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    • स्कूलों को लगे है ताले, रोजगार तलाशते दुर्गम क्षेत्र के बच्चे 
    • तेंदूपत्ता फड़ी पर दिख रहे बच्चे 

    अहेरी. कोरोना महामारी के बढ़ते संक्रमण के चलते लॉकड़ाउन घोषित किया गया है. लॉकड़ाउन का परिणाम शहरी क्षेत्र के साथ ही ग्रामीण अंचल पर भी पड़ा है. अनेक कामगारों का रोजगार छिन गया है. ऐसे में ग्रामीण अंचल के गरीबवर्गीय लोगों की वित्तीय स्थिती गंभीर है. ऐसी स्थिती में जीवनयापन के लिए पैसा कहां से लाएं इस विचार में ग्रामीण अंचल के लोग दिखाई दे रहे है. ऐसे में अपने परिवार की मदद के लिए नौनिहाल बच्चे आगे आए दिखाई दे रहे है.

    कोरोना महामारी के चलते स्कूलें बंद है. जिससे ग्रामीण अंचल में स्कूली छात्र रोजगार तलाशकर अपने अभिभावकों की मदद करने में जुटे है. फिलहाल जिले के ग्रामीण अंचल में तेंदुपत्ता संकलन का कार्य शुरू है. तेंदुपत्ता संकलन कर मजदूर ठेकेदार द्वारा नियोजित किए गए तेंदु फड़ी पर तेंदुपत्ता के बंड़ल बेचने के लिए ला रहे है. उक्त तेंदुपत्ता के बंड़लों को खुली जगह पर सुखाने के लिए रखा जाता है.

    तेंदुपत्ता के बंड़ल को दोनों छोर से सुखाना आवश्यक है, ऐसे में एक साईड़ सुखने के बाद उसे पलटाना पड़ता है. जिससे तेंदु फड़ी पर यह बच्चे तेंदुपत्ता के बंड़ल को पलटाने का कार्य करते दिखाई दे रहे है. अनेक जगह तेंदूपत्ता संकलन के कार्य में भी यह बच्चे अपने अभिभावकों का हाथ बटा रहे है. कोरोना महामारी के भयावह संकट में रोजगार से वंचित अपने अभिभावकों के साथ घर की जिम्मेदारी उठाते यह बच्चे दुर्गम क्षेत्रों में नजर आ रहे है. 

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    किताबे, शैक्षणिक साहित्यों की स्वयं करते व्यवस्था

    शहरी क्षेत्र में भलेही बच्चों के अभिभावक सक्षम होते है. जिससे बच्चों के पढ़ाई, लिखाई का खर्च अभिभावक ही करते है. मात्र ग्रामीण व दुर्गम क्षेत्र की स्थिती इससे विपरीत होती है. गरीबी से जुझते हुएं 2 वक्त के भोजन का प्रबंध करना भी अनेक परिवारों के लिए मुश्किल होता है. ऐसे स्थिती में दुर्गम व ग्रामीण अंचल के बच्चे धुपकाले के दिनों में तेंदूपत्ता फड़ी पर मजदूरी स्वरूप कार्य कर अपने शैक्षणिक जरूरते पूर्ण करने का प्रयास करते है. इस मजदूरी से मिलनेवाली राशी से वे किताबे व अन्य जरूरती साहित्य खरीदते है. वहीं कुछ राशी वे घरखर्च के लिए अपने अभिभावकों को भी देते है. आदिवासी बहुल क्षेत्र में छात्रों का यह संघर्षपूर्ण जीवन देखा जा सकता है. 

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    परिश्रम कर करते है शिक्षा अर्जीत 

    अहेरी उपविभाग के अहेरी, एटापल्ली, भामरागड़, सिरोंचा तथा मुलचेरा तहसीले आदिवासी बहुल है. यहां माड़िया जनजाति का प्रमाण अधिक है. यहां रोजगार के अवसर नही होने के चलते परंपरागत कृषि व्यवसाय पर ही इनका गुजारा चलता है. खेतों में अल्प उत्पन्न होने के कारण उन्हे पैसों की किल्लत हमेशा रहती है. ऐसे में यहां के होशियार विद्यार्थी अपने परिस्थिती से लढ़ते हुए कठीण परिश्रम कर शिक्षा अर्जित करते है. भलेही उन्हे इस तरह की मजदूरी क्यों ना करनी पड़े. आदिवासी क्षेत्र में अनेक छात्रों ने विपरीत स्थिती में कठीण परिश्रम के बल पर उच्च पदों पर विराजमान हुए है. यह आज भी लोगों के लिए मिसाल बने है. 

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    कृषि कार्य में भी बटाते है, हाथ

    जिले में खेतीबाड़ी ही प्रमुख व्यवसाय है. खेती में व्यापक मनुष्यबल की आवश्यकता होती है. ऐसे में ग्रामीण व दुर्गम अंचल में खेतीबाड़ी के कार्य घर के सभी सदस्य मिलजुलकर करते है. यहां तक की दुर्गम अंचलों में किसानों के नौनिहाल बच्चे भी अपने माता-पिता का हाथ बटाते है. यह बच्चे अपने माता-पिता के कहने पर प्रत्येक कार्य करते है. जिससे भलेही ग्रामीण जीवन में सुखसुविधाएं न हो, मात्र अपने अभिभावकों का सन्मान कर कठीण परिश्रम करनेवाली पिढ़ी ग्रामीण अंचल में ही दिखाई देती है.