नई दिल्ली: एलजेपी नेता चिराग पासवान को दिल्ली हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। चाचा पशुपति नाथ पारस को लोकसभा में पार्टी का नेता बनाए जाने को लेकर दायर याचिका को ख़ारिज कर दिया है। दरअसल, एलजेपी के एक धड़े ने चिराग की जगह पशुपतिनाथ पारस को लोकसभा में एलजेपी का संसदीय दल नेता बनाने बनाने का प्रस्ताव लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को दिया, जिसको बिरला ने अपनी मंजूरी देती हुई पारस को नेता नियुक्त कर दिया था।
उच्च न्यायालय ने कहा, “यह काफी अच्छी तरह स्थापित है कि सदन के आंतरिक विवादों के नियमन का अधिकार अध्यक्ष का विशेषाधिकार है।” दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस रेखा पल्ली ने याचिका ख़ारिज करते हुए कहा, “इस याचिका में कोई दम नहीं है।” इसी के साथ अदालत ने चिराग पर जुर्माना लगाने का भी आदेश दिया था, लेकिन पासवान के वकील के कहने पर इस आदेश को वापस ले लिया।
HC dismisses LJP leader Chirag Pawan's plea challenging LS Speaker's decision to recognise Pashupati Paras as leader of party in the House
— Press Trust of India (@PTI_News) July 9, 2021
चिराग रास्ते से भटक गया
चिराग पासवान की याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा ख़ारिज पर केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस ने कहा, “मैं कोर्ट के फैसले का सम्मान करता हूं। रामविलास पासवान की संपत्ति पर चिराग पासवान का अधिकार है। वह मेरा भतीजा है, मैं उसे दर्द नहीं दूंगा, लेकिन वह रास्ते से भटक गया है। हर कोई उनके खिलाफ गया है।”
I respect the court's decision. Chirag Paswan has right to Ram Vilas Paswan's property. He is my nephew, I'll not cause him pain, but he has strayed off track. Everyone has gone against him: Union Minister Pashupati Kumar Paras on Delhi HC rejecting Chirag Paswan's plea pic.twitter.com/2ZHUKFu0Cv
— ANI (@ANI) July 9, 2021
क्या हुआ कोर्ट ने?
याचिका में लोकसभा अध्यक्ष के 14 जून के परिपत्र को रद्द करने की मांग की गई थी, जिसमें चिराग के चाचा पारस का नाम लोकसभा में लोजपा के नेता के तौर पर दर्शाया गया था। मंत्रिमंडल फेरबदल सह विस्तार के दौरान सात जुलाई को कैबिनेट मंत्री के तौर पर शपथ लेने वाले पारस ने अपने सियासी सफर का एक खासा हिस्सा अपने दिवंगत बड़े भाई राम विलास पासवान की छत्रछाया में बिताया है।
सुनवाई के दौरान चिराग का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता अरविंद वाजपेयी ने कहा कि पार्टी के छह सांसदों में से पांच ने पारस को सदन में लोजपा का नेता चुनने के लिये लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखा था और इस संदर्भ में निर्देश पारित किये गए थे। उन्होंने कहा कि इसके बाद पार्टी ने उन पांच सांसदों को हटाने का फैसला लिया और लोकसभा अध्यक्ष से संपर्क कर कार्रवाई करने तथा चिराग को सदन में पार्टी का नेता घोषित करने की मांग की थी।
वकील ने दलील दी कि लोकसभा अध्यक्ष ने हालांकि पारस को सदन में मान्यता देने की कथित गलती में सुधार नहीं किया। केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और लोकसभा अध्यक्ष के कार्यालय की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राज शेखर ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि चिराग अंतर-पार्टी विवाद को अदालत में सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी के छह में से पांच सदस्यों ने लोकसभा अध्यक्ष से इस तथ्य के साथ संपर्क किया था कि पारस पार्टी के व्हिप धारी हैं और अध्यक्ष की कार्रवाई में त्रुटि नहीं निकाली जा सकती।
अदालत ने कहा वह केंद्र और लोकसभा अध्यक्ष के कार्यालय के वकीलों की दलीलों से सहमत है। न्यायाधीश ने कहा, “अब यह बिल्कुल स्पष्ट है। अगर आप चाहते हैं तो यह आपकी इच्छा है। मैं साफ हूं कि यहा अंतर-पार्टी विवाद है। आप अपने उपायों को टटोल सकते हैं। आप फैसला कीजिए, उसके बाद मैं कुछ टिप्पणी करते हुए कोई आदेश पारित करूंगी।” चिराग के वकील ने इस पर कहा कि वह अंतर पार्टी विवाद सुलझाने के लिये यहां मौजूद नहीं हैं और मुख्य सचेतक यह दावा नहीं कर सकते कि उन्हें सदन में पार्टी का नेता घोषित किया जाए।
उच्च न्यायालय ने हालांकि यह स्पष्ट किया कि वह याचिका को स्वीकार नहीं करने जा रहा और कहा, “क्या अदालत इन सब मामलों में दखल दे।” चिराग ने सात जुलाई को याचिका दायर की थी और हिंदी में ट्वीट किया था कि उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष के पार्टी के निष्कासित संसद सदस्य पशुपति पारस को सदन में पार्टी के नेता के तौर पर मान्यता देने के शुरुआती फैसले के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है।
याचिका में कहा गया कि फैसले की समीक्षा का अनुरोध लोकसभा अध्यक्ष के समक्ष लंबित है और कई बार याद दिलाए जाने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय का रुख किया है।