परंपरागत खेती पर निर्भर दुर्गम क्षेत्र के किसान

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    • बैलों की सहायता से हल जोताई
    • सेंद्रीय खाद में उगाई फसले सेहत में फायदेमंद

    सिरोंचा. आज के 21 वीं सदी में सर्वत्र आधुनिकता की झलक दिखाई पड़ती है. विभिन्न चैन भरे उपकरण निकलने के कारण मुश्किल कार्य आसान हुए है. वहीं समय की बचत भी हो रही है. कृषि क्षेत्र में भी आधुनिकता का प्रमाण बढ़ा है. जिस कारण काफी मेहतनभरी खेती आज आसान हुई है. किंतू जिले के दुर्गम क्षेत्र में आज भी नागरिक परंपरागत खेती करते है. जिले के शहरी व कुछ सुधारित ग्रामीण अंचलों में आधुनिक खेती का चलन बढ़ गया है.

    किंतू दुर्गम व अनेक ग्रामीण अचल में परंपरागत खेती कर परंपरा बरकरार है. जिसमें जिले के दक्षिण क्षेत्र में बसे सिरोंचा तहसील का भी समावेश है. इस तहसील में आज के आधुनिक युग में भी किसान परंपरागत खेती करते है. खासकर आदिवासी बहुल क्षेत्र में परंपरागत खेती की परंपरा कायम है.

    ट्रैक्टर के युग में आज भी यहां बैलों के सहायता से जोताई कार्य किएं जाते है. साथ ही रासायनिक खाद के चलन में सेंद्रीय खाद का उपयोग होता है. खेति की उपजाऊ स्थिती को बरकरार रखने हेतु यह कार्य होता है. इससे पोषक फसल भी उत्पादित होती है. 

    जिले के अंतिम छोर पर बसा सिरोंचा तहसील पूरी तरह कृषि पर निर्भर क्षेत्र है. जहां की अधिकांश आबादी चाहे व ग्रामीण क्षेत्र हो या फिर मुख्यमार्गीय से लगा हुआ क्षेत्र हो पारंपरिक कृषि से अपनी जीवन तय करते है. इस पर निर्भर हो कर ही वे अपनी आर्थिक , सामाजिक जीवन को आगे बढ़ाते है.

    तहसील में मुख्यतः धान,कपास,मिर्च बहुतायात में निकाली जानेवाली फसलें है. इसके अलावा मूंग,मक्का, जवारी, तिल्ली एवं कुछ क्षेत्रों में सब्जी के बागान भी उगाये जाते है. आज समूचा कृषि जानलेवा रासायनिक खादों  एवं आधुनिक तकनीक के भरोसे की जाती है. वहीं तहसील में आज भी अधिकांश आबादी पारम्परिक व जैविक खादों के भरोसे खेती करते है. जिसमें पर्यावरण के अलावा मानव जीवन पर दुष्प्रभाव भी कम होने की बात कही जा रही है.

    बारिश पर निर्भर

    तहसील के सिरोंचा के इलाके कुछ देहात आधुनिक सुविधाओ से लैस है. बाकी क्षेत्र आज भी बहुत हद तक इनके मुकाबले कम सुविधाओं व पारम्परिक प्रणाली के अधिनस्त इलाके है. इनमें विशेषकर सिरकोंडा, झिंगाणूर, कोप्पेला के क्षेत्र है. जहां के अन्नदाता आज भी इंद्रदेव के भरोसे अपनी किस्मत को ताक पर रखकर खेतीकार्य कर रहे है.

    इसके अलावा इन क्षेत्रों में आज भी खेती एकल फसल प्रणाली के सिद्दांत पर ही टीकी हुई है. हालांकि इन क्षेत्रों में तालाबों का निर्माण किया हुआ है. मगर ये तालाब इतने सक्षम नही है कि वे खेतों के प्यास बुझा सके. 

    नदीयों का भंड़ार

    सिरोंचा तहसील के अधिकांश क्षेत्र नदी किनारों का इलाका है. जहां पर प्राणहिता, गोदावरी, इंद्रावती नदियों का बहाव बना हुआ है. बावजूद इसके रेगुंटा को छोड़ कर कहीं पर भी सिंचाई श्रोतों का विकास नही हो पाया है. जबकि पड़ोसी राज्य तेलंगाना आज के हालातों में बांधों के बलबूते नदी के विपरीत दिशा में जल को बहाकर सूखे नदी को भरने के लायक हो चुका है.

    इन बांधों के बलबूते जो राज्य कभी किसानों के आत्महत्याओं के मामले में देश मे विदर्भ के बाद दूसरी कड़ी में खड़ा हुआ करता था. वह आज किसान सुजलाम सुफलाम को चरितार्थ करते हुए अपनी आर्थिक व सामाजिक जीवन को मजबूती प्रदान कर रहे है. मगर तहसील के किसान आज भी इंद्रदेव के भरोसे अपनी किस्मत को आजमा रहे है.

    आज भी जारी है अदली बदली की प्रथा 

    तहसील के ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक रूप से पिछड़ेपन के विकल्प के रूप में अदला बदली की प्रथा को जीवित रखे हुए है. इसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में किसान एक दूसरे के खेतों में बिना मजदूरी के हाथ बटाते है. गांव के किसान एक दूसरे के खेतों में रोपाई,खेती से जुड़े सारे काम काज, खेतों के पारम्परिक हलों द्वारा जोताई करने में आपस मे सहयोग करते है.

    इसमें उन्हें आर्थिक बोझ से राहत, सामाजिक रिश्तों में गहराई स्थापित करने का मौका मिलता है. इस दौरान ग्रामीण खेतों में काम के बोझ को कम करने के लिए आंचलिक बोली में गीत गाते है. जो अपने आप मे एक अनोखा तरीका जान पड़ता है. ये गीत सुनने में भी मधुर व थकावट को मिठाने वाले होते है.

    पोषक अन्न उगाई 

    जहाँ आज विश्वभर में आधुनिक खेती के नाम पे धारा को विषित किया जा रहा है. भारी भारी जानलेवा विषैले रासायनिक खतों से फसलों की सींचा जा रहा है. मानवी शरीर को कमजोर किया जा रहा है. वही जिले के ग्रामीनाचलो में प्राकृतिक और पर्यावरण को संभालते हुएं ऐसी खेती की जा जाती है. जिस से मानव शरीर पर सकारात्मक परिणाम होता है.