22 lakh rice seized, MIDC warehouse raided
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गोंदिया.  गोंदिया, भंडारा, गड़चिरोली व नागपुर के चांवल उद्योगों ने कस्टम मिलिंग में आ रही समस्याओं को शासन द्वारा सुलझाने तक  सन 2020-21 की कस्टम मिलिंग शुरु न करने का सर्वानुमती से निर्णय लिया है. 

इन्हें अवगत कराया गया समस्याओं से 

इस संबंध में विस्तृत जानकारी से पूर्व केंद्रीय मंत्री व सांसद प्रफुल पटेल, विधानसभा अध्यक्ष नाना पटोले, मंत्री छगन भुजबल, सांसद सुनील मेंढे, विधायक विजय रहांगडाले, विनोद अग्रवाल, मनोहर चंद्रीकापुरे, सहषराम कोरोटे, डा. परिणय फुके, राजु कारेमोरे, नरेंद्र भोंडेकर, अन्न मंत्रालय के सचिव, जिलाधीश, जिला आपूर्ति अधिकारी,  महाव्यवस्थापक आदिवासी विकास महामंडल व मार्केटिंग फेडरेशन आदि को अवगत कराया गया है. 

प्रोत्साहन राशि अब तक तय नहीं

जिसमें बताया गया कि सन 2020-21 की एमएसपी धान खरीदी जारी है, कस्टम मिलिंग के सम्मत्ति पत्र भी लगभग सभी राईस मिलर्स द्वारा जमा किए गए हैं, कुछ जिलों में करारनामे भी हुए   लेकिन निन्मलिखित समस्याओं का समाधान अनिवार्य है. जिसमें हमें प्रतिवर्ष धान मिलिंग दरों में राज्य सरकार से 30 रु. प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि मिलती रही है. वर्ष 2019-20 की कस्टम मिलिंग पूर्ण हो चुकी है. लेकिन प्रोत्साहन राशि शासन द्वारा अब तक तय नहीं की गई है. हम भयभीत हैं. इस लिए 2019-20 की मिलिंग प्रोत्साहन राशि शीघ्र तय हो तथा 2020-21 के लिए भी प्रोत्साहन राशि मिलिंग शुरु होने के पूर्व तय की जाए. 

ब्लॅकलिस्टींग का भय 

2019-20 में  हमारे द्वारा जमा किए गए चांवल की एक बड़ी मात्रा दो-तीन माह पश्चात कर बीआरएल (बियॉन्ड रिजेक्शन लिमिट) दी गई. हमें ब्लैक लिस्टींग का भय दिखाया गया.   यह भारी मात्रा का बीआरएल चांवल स्वयं के खर्च से बदलने बाध्य किया गया. जिससे हमें भारी नुकसान उठाना पड़ा. जबकि उपरोक्त किसी भी प्रक्रिया आरबीएल के सेंपल एनालिसिस हमारे समक्ष नहीं की गई. 

समिति गठित की जाए

इस लिए कस्टम मिलिंग शुरु होने के पूर्व राज्यों के सभी धान खरीदी केंद्रों के धान का एक समिति गठन कर एफ.ए.क्यू. टेस्ट किया जाए, इस समिति में राईस मिलर्स  प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाए, हमारे प्रदेश के एमएसपी में खरीदा जा रहा धान का 95 प्रश. धान हायब्रिड है व इसका एफसीआई के मापदंडानुसार अरवा (रॉ) चांवल नहीं बनता है, 2009-10 में राज्य शासन ने अनेक लैब में इसकी टेस्ट की थी व इसकी अरवा मिलिंग में 45 से 52 प्रश. टुकडा (ब्रोकन) प्राप्त हुआ था, हमने पूर्व में भी शासन से पत्र व्यवहार किया है कि हमें मापदंडानुसार 25 प्रश. से कम टुकडा का चांवल देना अनिवार्य रहता है व मिलिंग से प्राप्त 67 प्रश. में औसतन 50 प्रश. टुकडा प्राप्त होता है, ऐसे में हमें 25 प्रश टुकडा छानकर अलग करने से 42 प्रश. ही चांवल प्राप्त होता है. 

बाजार से धान खरीद कर मिलिंग करनी पड़ती है

हमें 67 प्रश. चांवल देय है तो मजबूरन 25 प्रश. चांवल बाजार से धान खरीदकर मिलिंग कर मिलाना पड़ता है.  इसकी अनुमति मिले लेकिन हमारी उपरोक्त सत्य बात को नहीं माना गया.राज्य के धान उत्पादक जिलों की प्रत्येक तहसील में राईस मिलें हैं, उनमें शासन अपने खरीदी केंद्रों के धान की ट्रायल मिलिंग अवश्य करें, इसके लिए समिति गठन की जाए व इस समिति में हमारे प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाए. 

छग की तर्ज पर हो भुगतान 

 हमें कस्टम मिलिंग पश्चात मिलिंग व परिवहन का भुगतान   काफी विलंब से प्राप्त होता है, 1 से 2 वर्ष पश्चात, यह न्यायोचित नहीं है  जब पूर्ण प्रक्रिया ऑन लाइन है तो छत्तीसगढ़ राज्य की तरह हमें भुगतान   हमारे अकाउंट में प्रति 3 माह में मिलना चाहिए, न की 2-2  वर्षों तक लंबित रहे,  उदाहरण के तौर पर 2017-18 का धान  मिलिंग पेमेंट आदिवासी विकास महामंडल, भंडारा कार्यालय ने तथा 2018-19 का धान मिलिंग पेमेंट मार्केटिंग फेडरेशन गोंदिया कार्यालय ने अब तक नहीं किया है. 2019-20 का कोई पेमेंट प्राप्त नहीं हुआ है. 

भुगतान प्रक्रिया में भारी भ्रष्टाचार

पेमेंट की प्रक्रिया में भारी भ्रष्टाचार व्याप्त है, इसे सख्ती से समाप्त किया जाए.   दोनों शासकीय एजेंसीज के पास वर्ष 2018-19 व 2019-20 में सीएमआर जमा करने के लिए नया एसबीटी उपलब्ध न होने से हमारे राईस मिलर्स ने स्वयं का एसबीटी लगाया था  लेकिन ना तो यह एजेंसीज 

एसबीटी वापस कर रही है, ना ही उसकी राशि दे रही है, यह पुरी तरह अनुचित है, वर्ष 2020-21 में एडवांस सीएमआर नहीं लिया जा रहा है, इसमें कस्टम मिलिंग की गति अत्यंत धीमी हो जाएगी. अत: एडवांस सीएमआर शुरु करने के आदेश दिया जाए, 2019-20 मे गोंदिया जिले में जून 2020 में जमा किए गए सीएमआर लॉट के सेंपल 22 सितंबर को निकाले गए व नवंबर माह में उन्हें बीआरएल किया गया, यह अनुचित है, जमा किए गए सीएमआर को फीफो (फस्र्ट इन फस्ट आउट) के नियम से उठाया जाना चाहिए, एक बार स्वीकृत किया गया सीएमआर लॉट 15 दिनों पश्चात रि चेक करने का प्रावधान न रहे, अर्थात 15 दिनों के अंदर ही चेक करने पर बीआरएल पाया गया है तो मान्य अथवा अमान्य होगा, धान मिलिंग में बिजली खपत 1.5 युनिट प्रति क्विंटल धान का नियम प्रामाणिक नहीं है, यह 1 युनिट खर्च होता है, इसे 1 युनिट किया जाए.

अशालीन व्यवहार बंद हो

राईस मिलर्स की संख्या अधिक होने व आदिवासी विकास महामंडल तथा मार्केटिंग फेडरेशन के जिला कार्यालय छोटे कमरों में होने से भीड़ हो जाती है व दोनों ही कार्यालय के अधिकारी राईस मिलर्स से अशालीन  व्यवहार करते हैं जो किसी भी दृष्टि से असहनीय होता  है. उन्हें शालीनता के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए. 

गोदामों की संख्या बढ़ाएं

2019-20 में कस्टम मिलिंग के लिए कार्यरत सभी राईस मिलों की जिला पूर्ति विभाग, मार्केटिंग फेडरेशन व आदिवासी विकास महामंडल द्वारा चेकिंग की गई थी, इस वर्ष पुन: इन राईस मिलों, सॉरटेक्स व पैराबायलिंग इंडस्ट्रीज की चेकिंग करने का कोई औचित्य नहीं है, अत: यह बंद होना चाहिए, राईस मिलर्स की बहुतायत संख्या 

की तुलना में चांवल स्वीकृति गोदाम कम रहने से सीमित मात्रा में सीएमआर जमा होता है, इसमें गोदामों की संख्या गत वर्ष से भी अधिक होनी चाहिए, पिछले 4 वर्षों से जब सीएमआर ही सीमित मात्रा में जमा किया जा रहा है तो सीएमआर विलंब शुल्क माफ किया जाए, इन सभी समस्याओं के कारण राईस मिलर्स नुकसान के शिकार हो रहे है व मिले बंद कर रहे हैं.

इससे क्षेत्र में हजारों लोग  बेरोजगार होंगे. शासकीय धान खरीदी प्रभावित होगी, किसानों को नुकसान होगा व धान भी खराब होने की आशंका रहेगी. इस समस्याओं को लेकर  समुचित  मार्गदर्शन व प्रतिनिधित्व करने का आग्रह करते हुए राईस मिलर्स एसो. के अध्यक्ष अशोक सी. अग्रवाल ने अपेक्षा व्यक्त की है कि निश्चित  रुप से न्यायोचित पहल होगी.