21 वीं सदी में भी बांस निर्मित पुलियां से ‘सफर’

  • प्रतिवर्ष जुव्वी नाले पर श्रमदान से बनता है पुल
  • कब समाप्त होगा यह 'वनवास'

Loading

गडचिरोली. पुलियां के अभाव में बरसात में अनेक गांवों का संपर्क टूटने की स्थिति जिले के दुर्गम क्षेत्र में आज भी कायम है। मात्र ऐसे कठिन स्थिति में भी हमेशा आदिवासी कोई न कोई जुगाड़ कर लेते है। इसका उदाहरण मल्लमपोडूर ग्रापं अंतर्गत देखने को मिलता है। प्रति वर्ष इस परिसर के नागील नाले पर लोगों द्वारा बांस की सहायता से अस्थायी पुलियां की निर्माण कर यातायात को सुचारु किया जाता है। आज 21 वीं सदी में भी बांस के पुलियां से उनका सफर होता है। यह विकास का ढिंढोरा पीटनेवाले सरकार व प्रशासन के लिए वास्ताविकता का आईना है।

आजादी के 7 दशक बाद भी जिले के अंतिम छोर पर बसे भामरागढ तहसील आज भी विकास से कोसों दूर है। प्रकृति ने तहसील को वनसंपदा से तहसील को सजाया है। मात्र प्रकृति की कृपा प्रतिवर्ष तहसील के दुर्गम क्षेत्र में रहनेवाले नागरिकों के लिए नये संकट लाती है। बारहमासी बहनेवाली नदी बरसात में उग्र रूप धारण करनने से नदी-नालों पर पुलियां के अभाव से इस क्षेत्र का संपर्क टूट जाता है। जिला निर्मिती के बाद गडचिरोली जिला युवावस्था में बढ रहा है, मात्र भामरागढ तहसील के अतिदुर्गम क्षेत्र गांवों की स्थिति को देखते हुए विकास के प्रति जिला वृद्ध अवस्था में ही होने की अनुभूति है। लाहेरी परिसर के मल्लमपोडूर ग्रापं अंतर्गत आनेवाले भुसेवाडा गांव के 3 किमी दूरी पर जुव्वी नाले पर पुलियां नहीं होने से बरसात में हमेशा इस गांव का संपर्क टूट जाता है। ग्रामीण स्वयं श्रमदान से इस नाले पर बांस का पुलिया का विकल्प खोज निकाला है।

स्थानीय साधनों का उपयोग

पुलियां के अभाव में टूटनेवाला संपर्क टालने के लिए मल्लमपोडूर व भुसेवाडा, कूच्चेर, प-ह्यानार, येनगुंडा, इरपणार, मुरगंल के ग्रामीणों ने श्रमदान से बांस का अस्थायी पुलियां तैयार कर लेते है का सफल प्रयोग विगत अनेक वर्षो से कर रहे है। बांस, लकडा, पत्थर, बिजली के खंबे ऐसे स्थानीय स्तर पर उपलब्ध साधनों का उपयोग कर ग्रामीणों द्वारा निर्माण किए गए  मौसमी पुलियां से एक नया आदर्श निर्माण किया है। इस अस्थायी पुलियां (रपटा) पर से साइकिल, दुपहिया बिना परेशानी पास हो जाती है। 

प्रतिवर्ष टूटता है गांवों का संपर्क 

बरसात के दिनों में जुव्वी नाले पर से पानी बहने से इस परिसर के गांवों का संपर्क टूटा रहता है। इस परिसर अंतर्गत आनेवाले मल्लमपोडून, भुसेवाडा, कुच्चेर, प-ह्यानार, ईरपणार, मुरंगल आदि 20 से 25 गांवों का समावेश है। प्रति वर्ष बरसात में यह परिस्थिति कायम होने से विगत अनेक वर्षो से इस नाले पर पुलियां की मांग हो रही है। मात्र जिला प्रशासन इसे गंभीरता से नहीं लिया और ग्रामीणों का प्रतिवर्ष श्रमदान से पुलिया बनाने का कार्य अविरत जारी है।

पुलियां निर्माण के लिए आगे आये

बरसात में जुव्वी नाले पर से यातायात करने के लिए नाव का सहारा लेना पडता है। अब शीतकाल आरंभ होनेवाला है। जिससे नाले का पानी कम हो जाता है मात्र इस नाले पर पुलियां नहीं होने से भुसेवाडा समेत परिसर के नागरिक वाहनों को नाले के पास रखकर कमर भर पानी से नाले को पार करते। इस पर उपाययोजना करते हुए ग्रामीण एकजुट होकर श्रमदान से नाले पर अस्थायी बांस के पुलियां का निर्माण किया है। इसके लिए भुसेवाडा के सरपंच अरुणा वेलादी, ग्रामसेवक अविनाश गोरे, अंगणवाडी सेविका शेवंता कुमरे, लक्कीकुमार ओक्सा, मनोहर ओक्सा, रामा ओक्सा, जगदीश पल्ले, मंगरु वड्डे आदि ने सहयोग दिया है।