धान मिलिंग के नाम पर करोड़ों की हेराफेरी

  • राईस मिल मालिक लगा रहे सरकार को चुना
  • गडचिरोली से लेकर मंत्रालय तक जुडे तार

Loading

गडचिरोली. राज्य सरकार के अन्न, नागरी आपूर्ति व ग्राहक संरक्षण विभाग मार्फत गरीब जनता को दिए जानेवाले अनाज आपूर्ति में बडी मात्रा में अनियमितता होने की बात कहीं जा रही है. राईस मिल मालिक धान की मिलींग न करते हुए सिधे सरकारी गोडाऊन में चावल की आपूर्ति करने की जानकारी है. जिससे सरकार मिलींग का ठेका दिए गए राईस मिल की जांच कर कार्रवाई करने की मांग हो रही है. 

प्रतिवर्ष आदिवासी विकास महामंडल में जमा हुए धान के औसत पर धान मिलींग के टेंडर जिला आपूर्ति अधिकारी निकालते है. बिते वर्ष आदिवासी महामंडल ने करीब 14 लाख 20 हजार क्विंटल धान की खरीदी की थी. जिसके तहत प्रशासन की ओर से धान मिलींग के 5 हजार से भी अधिक लॉट निकाले गए थे. एक लॉट में 400 क्विंटल धान के बदले में 270 क्विंटल चावल ठेका मिले राईस मिल मालिको को महामंडल को देना पडता है. धान मिलींग के लिए सरकार की ओर से प्रति क्विंटल 30 से 40 रूपये राईस मिल मालिकों को मिलते है. साथ में ही कोंढा, कुक्कुस व कणी राईस मिल मालिकों को ही मिलते है.

धान उठाने से लेकर मिलींग कर चावल की आपूर्ति महामंडल को करने तक का खर्च सरकार की ओर से दिया जाता है. मात्र जिले के कुछ राईस मिल मालिकों ने यंत्रणा के भ्रष्ट अधिकारियों से मिलीभगत कर पैसे कमाने का गोरखधंदा शुरू किया है. कुछ राजनितिक वरदहस्त होनेवाले राईस मिल राईस मिल मालिकों ने धान की मिलींग न करते हुए बाहर से चावल खरीदी कर सिधे महामंडल को आपूर्ति कर रहे है. ऐसी जानकारी मिली है. इसमें राईस मिल मालिक करोडों रूपये कमा रहे है, मात्र प्रशासन को चुना लग रहा है. राईस मिल मालिकों के मंत्रालय तक तार जुडे होने से संबंधित विभाग के अधिकारी चुप्पी साधे हुए है. 

ऐसे होती है हेराफेरी

धान मिलींग के इस व्यवसाय में अनेक राई मिल मालिक मालामाल हुए है. अनेक मामले सामने आए है. मात्र जांच के नाम पर मामले दबाएं गए है. सरकार के नियमों के अनुसार आदिवासी आदिवासी विकास महामंडल की ओर से उठाएं गए एक लॉट में 400 क्विंटल धान के बदले में राईस मिल मालिकों को 270 क्विंटल मिलींग किया गया चावल आपूर्ति करना पडता है. मात्र राई मिल मालिक धान की मिलींग न करते हुए सिधे बाहर से घटिया दर्जे का चावल खरीदी कर रहे है. यह चावल 1800 रुपये क्विंटल के तहत खरीदी होने की जानकारी है. बाजारभाव के तहत 1600 रूपये प्रति क्विंटल दर से धान की बिक्री करने पर 400 क्विंटल धान की किंमत 6 लाख 40 हजार होती है. एका लॉट में 270 क्विंटल चावल 1800 रुपये प्रतिक्विंटल दर से खरीदी करने पर 4 लाख 86 हजार रुपये होते है. इसमें राईस मिल मालिक सिधे प्रति लाट के तहत 1 लाख 54 हजार रुपयों का मुनाफा कमा रहे है. सरकार की ओर से मिलींग के एक लॉट के पिछे 15 ते 16 हजार रुपये मिलते है, वह अगल. अगर किसी राईस मिल मालिक की ओर 100 लॉट का कार्य हो तो उसे करोडों का मुनाफा है. मात्र इसमें सरकार को करोडो का चुना लग रहा है. 

मर्यादा से अधिक मिलींग का ठेका 

धान मिलींग के इस व्यवसाय में निचे से लेकर उपर तक अनेक लोग लिप्त है. जिससे कुछ खास राईस मिल मालिाकं को ही धान मिलींग का ठेका दिया जाता है. धान मिलींग कर चावल की आपूर्ति करने का कालावधि प्रशासन द्वारा राईस मिल मालिकों को दिया जाता है. मात्र जिन राईस मिल की मर्यादा 100 लॉट की है, ऐसे मिलों को 500 लॉट का ठेका देने की भी बात कहीं जा रही है. जिससे धान मिलींग के इस इस कारोबार में बडी मात्रा में वित्तीय लूट होने की बात कहीं जा रही है. 

घटिया बोरों में हो रही आपूर्ति 

पिसाई के नाम पर गोडाऊन में आनेवाला चावल घटिया दर्जे का होकर बोरे भी घटिया स्तर के है. जिससे सरकारी गोडाऊन में लाए जानेवाला चावल काफी मात्रा में बर्बाद हो रहा है. ट्रक में भी काफी मात्रा में चावल निचे गिरता है. टश्क में से उतारते समय भी काफी मात्रा में चावल की बर्बादी हो रही है. नियमों के तहत नए बोरो में मिलींग किया गया चावल आपूर्ति करना पडता है. मात्र राईस मिल मालिक अधिक पैसा कमाने के उद्देश से पुराने व घटिया दर्जे के बोरे चावल के लिए उपयोग में ला रहे है. जिससे इस ओर भी प्रशासन को ध्यान देने की आवश्यकता है. 

ट्रेडींग की जांच होना आवश्यक

अनेक राईस मिल मालिक अपने राईस मिल में धान की मिलींग किया गया चावल ब्रैन्डींग कर बाजारों में बेचते है. जिससे उनका धान मिलींग का गैरव्यवहार सरकार के ध्यान में नहीं आता है. मात्र संबंधित राईस मिल के मिटर रिडींग की जांच करने पर इस भ्रष्टनिति की काफी जानकारी सामने आ सकती है. मिलींग कर ब्रैंडींग करते हुए कितने युनिट उपयोग में लायी गई इसका पंजियन लिया जा सकता है. जिसके तहत सरकारी महामंडल के धान के लिए कितनी युनिट बिजली खर्च हुई इसकी भी खोज की जा सकती है. ऐसा होने पर सहीं मायने में संबंधित राईस मिल में सरकार के धान की मिलींग हुई या नहीं यह बात सामने आ सकती है. मात्र उक्त राईस मिल मालिक स्थानीय प्रशासन से लेकर मंत्रालय तक ‘मलाई’ पहुचाने की बात कहते घुम रहे है. जिससे उनके विरोध में कोई कार्रवाई होती दिखाई नहीं पड रही है.