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डाइबिटीज़ हमारी जीवनशैली लापरवाही की वजह से होता है। जो आज एक विकट समस्या बन रही है। जिसने पूरी दुनियाँ में अपना आतंक भी फैला रखा हैं। मधुमेह को खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन इसे कंट्रोल ज़रूर किया जा सकता है। डायबिटीज़ को अगर नियंत्रित ना किया जाए, तो इसका असर किडनी (गुर्दा), आँख, हृदय तथा ब्लड प्रेशर पर भी पड़ता हैं। 

मधुमेह की बीमारी में शरीर में ब्लड शुगर या ब्लड गुलुकोस अधिक मात्रा मे बढ़ जाता है। ऐसा तब होता है, जब शरीर में होरमोन इन्सुलिन की कमी आ जाती है या वह इन्सुलिन हमारे शरीर के साथ सही ताल मेल नहीं बैठा पाते। जिसके बाद हमें कई प्रकार की विकट पिस्थितियों और समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

इतिहास (History)-
वर्ष 1991 में इस बीमारी के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए विश्व के लोगों को इसके संबंध में जागरूक करने के लिए हर साल 14 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय मधुमेह दिवस मनाने की घोषणा कि गई थी। दरअसल इसी दिन फ्रेडरिक बैंटिंग का जन्म दिवस होता है। फ्रेडरिक वह इंसान हैं जिन्होंने साल 1922 में चाल्स बैट के साथ मिलकर इंसुलिन की खोज की थी। जिसके बाद लोगों को इसके संबंध में जागरूक करने के उद्देश्य से अंतरराष्ट्रीय मधुमेह दिवस मनाया जाने लगा। यह दुनिया के सबसे बड़े जागरूकता अभियानों में से एक है। इसे 160 से अधिक देशों में 1 अरब से अधिक जनसंख्या द्वारा एक साथ मनाया जाता है।

मधुमेह क्या है?
यह रोग किसी भी प्रकार के संक्रमण या हवा में नहीं होता है। मनुष्य जीवित रहने के लिए भोजन करता है, यह भोजन स्टार्च में बदलता हैं, फिर स्टार्च ग्लूकोज़ में बदलता हैं। जिन्हें सभी कोशिकाओं में पहुँचाया जाता है, जिससे शरीर को उर्जा मिलती हैं। ग्लूकोज़ को अन्य कोशिकाओं तक पहुँचाने का काम इन्सुलिन करता है, लेकिन मधुमेह रोगी के शरीर में इन्सुलिन बनना बंद या कम हो जाता है, जिसकी वजह से ग्लूकोज़ हमारे शरीर के विभिन्न अंगों तक नहीं पहुंच पाता और अंत में ग्लूकोज़ या शक्कर की मात्रा बहुत हो जाती है।

मधुमेह के 2 प्रकार होते हैं-

  • टाइप 1 मधुमेह (Types 1 Diabetes):
    मधुमेह के रोगी के शरीर में इन्सुलिन की मात्रा कम बनती हैं, जिसे केवल नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन हम चाहे कि इसे जड़ से खत्म कर दें तो यह संभव नहीं। इसमें रोगी को बाहर से इन्सुलिन दिया जाता हैं। जिससे उनका जीवन सामान्य चलता रहता हैं। टाइप 1 डाइबिटीज़ में अग्नाशय की बीटा कोशिकाएँ इन्सुलिन नहीं बना पाती हैं, जिसका उपचार असंभव हैं। डायाबिटिज़ बच्चों और 19 साल तक के युवाओं को बहुत जल्दी एफेक्ट करती है। जिसे शुरुवात मे ही कंट्रोल कर लेना चाहिए।
  • टाइप 2 मधुमेह (Types 2 Diabetes):
    टाइप 2 डाइबिटीज़ को योग, परहेज तथा उचित खान-पान के ज़रिये नियंत्रित किया जा सकता हैं। मधुमेह कि वजह से शरीर अधिक मात्रा मे इन्सुलिन बनाने में असमर्थ होता है और कई बार शरीर कम मात्रा में इन्सुलिन बनता तो है, लेकिन वह इन्सुलिन अच्छे से काम नहीं करते है। इस टाइप की डायाबिटिज़ उम्रदार लोगों को होती है। डायाबिटिज़ के रोगी के शरीर में शक्कर की मात्रा को संतुलित रखना अत्यंत आवश्यक होता हैं, क्यूंकि कम तथा अधिक दोनों ही स्थिती में रोगी के लिए यह प्राण घातक हो सकता हैं।

भारत मे डाइबिटीज़ के हालात-
भारत में डायबिटीज़ की बीमारी बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। जिसकी वजह से कई लोग परेशान है। लासेंट की पिछले साल नवंबर की रिपोर्ट की मानें तो, अगर ये ही हालात रहे तो, साल 2030 तक 9 करोड़ से ज़्यादा लोग देश में टाइप 2 डायबिटीज़ की गिरफ्त में होंगे। वहीं साल 2017 की बात करें तो उस वक्त भारत में डायबिटीज़ से पीड़ित लोगों की संख्या 7 करोड़ से अधिक थी। इस भागदौड़ भरी लाइफस्टाइल और खानपान में लापरवाही की वजह से डायबिटीज़ होना अब आम बात हो गई है।