‘विश्व अल्जाइमर्स दिवस’ पर जानें क्या हैं इसके लक्षण

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डिमेंशिया या अल्जाइमर्स एक ऐसी बीमारी है जो व्यक्ति के सोचने, समझने शक्ति कम कर देती है। अगर अल्जाइमर्स एसोसिएशन की वेबसितव की मानें तो विश्वभर में करीब 5 करोड़ डिमेंशिया के मरीज़ हैं, वहीं भारत में 40 लाख से ज़्यादा लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं। आज (21 सितंबर) को विश्व अल्जाइमर्स दिवस है, मतलब इस गंभीर बीमारी को लेकर जागरूकता फैलाने का दिन, तो आइए जानते हैं इस बीमारी के बारे में… 

क्या है अल्जाइमर्स रोग ?

अल्जाइमर्स की बीमारी अधिकतर 60 वर्ष की उम्र के बाद ज़्यादा होते देखा गया है। यह रोग बुज़ुर्गों के अलावा युवाओं में भी देखा जा रहा है। लेकिन आमतौर पर ऐसा कम ही होता है कि कोई युवा इसका शिकार हुआ हो। इस रोग से जूझ रहे व्यक्ति अपनी याददाश्त को खोने लगते हैं, साथ ही सोचने की भी शक्ति कम होने लगती है।  

अल्जाइमर्स (डिमेंशिया) रोग लक्षण-

  1. स्वभाव में परिवर्तन।
  2. हाल-फ़िलहाल की जानकारी भूल जाना।
  3. तारीख एवं समय की जानकारी रखने में परेशानी।
  4. चीजों को गलत स्थान पर रख देना।
  5. समस्याओं को सुलझाने में परेशानी।
  6. घर या कार्यस्थल पर परिचित कार्यों को पूरा करने में कठिनाई।
  7. समय या स्थान को लेकर भ्रम होना।
  8. बोलने-लिखने में परेशानी।
  9. मूड और पर्सनालिटी बदलना।
  10. डिप्रेशन, कंफ्यूज़ रहना, थकान और मन में डर रहना।
  11. सामाजिक एवं मनोरंजक गतिविधियों से दूर रहना।

अल्‍जाइमर (डिमेंशिया) के 3 चरण (3 Stages of Alzheimer)-

  1. पहले चरण में रोगी अपने सारे काम करता है। लेकिन उसे लगता है की वह कुछ चीजें भूल रहा है। जैसे- शब्द, जगह। इस स्टेज में लक्षण एकदम नज़र नहीं आते, लेकिन परिवार और दोस्त बदलाव को नोटिस कर सकते हैं।
  2. दूसरा चरण सबसे लंबा होता है। इस स्टेज में व्यक्ति नाम के साथ कंफ्यूज़, नाराज़ या चिड़चिढ़ा हो जाता है। इसके अलावा व्यक्ति को अपने विचार और रोज़ के काम करने में मुश्किलें होने लगती हैं। 
  3. तीसरे चरण में मरीजों को बातचीत करने और अपने आसपास के वातावरण को नियंत्रित करने की क्षमता खत्म हो जाती है। इस स्टेज में व्यक्ति शब्द या वाक्य कह सकता है, लेकिन अपना दर्द बताना उसके लिए मुश्किल हो जाता है।

अल्जाइमर्स (डिमेंशिया)रोग का इलाज क्या है?

अल्जाइमर पूरी तरह से ठीक नहीं हो सकता, लेकिन मरीज़ के जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है। ऐसी कई दवाएं हैं, जिनके द्वारा मरीज़ के व्यवहार में सुधार लाया जा सकता है। यह दवाएं डॉक्टर द्वारा ही मरीज को दी जाती हैं, जो दिमाग में न्यूरो ट्रांसमीटर्स बढ़ा देती हैं। करंट बायोलॉजी जर्नल में छपी एक स्टडी के मुताबिक डिमेंशिया से बचने का अच्छा तरीका गहरी और ज़्यादा नींद हो सकती है। इस स्टडी का नेतृत्व यूसी बार्कले के न्यूरो साइंटिस्ट मैथ्यू वॉकर और जोसेफ वीनर ने किया था।