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वीरप्पन के नाम से प्रसिद्ध 'कूज मुनिस्वामी वीरप्पन' (1952-2004) दक्षिण भारत का कुख्यात चन्दन तस्कर था। बचपन के दिनों 'मोलाकाई' नाम से भी जाना जाता था।
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उसका जन्म 18 जनवरी 1952 को गोपीनाथम नामक ग्राम में एक चरवाहा परिवार में हुआ था। उसने एक चरवाहा परिवार की कन्या, मुत्थुलक्षमी से 1991 में शादी की। उसकी तीन बेटियां थीं - युवरानी, प्रभा तथा तथाकथित रूप से एक और जिसकी उसने गला घोंट कर हत्या कर दी।
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1993 में पुलिस ने उसकी पत्नी मुत्थुलक्ष्मी को गिरफ्तार कर लिया। अपने नवजात शिशु के रोने तथा चिल्लाने से वो पुलिस की गिरफ्त में ना आ जाए इसके लिए उसने अपनी संतान की गला घोंट कर हत्या कर दी।
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वीरप्पन को लगता था कि उसकी बहन मारी तथा उसके भाई अर्जुनन की हत्या के लिए पुलिस जिम्मेवार थी। 18 वर्ष की उम्र में वह एक अवैध रूप से शिकार करने वाले गिरोह का सदस्य बन गया। घनी मूछों वाला वीरप्पन कई दशकों तक सुरक्षा बलों के लिए सिरदर्द बना रहा।
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चन्दन की तस्करी के अतिरिक्त वह हाथीदांत की तस्करी, हाथियों के अवैध शिकार, पुलिस तथा वन्य अधिकारियों की हत्या व अपहरण के कई मामलों का भी अभियुक्त था।
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सरकार ने वीरप्पन को पकड़ने के लिए कुल 20 करोड़ रुपये उसे खर्च किए (प्रतिवर्ष लगभग 2 करोड़)।
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वीरप्पन के बारे में तरह तरह की कहानियां आज भी लोगों के जेहन में है। 18 अक्टूबर 2004 को एक मुठभेड़ में कुख्यात तस्कर वीरप्पम को पुलिस ने मार गिराया था। 18 जनवरी 1952 को जन्मे वीरप्पन के बारे में कहा जाता है कि उसने 17 साल की उम्र में पहली बार हाथी का शिकार किया था।
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उसे 1986 में एक बार पकड़ा गया था पर वह भाग निकलने में सफल रहा। वन्य जीवन पर पत्रकारिता करने वाले फोटोग्राफर कृपाकर, जिसे उसने एक बार अपहृत किया था, कहते हैं कि उसने अपने भागने के लिए पुलिस को करीब एक लाख रूपयों की रिश्वत दी थी।
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वीरप्पन ने गांववालों को कभी-कभार पैसे से मदद इसलिए की कि वो उसे पुलिस की गिरफ्त में आने से बचा सकें। उसने उन ग्रामीणों को क्रूरता से मार डाला जो पुलिस को उसके बारे में सूचनाएं दिया करते थे।
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वहीं यह भी माना जाता था कि उसने कुल दो हजार हाथी मारे, ताकि उनके दांतों की तस्करी की जा सके। हजारों चंदन के पेड़ काट डाले। इतना ही नहीं उन्होंने न जाने कितने लोगों की हत्या कर दी। वीरप्पन रबड़ के जूते में पैसे भर के जमीन में गाड़कर रखता था।