The Kashmir Files
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    मुंबई : शिवसेना सांसद (Shiv Sena MP) संजय राउत (Sanjay Raut) ने रविवार (Sunday) को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर गुजरात (Gujarat) और राजस्थान (Rajasthan) के आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ का प्रचार करने का आरोप लगाया। उन्होंने यह भी कहा कि फिल्म में कई ‘कड़वी सच्चाइयों’ को दबाने का प्रयास किया गया है। संजय राउत ने शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में अपने साप्ताहिक कॉलम ‘रोकटोक’ में लिखा कि कश्मीर में विस्थापित कश्मीरी पंडितों की वापसी सुनिश्चित करना भाजपा का वादा था, लेकिन अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बावजूद ऐसा नहीं हुआ है।

    शिवसेना सांसद ने जानना चाहा कि यह किसकी नाकामी है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘द कश्मीर फाइल्स’ का मुख्य प्रचारक भी करार दिया। भाजपा पर निशाना साधते हुए संजय राउत ने सवाल किया कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) को भारत में शामिल करने के पार्टी के वादे का क्या हुआ। विवेक अग्निहोत्री द्वारा लिखित और निर्देशित ‘द कश्मीर फाइल्स’ पाकिस्तान समर्थित आतंकियों की ओर से समुदाय के लोगों की सुनियोजित हत्याओं के बाद कश्मीर से समुदाय के पलायन को दर्शाती है। 11 मार्च को रिलीज के बाद से इस फिल्म को लेकर राजनीतिक दलों में बहस छिड़ गई है।

    चुनाव जीतने का प्रयास किया जा रहा है

    मध्य प्रदेश और गुजरात सहित भाजपा शासित कई राज्यों ने इसे कर मुक्त घोषित कर दिया है। संजय राउत ने कहा, ‘कश्मीर से हिंदू पंडितों के पलायन, उनकी हत्याओं, उन पर किए गए अत्याचारों और उनके गुस्से पर आधारित फिल्म परेशान करती है, लेकिन इससे भी ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि फिल्म के जरिये हिंदू-मुसलमानों को फिर से बांटने और चुनाव जीतने का प्रयास किया जा रहा है।’ राज्यसभा सदस्य ने आरोप लगाया कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ को गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों को जीतने के मकसद से प्रदर्शित किया गया है।

    कटु सत्यों को दबाने की कोशिश की गई है

    संजय राउत ने कहा कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ जैसी फिल्में बननी चाहिए, लेकिन उन्होंने आरोप लगाया कि ऐसी फिल्मों का एजेंडा अब राजनीतिक विरोधियों के बारे में नफरत और भ्रम फैलाना हो गया है। उन्होंने कहा कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ के निर्माताओं ने पहले ‘द ताशकंद फाइल्स’ का निर्माण किया था। उन्होंने आरोप लगाया कि इस फिल्म के माध्यम से यह दिखाने की कोशिश की गई थी कि पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के लिए केवल गांधी परिवार जिम्मेदार था। शिवसेना नेता ने दावा किया कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ में सच्ची घटनाओं को दिखाते हुए कई कटु सत्यों को दबाने की कोशिश की गई है।

    अधिकारी का अंगरक्षक मारा गया था

    उन्होंने कहा, ’32 साल पहले कश्मीर का माहौल न केवल कश्मीरी पंडितों के लिए, बल्कि सभी के लिए खराब था। हालांकि, कश्मीरी पंडित इससे सबसे ज्यादा प्रभावित थे।’ संजय राउत ने कहा कि कश्मीरी पंडितों के अलावा उस समय कश्मीर में मारे गए लोगों में कश्मीरी सिख और मुसलमान भी शामिल थे। उन्होंने कहा कि कश्मीर में पहली राजनीतिक हत्या अगस्त 1989 में नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता मोहम्मद यूसुफ हलवाई की हुई थी और इससे पहले पुलिस महानिरीक्षक पर हमला हुआ था, जिसमें अधिकारी का अंगरक्षक मारा गया था। राउत ने आरोप लगाया कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ में ऐसे कई सच छिपाए गए हैं। उन्होंने दावा किया कि आजादी के 43 साल बाद तक कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से भागने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ा था।

    जगमोहन उस समय कश्मीर के राज्यपाल थे

    शिवसेना नेता ने कहा कि 1990 में जब कश्मीरी पंडितों और सिखों को कश्मीर छोड़ना पड़ा, तब केंद्र में भाजपा समर्थित वी. पी. सिंह की सरकार थी। राउत ने कहा, ‘भाजपा नेता जगमोहन उस समय कश्मीर के राज्यपाल थे। ‘द कश्मीर फाइल’ उस समय ठंडे बस्ते में थी, जब घाटी में हिंदू मर रहे थे और भाग रहे थे।’ उन्होंने दावा किया कि उस समय केवल शिवसेना के दिवंगत संस्थापक बाल ठाकरे कश्मीरी पंडितों के हक की आवाज उठा रहे थे। संजय राउत ने भाजपा से सवाल किया कि मार्च 2015 में उसने पीडीपी के साथ मिलकर सरकार कैसे बनाई, ‘जिसने आतंकियों से हाथ मिलाया था।’ उन्होंने कहा, ‘इन लोगों (भाजपा) ने उस समय कश्मीरी पंडितों के विस्थापन और हत्याओं की निंदा तक नहीं की।’

    उन्हें इस हमले में अपनी जान गंवानी पड़ी

    शिवसेना नेता ने यह भी पूछा कि उस सरकार में शामिल भाजपा के मंत्री तब चुप क्यों थे, जब पीडीपी ने 2001 के संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को ‘स्वतंत्रता सेनानी’ करार दिया था और सुरक्षाबलों द्वारा आतंकी बुरहान वानी को मार गिराए जाने पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा कि बाल ठाकरे ने विस्थापित कश्मीरी पंडितों के बच्चों के लिए महाराष्ट्र में चिकित्सा और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में पांच फीसदी आरक्षण सुनिश्चित किया था, लेकिन भाजपा शासित राज्यों ने ऐसा निर्णय क्यों नहीं लिया। वर्ष 2019 के पुलवामा हमले में सीआरपीएफ के 40 जवानों की शहादत का जिक्र करते हुए राउत ने कहा कि सुरक्षाबल भले ही ‘पंडित’ नहीं थे, लेकिन यह किसकी गलती थी कि उन्हें इस हमले में अपनी जान गंवानी पड़ी। (एजेंसी)