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सालेकसा. कोरोना संक्रमण के भय से विगत मार्च २०२० के दूसरे सप्ताह के पश्चात १७ मार्च से अधिकांश शिक्षण संस्थाएं बंद हो गई. विद्यार्थी तब से लेकर आज भी अपने-अपने घर में रहने लगे हैं. इसका विशेष असर शहरी विद्यार्थियों पर नहीं पड़ा क्योंकि शहरों में शिक्षा के सभी संसाधन उपलब्ध है. कुल मिलाकर इसकी असर ग्रामीण इलाकों के विद्यार्थियों पर हो रहा है. कोरोना का बहाना बनाकर ग्रामीण जनता की समस्या की ओर अनदेखी की जा रही है.

उल्लेखनीय है कि अप्रैल-मई माह से शासन ने शिक्षण संस्थाओं को दिए मार्गदर्शक सूचना के अनुसार सभी शिक्षण संस्थाओं ने ऑनलाइन शिक्षा को महत्व देना शुरू कर दिया. जिससे जिन विद्यार्थियों को आवश्यक है ऐसे अभिभावकों ने न चाहते हुए भी अपने पाल्यों के लिए मोबाइल खरीद कर दिए लेकिन टॉवर के अभाव में मोबाइल भी बेकार साबित होने लगे.

शासन को इसकी जानकारी थी फिर भी ग्रामीण अंचल के विद्यार्थियों की ओर अनदेखी करते हुए हाल ही में चिकित्सा क्षेत्र में तथा तंत्रज्ञान के क्षेत्र की भर्ती पूर्व स्पर्धा परीक्षाए ली गई. उक्त परीक्षाओं से ग्रामीण अंचल के विद्यार्थी वंचित रह गए. कुछ ने न चाहकर भी परीक्षा में भाग लिया लेकिन संसाधनों के अभाव में वे सफल नहीं हो पाए.

आगामी दिनों में शासन की ओर से विभिन्न भर्ती परीक्षाएं ली जाने की चर्चा है. इसमें भी ग्रामीण अंचल का विद्यार्थी वंचित होगा इसमें दो राय नहीं. इसके बाद स्नातक तथा १० वीं १२ वीं की परीक्षाएं नियोजित समय पर लेने की चर्चा है लेकिन परीक्षाएं किस आधार पर ली जाएगी यह समझ के बाहर है. इनमें भी ऑनलाइन शिक्षा शुरू होने की चर्चा है. ऐसी विकट परिस्थिति में शासन द्वारा आयोजित स्पर्धा परीक्षाओं के साथ ही स्नातक तथा १० वीं १२ वीं की परीक्षाएं लेकर ग्रामीण विद्यार्थियों के भविष्य से खिलवाड़ करने के अलावा और हो ही क्या सकता है?