आज है मोहम्मद रफी साहब का जन्मदिन, जानें उनके जीवन से जुड़ी दिलचस्प बातें

    Loading

    मुंबई: हिंदी सिनेमा के आवाज के बादशाह मोहम्मद रफी साहब (Mohammed Rafi) का आज यानी 24 दिसंबर को जयंती है। उनका जन्म 1924 को अमृतसर जिले के कोटा सुल्‍तान सिंह गांव में हुआ था। रफी साहब एक ऐसे गायक थे जिनकी आवाज पर हर तरह के गाने दिल छू लेते थे। फिर चाहे गाना मस्ती भरा हो या फिर दुख भरे नगमे, भजन हो या कव्वाली। रफी साहब ने करीब 28000 गानों को अपनी आवाज दी हैं। ऐसे में आज उनके जन्मदिन के मौके पर हम आपको बताते है उनसे जुड़ी कुछ खास बातें। 

    रफी साहब एक मध्यवर्गीय परिवार से थे। रफी ने बहुत ही छोटी सी उम्र में गाना शुरू किया था। तब उनकी उम्र सिर्फ सात वर्ष की थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जब रफी सात साल के थे तो उनके बड़े भाई की दुकान की यह से एक फकीर का पीछा किया करते थे। फकीर उधर से गाना गाते हुए जाया करता था। रफी को उनकी आवाज इतनी पसंद थी की वो उसकी आवाज की नकल किया करते। 

    रफी साहब को फिल्म ‘नील कमल’ का गाना ‘बाबुल की दुआएं लेती जा’ से लोगों के बीच पहचान मिली थी। इस गाने को सुनकर सितारे हो या उनके फैंस सभी रो पड़े थे। रफी साहब ने पंजाबी , उड़िया , मराठी , बंगाली , भोजपुरी, असामी , कोंकणी, पारसी, डच, स्पेनिश और इंग्लिश में भी सॉन्ग गाए थे। लेकिन क्या आपको पता है एक समय था जब रफी ने छोड़ दिया था। लेकिन निधन के कुछ समय पहले ही उन्होंने गाना रिकॉर्ड किया था।

    दरअसल रफी ने एक समय था जब मौलवियों के कहने पर गाना छोड़ दिया था। बीबीसी हिंदी ऑनलाइन के अनुसार जब मोहम्‍मद रफी अपने करियर के शिखर पर थे। तब उन्हें मौलवियों के कहने पर गाना छोड़ दिया था। लेकिन बाद में जब रफी को ये एहसास हुआ कि फ‍िल्‍मों में गाना किसी भी तरह गलत नहीं तो वह वापस चले आए।

    मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जब रफी हज करने गए थे तब मौलवियों बे कहा था कि हाजी होने के बाद गाना बजाना बंद कर देना चाहिए। इस बात की पुष्टि फिल्‍म समीक्षक प्रदीप सरदाना ने खुस उनके बेटे से की थी।