पेड से ताडी निकलते हुए (फाईल तस्वीर)
पेड से ताडी निकलते हुए (फाईल तस्वीर)

  • मगर यह भी है, एक नशा का स्त्रोत

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सिरोंचा.  सिरोंचा तहसील के अधिकांश क्षेत्रों में होली के त्यौहार के बाद से जून माह तक का समय ताडी का सीजन माना जाता है. पसंद करने वाले इससे पौष्टिकता का श्रोत मानते है. उनके मुताबिक इसके सेवन से शरीर के भीतर होने वाला मूत्र रोगों से निजात मिलता है. इसके अलावा किडनी में होने वाला पथरी के रोग में भी यह फायदेमंद है. हालांकि इसका कोई चिकत्सिकीय प्रमाण मौजूद नही है. शराब के शौकीन इसे नशा का दुसरा विकल्प भी मानते है. तहसील में ताड़ के वृक्ष बहुतायत में पाए जाते है. जिनसे इस ताडी को निकाला जाता है. ताड़ के वृक्ष से इससे निकालने का विधि भी अनोखी होती है.

जानकारों की माने तो लोग स्थानीय स्तर पर इससे देशी पेय के रूप में इसका सेवन करते है. यह उसी स्थिति में फायदेमंद होती है जब इससे वृक्ष से निकालने के बाद पिया जाए जाए. मगर कभी कभार इससे बेचने वाले इसमे कुछ नुकसानदायक तत्वों का मश्रिण करते है. ऐसे में यह नुकसानदायक होती है. इसके चाहने वालों की बड़ी तादाद के पीछे कहा जाता है कि यह देशी विदेशी शराब के अपेक्षा कम कीमत पर मिल जाती है. एवं ताजी होती है. यह देखने मे सफेद दूध सा प्रतीत होती है. कुछ एक संदर्भो पर नाबालिक भी इसका सेवन करते दिखाई पड़ते है. जो कि सही नही माना गया है. ग्रामीण क्षेत्रों में विशेषकर इसका सेवन ज्यादा होता है. जहाँ शाम ढलते ही लोग ताड़ के वृक्षों के नीचे झुंड में इकट्ठा हो कर इसका सेवन करते है. कुछ एक समुदाय विशेष के लोग ताड़ के रस को निकालने में माहिर माने जाते है. साथ ही स्थानीय स्तर पर इसका वक्रिय करना इनका पेशा माना जाता है.  

सिरोंचा तहसील कि बात कि जाए तो यहां के अधिकांश क्षेत्रों में ताड़ के वृक्षों की उपस्थिति बनी हुई है. इससे निकलने वाले फल (मुंजलु) भी पौष्टिकता का भंडार वाले माने जाते है. स्थानीय एवम ग्रामीण क्षेत्रों से लोग इसके फल को बक्रिी कर आय भी अर्जित करते है. वे ग्रामीण क्षेत्रों से इन्हें लाकर शहर में बक्रिी करते है. तहसील के रेगुंटा, कोटा-पोचमपल्ली, बामणी, झिंगानूर, आरडा, वडधम, अंकिसा क्षेत्रों में ताड़ के वृक्ष बहुतायत में पाए जाते है.

मगर इसका दूसरा पहलू यह भी है कि ताड़ी को जहाँ शरीर के लिए एनर्जी बूस्टर मानकर इसका सेवन किया जा रहा है. इसमें नाबालिक भी इसके आधीन होते जा रहे है. इस ओर ध्यान देने की जरूरत है. जानकारी के मुताबिक ग्रामीण अंचलों में प्राथमिक स्तर पर पढ़ने वाले बच्चे भी इसके आदि हो रहे है. यह चिंताजनक विषय कहा जा रहा है. वजह बतायी गयी है कि इसके सेवन से भी नशा का संचार शरीर पर होता है. जिससे कुछ एक संदर्भो पर वाद विवाद की घटनाएं हो जाती है. इसके अलावा ताड़ के वृक्ष आकार में संकरी एवं लंबे होते है. जिस पर चढ़ना आसान नही माना गया है. कभी कभार ताड़ के वृक्ष पर चढ़ते लोग दुर्घटना के शिकार भी हो जाते है. जिससे जान जाने का खतरा भी नर्मिति हो सकता है.