अंतत: निर्मला को मिला आशियाना

  • हेल्पिंग हैन्ड्स संस्था व मित्रपरिवार ने किया प्रयास

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आलापल्ली. शालेय जीवन में होशियार व्यक्तीमत्व होनेवाली निर्मला का मानसीक संतुलन बिघडने से वह अपने बच्चों के साथ झोपडानुमा घर में जिवनयापन कर रही थी. मात्र अपने कक्षा मित्र की हुई यह अवस्था निर्मला के मित्रपरिसर को देखी न जाने से उन्होने प्रयास कर निर्मला को मदद करने का निश्चय किया. इस सामाजिक कार्य में हमेशा अग्रेसर होनेवाली हेल्पिंग हैन्ड्स इस संस्था के माध्यम से व मित्रपरिवार के प्रयास से नए पक्के मकान की निर्मिती की गई है. उनके मदद् से अनेक वर्षो से झोपडानुमा मकान में रहनेवाले निर्मला को पक्का आशियाना मिला है. जिससे उसके साथ उसके बच्चों के चेहरे खिल उठे है. 

निर्मला यह कक्षा की शांत, आज्ञाकारी व हुशार लडकी! दयनिय परिस्थिती होने के बावजूद उसने शिक्षा का दामन नहीं छोडा. सभी बच्चों के दिक्कतभरा होनेवाले गणित विषय में वह काफी होशियार थी. शिक्षा की लगन व अभ्यास में जिद्द यह उसकी पहचान थी. कक्षा 10 वीं में समुचे स्कूल से वह अव्वल आयी थी. आगे उसने अपनी क्षमता के अनुसार विज्ञान शाखा में प्रवेश लिया. मात्र उसकी तकदीर में कुछ अलग ही लिखा था. महाविद्यालयीन शिक्षा अर्जित करते समय उसे मानसिक बिमारी ने घेरा. शुरूआत में व्यापक परेशानी न होने से इस ओर अनदेखी हुई. बाद में वह लापता हुई. कुछ वर्षो बाद वह गांव में दिखाई पडी, मात्र वह पागल अवस्था में. एक छोटे से बच्चे को लेकर घुमनेवाली निर्मला वैसी हालत में दिखेगी इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. बच्चे को पल भर भी अपने नजरो से दूर न करते हुए वह घुमती रहती थी. उसका बच्चा थोडा बडा होने के बाद कुछ लोगों ने उसे स्कूल में दाखिल करने का प्रयास किया, मात्र उसका इसके विरोध था. वह बच्चा ही निर्मला का आधार व जिवयापन की वहज थी. मात्र बच्चों को बाते सिखानेवाला कोई नहीं था, मां की उंगनी थामकर वह घुमता था.

निर्मला को वैसी अवस्था में देखना उसके सहेलियों को गवारा नहीं था. उसे भोजन सामग्री व कपडे देने के अलावा कुछ विकल्प नहीं था. उसके बिमारी के चलते उसे दिए हुए वस्तूएं ज्यादा समय तक रहती भी नहीं थी. उसका पुत्र बडा हुआ. परिसर के लोगों को देख उसने भी बोलना सिखा. और उसकी परिस्थिती कुछ हद तक बदलने को प्रारंभ हुआ. मात्र उन्हे निवास की सुविधा नहीं थी. जिर्ण अवस्था में  होनेवाला उनका झोपडा मवेशियों के तबेले से भी गैरगुजरा हुआ था. निर्मला के पुत्र ने उसके सहेलियों के समख्ज्ञ अपनी व्यथा रखी. दुरदराज तक होनेवाले उसके मित्र, सहेलियों ने उसे मदद करने की तैयारी दर्शायी.मात्र मदद कैसे की जा सकती है, यह प्रश्न उनके समक्ष था. 

हेल्पींग हैन्ड्स संस्था विगत अनेक दिनों से निर्मला को छोटी-बडी मदद करता आया है. यह बात उन्हे पतां चली. हेल्पिंग हैन्ड्स संस्था यह उसके घर के मरम्मत के तैयारियों में है, यह बात पतां चलने पर सहेली व मित्रपरिवार ने उसे एक छोटासा आशियाना बनाने का निर्णय लेते हुए उसे मदद करने का निश्चित किया. इससे पूर्व भी हेल्पींग हैन्ड्स ने जरूरतमंदों को निवास की सुविधा की है. जिससे इस बार भी आगे आकर कार्य को पूर्ण करना था. हेल्पींग हैड्स ने यह आ्वान स्विकारा. हेल्पिंग हैन्ड्स के एक आवाज में अपेक्षित राशी जमा हुई तथा सभी के मदद से देखते ही देखते मकान का निर्माण भी पूर्ण हुआ. 

दीपावली के शुभपर्व पर किया गृहप्रवेश

दीपावली के शुभपर्व पर कोरोना के नियमों का पालन करते हुए छोटासा कार्यक्रम आयोजित कर निर्मला को उसका उसका नया घर उसके हवाले किया गया. सीआरपीएफ 37 बटालियन अहेरी के कमांडंट श्रीराम मीना, रामरस मीना, प्रतिष्ठित नागरिक डा. आई. एच. हकीम व मित्र प्रतिनिधी प्रभाकर श्रीरामवार के हाथों घर का उद्घाटन कर निर्मला व उसका पुत्र बालाजी ने नए घर में प्रवेश किया. इस मसय हेल्पींग हैड्स के कार्यकर्ता प्रतीक मुधोलकर, संतोष मद्दीवार, नितीन दोंतुलवार, शंकर मगडीवार, शैलेंद्र पटवर्धन, पूर्वा दोंतुलवार, विवेक बेझलवार, ईसताक शेख वर्गमित्र डॉ. मनीष दोंतुलवार, रमेश चुक्कावार, अनिल चिलवेलवार आदि उपस्थित थे.