वन्यजीवों के अस्तित्व सहित लोगों पर संकट

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    गोंदिया. अभी भी शहर व ग्रामीण क्षेत्र के लोग अंधश्रद्धा के जाल में बड़े पैमाने पर फंसे हुए है. तबीयत खराब होने पर अभी भी अनेक लोग डाक्टर के पास न जाकर ढोंगी बाबाओं का सहारा लेते नजर आते है. समाज में फैली अनेक प्रकार की अंधश्रद्धा और पूजापाठ का झांसा देने वाले ढोंगी बाबाओं की वजह से अनेक व्यक्तियों के साथ ही प्राणियों के अस्तित्व पर संकट के बादल छा गए है.

    अनेक ढोंगी बाबा बाघ के अंग, सांप, कछुआ, भालू, उल्लू जैसे जानवरों के अंगों की सहायता से धन वर्षा का झांसा देकर अनेक लोगों को लूटते देखे गए है. इसकी वजह से इन जानवरों का अस्तित्व संकट में है. कुछ प्रजातियां तो आज विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी है. 

    बाघ के अंगों का उपयोग

    बाघ, भालू, उदबिलाव जैसे प्राणियों के संबंध में अंधश्रद्धा फैली है. उनके अंगों का उपयोग कर ढोंगी बाबा अघोरी पूजा करते है. इसके लिए इन प्राणियों का बड़े पैमाने पर शिकार किया जाता है. बाघ के नाखून और दांत का ताबिज पहनने से शारीरिक दुर्बलता दूर होने की बात कही जाती है. मूंछ का उपयोग कर दुश्मन को खत्म करना, बाघ के नाखून से अच्छे दिन आने और हड्डियों का पावडर बनाकर खाने से मर्दानी ताकत बढ़ाने का भ्रम फैलाया जाता है. 

    उल्लू भी अंधश्रद्धा का शिकार

    उल्लू पक्षी भी अंधश्रद्धा का शिकार हो रहा है. उल्लू पक्षी लक्ष्मी का वाहन है. इसकी पूजा करने पर सट्टे का नंबर, गुप्त धन की तलाश करना, वशीकरण जैसे अंधश्रद्धा के लिए इस पक्षी का शिकार किया जाता है. जबकि इस पक्षी को किसानों का मित्र कहा जाता है. 

    ढोंगी बाबा फैला रहे भ्रम

    शहर के आस पास के ग्रामीण क्षेत्रों में ढोंगी बाबा समाज में भ्रम फैलाकर प्राणियों के अंगों का गोरखधंधा कर रहे है. पैसों की बरसात, पूजापाठ से गुप्त धन की तलाश, असाध्य बीमारियों को दूर करना, देवीय शक्ति प्राप्त करना, लैंगिक शक्ति बढ़ाने के लिए अलग अलग प्राणी, पक्षी, सरीसृप के अंग उपलब्ध कराने का झांसा देते है. इसके लिए अनेक लोग इन जानवरों का शिकार करते है. अथवा शिकारियों से ऊंची कीमत में इनकी खरीदारी करते है. इनकी ऊंची कीमत मिलने से अनेक लोग जानवरों के अंगों की तस्करी करते है. 

    खजाने की करते है तलाश

    विभिन्न प्राणियों के संबंध में अलग अलग अंधश्रद्धा देश में फैली है. सांप ,मेंढक, कछुआ जैसे सरीसृप, कौआ, उल्लू जैसे पक्षी, बाघ, भालू, उदबिलाव, बिल्ली जैसे प्राणियों के संबंध में विभिन्न प्रकार की अंधश्रद्धा फैली है. इसमें मालवण सांप के संबंध में कहा जाता है कि वह दो मुंह वाला है. इसका उपयोग गड़ा खजाना तलाशने के लिए किया जाता है.

    इसकी वजह से इसकी मांग अधिक है और इसकी तस्करी की जाती है. वास्तव में इस सांप को भी एक ही मुंह होता है. लेकिन इसकी पूंछ भी मुंह की भांति होने से इसे दो मुंह का कहा जाता है. इसकी वजह से इसकी कीमत लाखों में है. ढोंगी बाबा और तस्कर सांप की पूंछ के बाजू में जलती अगरबत्ती अथवा गर्म तार से आंख जैसे निशान बनाकर दो मुंह होने का झांसा देकर लोगों से धोखाधड़ी करते है.

    इसी प्रकार कछुए के संबंध में अंधश्रद्धा है. धन वर्षा, गुप्त धन तलाशने के लिए 21 नाखून वाला कछुआ, 5 किलो वजन के  काले कछुए की तलाश में इनकी बड़े पैमाने पर तस्करी की जाती है. धन वर्षा के लालच में हजारों की संख्या में कछुओं को मारा जाता है. लेकिन आज तक कहीं भी धन वर्षा नही हुई है. ऐसा करने वाले हजारों लोग आज जेल की सलाखों के पीछे है.