जनसमस्याओं से कब मिलेगी आजादी

  • स्वाधिनता से 7 दशक बाद भी पिछडा गडचिरोली

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गडचिरोली. देश स्वाधिनता की 73 वीं सालगिरह मना रहा है. मात्र देश के मुलनिवासी आदिवासी समुदाय को आज भी पिछडेपन से आझादी नहीं मिल पायी है. यह स्थिती विकसीत महाराष्ट्र राज्य के अविसीत गडचिरोली जिले की है. वैसे तो प्राकृतिक संसाधनों से गडचिरोली जिला विपुल है. मात्र जिले में सुविधाओं का अभाव से जिले की दरीद्रता अब भी कायम है. देश को आझादी मिले 7 दशक बित गए. मात्र गडचिरोली जिला आज भी विकास से कोसो दूर है. जिले में स्वास्थ्य, शिक्षा, सडके, पानी आदि अनगिनत समस्यामओं का अंबार लगा हुआ है. इन जनसमस्याओं से जिले को कब आझादी मिलेगी, ऐसा सवाल जिले के दुर्गम व ग्रामीण अंचल में बसे नागरिक पुछ रहे है. 

नदीयों कां भडार फिर भी प्यासे खेत-खलीयान
गडचिरोली जिले में बारमासी बहनेवाली नदीयों का भंडार है. जिले के पश्चिमी सिमा में उत्तरी छोर से लेकर दक्षिण छोर तक गोदावरी नदी की उपनदीयां होनेवाली वैनगंगा, प्राणहिता नदीयां बहती है, पूर्वोत्तर क्षेत्र में इंद्रावति नदी का भी काफी हिस्सा जिले से जुडा हुआ है. वहीं जिले में इन नदीयों से दर्जनों उपनदींया बहती है. जिसमें कठाणी, पाल, खोब्रागडी, गाढवी, सती, वैलोचना, पोटफोडी, दिना, पर्लकोटा, पामुलगौतम, बांडे आदि नदीयों का समावेश है. जलभंडार के दृष्टि से गडचिरोली जिला संपन्न है. इसके बावजूद इन नदीयों पर सिंचाई बांध नहीं होने के चलते इसका किसानों को  कोई लाभ नहीं होता है. जिसके चलते नदीयों का भंडार फिर भी प्यासे खेत खलियान की स्थिती जिले में दिखाई दे रही है. 

यहां खटियां बनती एम्बुलंस
इंसान के बुनियादी जरूरतों में अन्न, वस्त्र, निवारा के साथ ही स्वास्थ्य सुविधा भी महत्वपूर्ण होती है. मात्र गडचिरोली जिले के पिछडेपन का इससे अंदाजा लगाया जा सकता है की, इस जरूरती सुविधा से भी यहां दुर्गम क्षेत्र के नागरिक वंचित है. गडचिरोली जिला वनों से व्याप्त जिला है. वहीं सुविधा का अभाव ऐसे में जिले के ग्रामीण व दुर्गम अंचलों में बरसात तथा अन्य मौसमों में विभीन्न प्रकार की मौसमी बिमारीयां उपजती रहती है. किंतू स्वास्थ्य सुविधा के इंतजार में मरीजों को दम तोडते भी देखा गया है. दुर्गम क्षेत्र में गर्भवति माताएं तो नरकयातनाएं झेलती दिखाई देते है. प्रसूती का समय आने पर उन्हे अस्पताल लाने के लिए एम्बुलंस या वाहन भी उपलब्ध नहीं हो पाता है. वहीं कुछ जगह सडकों का अभाव होने से वाहन भी पहुचाना मुश्किल होता है. ऐसे में खटिया ही इन मरीजों के लिए एम्बुलंस बन जाती है. दुर्गम क्षेत्र के अनेक मरीजों को खटियां पर लादकर स्वास्थ्य केंद्रो तक लाने की वारदाते निरंतर उजागर होती आयी है. 

पक्की सडके नहीं, अंधेरा भी कायम
सडकों को विकास का आईना कहां जाता है, इन्ही सडकों पर से गुजरकर विकास गांव, तबको को संपन्न करता है. मात्र गडचिरोली जिले के अनेक गांव आजतक सडकों से नहीं जुड पाए है. अनेक गांवों में जाने के लिए पक्की सडके नहीं है. जंगलों के मार्ग से होकर पगदंडी से गुजरना पडता है. ऐसे में इन गांवों में कोई वाहन या यातायात सुविधा भी पहुचनी मुश्किल है. ऐसे में इन गांवों का विकास कैसे होगा ऐसा सवाल पुछा जा रहा है. आज देश चांद पर कदम रख चुका है, मात्र गडचिरोली जिले के अनेक गांव ऐसे है, जो उसी चांद के रोशनी में गुजरबसर करने को मजबूर है. इन गांवों में आझादी के 7 दशक बाद भी बिजली की सुविधा तक नहीं पहुंच पायी है. ऐसे में यहां के लोग दिन में सुरज तथा रात में चांद की रोशनी पर निर्भर रहते है. लालटेन के धुंधले उजाले में विकास की उम्मीद जलाएं जिवनयापन कर रहे है. 

रोजगार व शुद्ध पानी भी नसीब नहीं
जिले में उद्योंगो का अभाव है. इस कारणवश बेरोजगारी का सितम झेलते यहां के लोग नजर आते है. कृषि पर ही यहां के अधिकत्तर लोगों की आजिविका है. मात्र बारिश की वर्षा पर निर्भर खेती काफि नुकसानदेह साबित हो रही है. जिले के ग्रामीण अंचल के अनेक नागरिक दिहाडी मजदूरी के बल पर अपने घर का चुल्हा जला रहे है. वहीं अनेक युवा अन्यत्र पलायन कर रोजगार तलाशते है. जिले में शिक्षा सुविधाओं का अभाव है. जिले में विभीन्न जगह जिला परिषद के माध्यम से स्कूले निर्माण की गई है. मात्र दुर्गम व पिछडे इलाके में शिक्षकों का अध्यापन की ओर अनदेखी तथा फलस्वरूप छात्रों की शिक्षा की ओर बेरूखी के चलते शिक्षा का स्तर जिले में निचले पायदान पर नजर आता है. जिले के दुर्गम क्षेत्रों के अनेक गांवों में नल जलापूर्ति योजनाएं नहीं है. बोरवेल तथा कुएं के भरोसे प्यास बुझाई जाती है. वहीं कुछ जगह यह सुविधाएं नहीं है. जिससे ऐसे गांवों के लोग झरने, नदी, नालों पर प्यास बुझाने पर मजबूर है.