भारत के 35 प्रतिशत बाघ क्षेत्र, संरक्षित क्षेत्रों से बाहर हैं: रिपोर्ट

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     नयी दिल्ली: भारत के 35 प्रतिशत बाघ क्षेत्र, संरक्षित क्षेत्रों के बाहर हैं और विकास गतिविधियों के बढ़ने के चलते भारत मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती चुनौती का सामना कर रहा है। वर्ल्ड वाइड फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा किये गये अध्ययन में यह भी कहा गया है कि मानव-वन्यजीव संघर्ष जंतुओं के लिए सबसे बड़ा खतरा है। 

    अध्ययन में 27 देशों के 40 संगठनों के 155 विशेषज्ञों ने योगदान दिया। ‘सभी का भविष्य–मानव-वन्यजीव सहअस्तित्व’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘वर्तमान में, भारत के 35 प्रतिशत बाघ क्षेत्र और अफ्रीकी तथा एशियाई हाथियों के 70 प्रतिशत क्षेत्र संरक्षित क्षेत्रों से बाहर हैं। ”

    इसमें कहा गया है कि, ‘‘समुद्री जीव, जैसे कि कछुआ, व्हेल, जो सालाना हजारों किलोमीटर का सफर करती हैं, का भी मानव से आमना-सामना बढ़ रहा है। इस स्थिति में मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। ” रिपोर्ट में कहा गया है कि स्थल पर और जल में रहने वाली कई अन्य मांसाहारी प्रजातियां जैसे कि ध्रुवीय भालू और भूमध्यसागरीय मोंक सील तथा हाथी जैसे विशालकाय शाकाहारी जंतु भी मानव-वन्यजीव संघर्ष से प्रभावित हो रहे हैं। 

    रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘भारत में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मिलने आंकड़ों से यह संकेत मिलता है कि 2014-2015 के बीच 500 से अधिक हाथी मारे गये, जिनमें से अधिकतर मामले मानव-जंतु संघर्ष से संबद्ध है। इसी अवधि में 2,361 लोग हाथियों के हमले में मारे गये। ”

    रिपोर्ट के मुताबिक भारत मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती चुनौती का सामना कर रहा है और इसकी वजह विकास संबंधी गतिवधियों से जंगलों पर बढ़ता दबाव है।  इसमें कहा गया है, ‘‘बाघों, हाथियों, एक सींग वाले गैंडे, एशियाई शेरों की सर्वाधिक संख्या के साथ-साथ विश्व का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश भारत मानव-वन्यजीव संघर्ष की तात्कालिक समस्याओं का सामना कर रहा है, जिसका अवश्य ही समाधान करना चाहिए ताकि संरक्षण का एक सामाजिक रूप से न्यायपूर्ण संरक्षण का लक्ष्य हासिल किया जा सके। भारत के हाथी (से जुड़ी चिंताएं) शायद इस समस्या को सबसे अच्छी तरह से बयां करती हैं।” 

    रिपोर्ट में कहा गया है , ‘‘भारत में हाथी अपने मूल अधिवास के सिर्फ तीन-चार प्रतिशत हिस्से में कैद होकर रह गये हैं, उनका शेष क्षेत्र वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन की भेंट चढ़ गया है। यह हाथियों को वनों और संरक्षित क्षेत्रों से बाहर जाने के लिए बाध्य कर कर रहा है ” 

    डब्ल्यूडब्ल्यूएफ में ग्लोबल वाइल्डलाइफ प्रैक्टिस लीडर मार्गरेट किनेर्ड ने कहा कि वैश्विक वन्यजीव आबादी 1970 से औसतन 68 प्रतिशत घट गई है।  यूएनईपी के पारिस्थितकी प्रभाग की निदेशक सुसान गार्डनर के मुताबिक यह रिपोर्ट मानव-वन्यजीव संघर्ष की समस्या बढ़ने की ओर राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करती है।