प्रभाकर शेंडे की मूर्तिकला पहुंची जिले के पार

  • वृध्दाकाल में पत्थरों को तलाश बना रहे मूर्ति

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चामोर्शी. तहसील के मुरखला के मूर्तिकार प्रभाकर सोमजी शेंडे इनकी मूर्तिकला अब जिले के बाहर भी पहुंच चुकी है। वे अपनी कला से पत्थर को तराशकर पूज्यनीय बनाने का प्रयास करते है।

चामोर्शी तहसील के मुरखला में प्रभाकर शेंडे का जन्म वर्ष 1953 में हुआ। उनके पिता सोमजी घर में पत्थरों को तराशकर पाटे, जांते आदि वस्तू तैयार करते थे। जिससे प्रभाकर को पत्थरों को तराशने की कला पिता से विरासत में मिली। मात्र  देवी देवताओं की मूर्ति कैसे तैयार करे इसके लिए उन्होने तहसील के 11 वीं सदी का गवाह विदर्भ की काशी के रूप में पहचान होनेवाले मार्कंडादेव मंदिर के शिल्पकला का बारीकी से अध्ययन किया। इसके बाद उन्होने पत्थरों पर तराशने की  कला सीखी। इसके लिए उन्होने महाराष्ट्र शासन उद्योग संचालनालय की ओर से 4 मई 1987 को पत्थरों पर तराशने के कार्य की अनुमति मांगकर पंजीयन प्रमाणपत्र प्राप्त किया और पत्थरों पर तराशकर आकार देने के कार्य की शुरुवात की।

मात्र मूर्ति बनाने के लिए पत्थरों की आवश्यकता होती है। इसके लिए उन्हे विभिन्न समस्याओं का सामना करना पडा। इसपर भी उन्होंने मात की। प्रभाकर शेंडे की शिक्षा 7 वीं तक हुई है। अब वे 68 वर्ष के हो गये है। जिला उद्योग केंद्र द्वारा उनके कला की सुध ली गई। पत्थरों पर छेनी हथौडी से तराशना काफी कठिन कार्य होता है। किंतु प्रभाकर ने जिद्द से यह कला अवगत की। मूर्ति कला में उन्होंने अबतक अनेक देवी देवताओं की मूर्तियां तैयार की है। उनकी तैयार की गई मूर्तियां चंद्रपुर, वर्धा समेत अन्य जिलों में स्थापित हुई है। 

कला की  उपासना करनेवाले अनेक होंगे। मात्र वृद्धावस्था की ओर बढने के बावजूद युवकों की भांति कार्य वे आज भी कर रहे है। मात्र यह कला जीवित रखने के लिए सरकार कुशल कारीगरों को मानधन देती तो उनका जीवन यापन आसान हो जाता ऐसा कहकर उनकी आंखों में आंसू भर आये।