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गडचिरोली. जिले के ‘शराबबंदी’ को लेकर कुछ दिनों से सत्ताधारी दल के राजनेता व समाजसेवकों में घमासान चल रहा है। जिले में अवैध रूप से बहती शराब की नदियों के कारण  शराबबंदी विफल होने की बात कहते हुए राजनेता शराबबंदी हटाने के लिए प्रयास कर रहे है। वहीं समाजसेवक शराबबंदी को ‘मजबूत’ बनाने के पक्ष में है। जिसके चलते शराबबंदी के लिए कार्य करनेवाले नशामुक्ति संगठन गांव गांव में जनमुहिम तेज करने में जुटे है। ऐसे में शराबबंदी के भरोसे अपना कारोबार चलानेवाले अवैध शराब बिक्रेता भी शराबबंदी के समर्थन में रहकर अप्रत्यक्ष रूप से यह ‘समाजसेवक’ बनकर अंदरूनी रुप से शराबबंदी न हटे इसके लिए प्रयास करने की चर्चा हो रही है।

आदिवासी बहुल व पिछडे समाज पर शराब का प्रतिकूल  परिणाम होने के कारण सामाजिक कार्यकर्ताओं के मांग पर गडचिरोली जिले में वर्ष 1993 में शराबबंदी लागू की गई। जिले में शराबबंदी को 27 वर्ष का काल बीत गया है। किंतु अवैध शराब कारोबारियों ने अपने पैर मजबुती से जमा लिये है जिससे जिले में शराबबंदी नाममात्र है। संपूर्ण शराबबंदी को अमली जामा देने में सरकार और प्रशासन विफल रहा है। सत्ताधारी दल के एक मंत्री व कुछ राजनीतिक पदाधिकारी जिले की शराबबंदी हटाकर सरकार के डूबते राजस्व बचाने सामने आ रहे है। जिससे चलते सरकारी स्तर पर समीक्षा समिति गठीत कर  शराबबंदी के फायदे व नुकसान की समीक्षा करने की घोषणा  राज्य के एक मंत्री ने की है। जिससे विगत कुछ दिनों से ‘शराबबंदी’ के मुद्दे को लेकर समाजसेवक व राजनेता एक दूसरे पर सवालरूपी शब्दबाण छोड़ रहे है। 

जिले में अवैध शराब बिक्री के माध्यम से करोडों कमानेवाले अवैध व्यावसायी भी शराबबंदी कायम रहने के पक्ष में अप्रत्यक्ष रूप से प्रयास कर रहे है। जिससे उनकी दूकान चलती रहे। अब जिले में ‘शराबबंदी’ का विषय जिलावासियों के लिए रोचक बनता जा रहा है। 

अन्य जिलों से उठ रही उंगली

राज्य में गडचिरोली, वर्धा व चंद्रपुर जिलों को छोड अन्य जिलों में शराबबंदी नहीं है। मात्र गडचिरोली व अन्य पाबंदीवाले जिलों में भी ‘अवैध’ शराब उसी तुलना में बिक्री होने की बात कहीं जा रही है। ऐसे में अन्य जिलों की ओर उंगली उठाते हुए राजनीतिक दल के पदाधिकारी जिले पर अन्याय जनक होने की बात कह रहे है। अन्य जिलों में शराब ‘वैध’ रूप से मिल रही है, वहीं गडचिरोली में शराब ‘अवैध’ रूप से मिल रही है. इसमें किसकी लूट हो रही है, किसका नुकसान हो रहा है, और किसका फायदा यह बात आम से लेकर ‘सुज्ञ’ लोग भी बखुबी समझते है।