मुंबई : ‘सत्या’ (Satya) का भीखू म्हात्रे (Bhikhu Mhatre), ‘शूल’ (Shool) का समर प्रताप सिंह (Samar Pratap Singh), ‘पिंजर’ का रशीद, ‘राजनीति’ का वीरेंद्र प्रताप उर्फ वीरू, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर-1′ का सरदार खान- ये सब उन किरदारों के नाम हैं। जिन्हें पर्दे पर अभिनेता मनोज बाजपेयी ने जिया और अपने अभिनय और संवाद अदायगी से अमर कर दिया। हर फिल्म के साथ उनके किरदारों के नाम बच्चे-बच्चे की जबान पर चढ़ गए, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि एक वक्त ऐसा भी था जब दिग्गज अभिनेता को खुद अपना नाम पसंद नहीं था और वह इसे बदलना चाहते थे।
मनोज बाजपेयी की हाल में आई जीवनी ‘कुछ पाने की जिद’ में अभिनेता के अपना नाम बदलने की चाहत के किस्से का जिक्र है। दरअसल, वो अपना नाम काफी अरसे तक पसंद नहीं था और वह इसे बदलने की वजह जो वह बताते हैं, वह भी बड़ी रोचक है। मनोज बाजपेयी ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘मनोज नाम बिहार में बहुत कॉमन है। मनोज टायरवाला, मनोज भुजियावाला, मनोज मीटवाला और ना जाने क्या-क्या। ऐसे बहुत सारे मनोज आपको मिलेंगे बिहार में। मैंने ये सोचा था कि मैं अपना नाम बदलूंगा। मैंने अपने लिए एक नया नाम भी सोच लिया था। ये नाम था समर।
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थिएटर के जमाने में नाम बदलने के बारे में सोचा तो सबने कहा कि एक एफिडेविट बनवाना पड़ेगा। अखबार में विज्ञापन देने होंगे। यह सब कानूनी प्रक्रिया थी। उस वक्त पैसे नहीं थे तो ये कार्यक्रम स्थगित हो गया। फिर मैने सोचा कि जब मैं कमाऊंगा, तब नाम बदल लूंगा। बैंडिट क्वीन के लिए जब धन मिला तो सोचा कि अब नाम बदलता हूं, लेकिन तब मेरे भाई ने कहा कि यार आप कमाल करते हो। आपकी पहली फिल्म देखेंगे लोग तो मनोज बाजपेयी और बाद में कुछ और नाम? तो मैंने सोचा कि अब जो हो गया, बॉस हो गया।’ बाजपेयी ने अपना नाम तो नहीं बदला, लेकिन अपनी पसंद के नाम ‘समर’ को उन्होंने फिल्म ‘शूल’ में अपने पात्र के नाम में इस्तेमाल किया।
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फिल्म में उनका नाम समर प्रताप सिंह था। ‘कुछ पाने की जिद’ लिखने वाले पीयूष पांडे कहते हैं कि मनोज बाजपेयी अभिनेता हैं और ऐसे में उनके बारे में काफी कुछ सार्वजनिक मंच पर उपलब्ध रहता है, लेकिन उसमें से काफी कुछ भ्रामक और असत्य भी रहता है। उनके मुताबिक, ‘इस जीवनी के जरिये मैंने अभिनेता के जीवन से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने का एक प्रयास किया है और उनसे जुड़े कुछ अनकहे किस्सों और घटनाओं को सिलसिलेवार तरीके से पिरोने की कोशिश की है।’ कई राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फिल्म फेयर पुरस्कार जीत चुके बाजपेयी भले ही फिल्मी पर्दे पर शुरुआती दिनों से ही ‘इन्टेंस’ किरदार निभाते वक्त, लंबे-लंबे संवाद कुशलता से बोलते दिखाई देते हों, लेकिन स्कूल के दिनों में वो अपने दिल की बात एक लड़की को नहीं बता सके थे।
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‘पेंगुइन बुक्स’ द्वारा प्रकाशित किताब में पीयूष ने लिखा है, ‘…उन्हें ये इश्क किसी लड़की से नहीं बल्कि उसके रोल नंबर से हुआ था। जब-जब क्लास में रोल नंबर 44 पुकारा जाता, और क्लास में प्रजेन्ट सर की आवाज गूंजती तो मनोज बाजपेयी के चेहरे पर एक अबूझ सी मुस्कुराहट तैर जाती, जिसे अंग्रेजी में ‘ब्लश’ करना कहा जाता है। क्लास के लड़कों के बीच अपनी-अपनी पसंद की लड़की का ‘बंटवारा’ बिना लड़की की जानकारी के रोल नंबर के हिसाब से हो चुका था।
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इस अनकही मुहब्बत के चलते यार-दोस्तों ने मनोज बाजपेयी को ‘फोर्टीफोरवा’ बुलाना शुरू कर दिया।’ छोटे पर्दे यानी टीवी धारावाहिक ‘स्वाभिमान’ से अपने करियर की शुरुआत करने वाले मनोज बाजपेयी ने बड़े पर्दे पर छोटे-बड़े हर किरदार को शिद्दत से अपनाया और एक अलग छाप छोड़ी। यही नहीं, वेब सीरीज का दौर शुरू हुआ तो ‘फैमिली मैन’ बनकर उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया कि मंच कोई भी हो अपने अभिनय से वो दर्शकों को अपना मुरीद बना ही लेंगे। (एजेंसी)