न सड़कें, न भीतर के गांवों में पुलिया, आदिम युग में जीवन जीने ग्रामीण मजबूर

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    एटापल्ली. भले ही सरकार राज्य के सबसे पिछड़े गड़चिरोली इस आदिवासी बहुल, नक्सल प्रभावित और  उद्योग विरहित जिले के विकास करने का ढिंढोरा पीट रही हो. लेकिन वास्तविकता कुछ और ही बयां कर रही है. जिले के दुर्गम और दुर्गम क्षेत्र में आज भी विकास की गंगा नहीं पहुंच पायी है. इसका ताजा उदाहरण एटापल्ली तहसील के घोटसुर क्षेत्र में दिखाई दे रहा है.

    बता दे कि, आजादी के सात दशकों बाद आज भी घोटसुर क्षेत्र के कई अंदरूनी गांव तक पहुुंचने समुचित सड़क, पुलिया जैसी सुविधाएं पहुंचाने में सरकार असफल साबित हुई है. वहीं दूसरी ओर सरकार गांव-गांव तक सड़कों का जाल बिछाने जैसे कई विकास संबंधित दावों की ढोल पीटती है.

    परंतु वास्तविकता को देखा जाए तो अंदरूनी इलाकों तक पहुंचने से पहले ही सरकार के तमाम दावे दम तोड़ रहें है. जिसके कारण आज भी इस क्षेत्र के लोग आदिम युग में जीवन जीने के लिये मजबूर हो गये है. जिससे सरकार प्रशासन ओर गंभीरता से ध्यान देकर इस क्षेत्र का विकास करें, ऐसी मांग परिसर के नागरिकों ने की है.

    नालों पर नहीं बनाया गया पुलिया

     एटापल्ली तहसील मुख्यालय से 40 कि. मी. पर कसनसुर गांव बसा हुआ है. क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों के गांवों के लिये यहीं केंद्र स्थान माना जाता है. कसनुसर से घोटसुर की दूरी 8 कि. मी. की है. मात्र यहां तक पहुंचने के लिये पक्की सड़क का निर्माणकार्य नहीं किया गया है. क्षेत्र में पहुंचने के लिये 2 नालों को पार करना जरूरी है.

    लेकिन इन नालों पर स्वाधीनता के 70 वर्षों बाद भी पुल का निर्माणकार्य नहीं किया गया है. ज्ञात हो कि, तहसील का यह क्षेत्र सर्वाधिक नक्सल प्रभावित है. पुलिस विभाग ने क्षेत्र को रेड़ जोन में शामिल किया है. इस क्षेत्र में अब तक किसी भी तरह की बुनियादी सुविधाएं नहीं पहुंच पाने के कारण ग्रामीणों को जीवन जीने के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है.

     इन गांवों में नहीं पहुंची सुविधाएं

     इस क्षेत्र में नक्सली दहशत है. इसी दहशत के चलते अब तक क्षेत्र का विकास नहीं हो पाया है. घोटसुर समेत क्षेत्र में गुंड़ाम, मानेवाड़ा, कर्रेम, कोत्ताकुंडा, भूमकाम, कारका, गोवारटोला, जवेली, कोतरी, गुडऱाम आदि समेत अन्य गांवों का समावेश है. सरकार ने घोटसुर गांव में बिजली की व्यवस्था करा दी हैं, लेकिन उपरोक्त आधे से अधिक गांवों के नागरिक आज भी अंधेरे में अपना जीवनयापन कर रहें है.

    सरकार ने आदिवासी उपयोजना के माध्यम से जिले के सुदूर इलाकों में विभिन्न प्रकार की कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन कर आदिवासियों का जीवनस्तर बढ़ाने का दावा किया है. मात्र यह सारे दावें पूरी तरह विफल साबित होते दिखायी दे रहें है.