत ‘ठीक नहीं लगता’ के साथ एक बार फिर सुरों का जादू बिखेर रहीं लता मंगेशकर का कहना है कि सात दशक पहले जिस छोटी सी लड़की ने पेशेवर गायकी की शुरुआत की थी, वह आज भी उनके भीतर है। पिछले महीने ही मंगेशकर का एक नया गीत ‘ठीक नहीं लगता’ जारी किया गया, जिसके बोल गुलजार ने लिखे हैं। इस गीत को धुन देने वाले फिल्मकार विशाल भारद्वाज ने किसी फिल्म के लिए इसे लिखा था, लेकिन वह फिल्म बन नहीं पाई।ऐसा माना जा रहा था कि रिकॉर्ड किया गया यह गीत खो गया है लेकिन भारद्वाज ने हाल में उसे ढूंढ निकाला और इसे जारी करने के लिए मंगेशकर की अनुमति मांगी।

    मंगेशकर ने मुंबई से फोन पर पीटीआई-भाषा को दिए साक्षात्कार में अपने लंबे करियर को याद किया। उन्होंने कहा, “विशालजी ने मुझे बताया कि गाना मिल गया है और उन्होंने पूछा कि क्या इसे जारी किया जा सकता है। मैंने कहा,‘मुझे इसमें का आपत्ति हो सकती है? यह इतना सुंदर गीत है। आपको इसे जारी करना चाहिए।’ उन्होंने गुलजार साहब को भी इस गीत के बारे में बताया। उन्होंने फिर से इसे मिक्स किया और इस तरह गाना जारी किया गया।”

    मंगेशकर 28 सितंबर को 92 वर्ष की हो गईं। उन्होंने अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए कहा, “एक लंबा सफर मेरे साथ है और वह छोटी बच्ची आज भी मेरे साथ है। वह कहीं नहीं गई। कुछ लोग मुझे ‘सरस्वती’ कहते हैं और कहते हैं कि मेरे ऊपर उनकी कृपा है। मेरा मानना है कि मेरे ऊपर मेरे माता-पिता, हमारे देवता मंगेश, साई बाबा और भगवान की कृपा है।” उन्होंने कहा, “यह उनकी कृपा है कि मैं जो भी गाती हूं, लोग वह पसंद करते हैं। अन्यथा मैं कौन हूं? मैं कुछ भी नहीं हूं। मुझसे बेहतर गायक हुए हैं और उनमें से कुछ आज हमारे साथ नहीं हैं। आज मैं जो कुछ भी हूं, उसके लिए मैं भगवान और अपने माता-पिता की आभारी हूं।”गुलजार, मंगेशकर के पसंदीदा गीतकार रहे हैं। मंगेशकर ने कहा कि “किनारा” फिल्म में गुलजार द्वारा लिखे गए गीत “नाम गुम जाएगा” की पंक्ति “मेरी आवाज ही पहचान है” संगीत की दुनिया में उनकी (मंगेशकर) पहचान बन गई और उनके प्रशंसक भी यह मानते हैं।

     

     
     
     
     
     
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    अब तक विभिन्न भाषाओं में 25 हजार से ज्यादा गाने गा चुकीं मंगेशकर कहती हैं कि उन्हें वह दिन याद है जब उन्होंने इस गीत की रिकॉर्डिंग की थी। मंगेशकर ने कहा कि उन्हें देशभर की विभिन्न शैलियों और भाषाओं का संगीत पसंद है। उन्होंने कहा, “मुझे नहीं पता लोग जानते हैं या नहीं, लेकिन मुझे संगीत की दक्षिण भारतीय शैली पसंद है। मुझे बांग्ला संगीत और वे बंगाली गाने पसंद हैं जो मैंने गाए हैं। हिंदी संगीत भी है, गुजराती भी है। मैंने सभी भाषाओं में गाया है।” उन्होंने शंकर जयकिशन, मदन मोहन, जयदेव, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, एस डी बर्मन, नौशाद और आर डी बर्मन से लेकर रहमान तक हर पीढ़ी के संगीतकारों को याद किया, जिनके साथ वह काम कर चुकी हैं।