पूर्वी लद्दाख में भारत- चीन सीमा गतिरोध शांतिपूर्ण तौर से हल होने की उम्मीद : आईटीबीपी प्रमुख

Loading

नई दिल्ली: भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के प्रमुख एस एस देसवाल ने कहा है कि पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सीमा गतिरोध के ‘जल्दी ही’ शांतिपूर्ण तरीके से हल होने की उम्मीद है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास बुनियादी ढांचे को भी तेजी से विकसित किया जा रहा है। 

बल के महानिदेशक देसवाल ने पीटीआई-भाषा के साथ एक विस्तृत साक्षात्कार के दौरान कहा कि उनके जवानों को सर्दियों के लिए विशेष कपड़े और पौष्टिक भोजन मुहैया कराए गए हैं क्योंकि उन्हें पूर्वी लद्दाख में अत्यंत प्रतिकूल मौसम का सामना करना होता है। उस क्षेत्र में भारत और चीन की सेनाएं पिछले करीब छह महीने से आमने-सामने हैं। 

पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ मौजूदा सैन्य गतिरोध के बारे में सवाल किए जाने पर देसवाल ने कहा, “द्विपक्षीय संबंधों में तनाव पहले से ही स्पष्ट है लेकिन हमें भरोसा है कि ये बहुत जल्द शांतिपूर्ण तरीके से सुलझ जाएंगे।” 

आधिकारिक सूत्रों ने बुधवार को कहा था कि भारत और चीन तनाव वाले सभी प्रमुख स्थानों से समयबद्ध तरीके से सैनिकों और हथियारों की वापसी के लिए तीन-चरणों वाली प्रक्रिया पर सहमत हुए हैं। उन्होंने कहा, ‘‘भारत-तिब्बत सीमा दुनिया की सबसे ऊंची अंतरराष्ट्रीय सीमा है। यह हर स्थान पर करीब 10-11 हजार फुट की ऊंचाई पर है। हमारे सभी जवान उस ऊंचाई पर तैनात हैं। ऑक्सीजन कम है, सर्दियों में तापमान शून्य से 40 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला जाता है।” 

उन्होंने कहा, ‘‘ये सभी कठिनाइयां उस क्षेत्र में इंसानों के अस्तित्व के लिए मुश्किलें पैदा कर देती हैं और उसके बाद सीमा पर गश्त करना भी उतना ही कठिन है।” उन्होंने कहा कि आईटीबीपी के जवानों का प्रशिक्षण लंबा है और हम सभी प्रकार के कौशल विकसित करते हैं तथा प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देते हैं ताकि वे प्रतिकूल वातावरण में भी टिके रह सकें। 

देसवाल ने कहा, ‘‘अपने जवानों की सुरक्षा के लिए हमने विशेष गर्म कपड़े मुहैया कराए हैं। हमने ठंड से बचे रहने के लिए उच्च पोषण और उच्च कैलोरी वाले भोजन पर जोर दिया है। ये उस सीमा पर कामकाजी स्थिति है और बिना सीमांकन वाली सीमा पर तैनाती के दौरान जवान को हमेशा सतर्क रहना होता है।” 

उन्होंने कहा कि गश्त से सीमा की सुरक्षा की जाती है और आईटीबीपी के जवान लंबी गश्त करते हैं जो 30 दिनों तक की होती है। आईटीबीपी में 90,000 कर्मी हैं और यह पहाड़ी क्षेत्र में युद्ध के लिए प्रशिक्षित बल है। आईटीबीपी प्रमुख ने लद्दाख मोर्चे के अपने हालिया दौरे के बारे में भी चर्चा की, जहां उन्होंने 8-9 दिन बिताए तथा मई और जून में चीनी सैनिकों के साथ संघर्ष के दौरान वीरता दिखाने के लिए अपने 291 कर्मियों को सम्मानित किया। 

उन्होंने कहा, ‘‘कठिन कामकाजी स्थितियां होने के बावजूद हमारे सैनिकों का मनोबल काफी ऊंचा है। कठिन समय और कठिन परिस्थितियों में अपने जवानों से मिलना मेरी जिम्मेदारी है। जब चीजें ठीक हों तो संभव है कि मैं उनसे मिलने नहीं जाऊं लेकिन जब वे कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहे हों तो उन तक पहुंचना मेरी जिम्मेदारी है।” 

सीमा पर बुनियादी ढांचे के विकास के बारे में देसवाल ने कहा कि नयी सीमा चौकियां बनाने और उन्हें हर मौसम में चालू रहने वाली सड़कों के साथ जोड़ने का काम तेज गति से चल रहा है। उन्होंने कहा कि लगभग 75 प्रतिशत आईटीबीपी सीमा चौकियों को सड़कों से जोड़ दिया गया है। वर्ष 1962 के चीनी आक्रमण के बाद इस बल की स्थापना की गयी थी और लद्दाख से लेकर भारत के पूर्वी हिस्से में अरुणाचल प्रदेश तक फैली हुई 3,488 किलोमीटर लंबी एलएसी पर इसकी करीब 180 चौकियां हैं। 

देसवाल ने कहा कि सरकार का ध्यान सीमा पर बेहतर अवसंरचना के निर्माण पर है ताकि स्थानीय आबादी के साथ-साथ सेनाएं भी अपने क्षेत्र के सभी दूरदराज के हिस्सों में पहुंच सकें। उन्होंने कहा, ‘‘सड़कों के निर्माण की गति अब काफी तेज है। पिछले कुछ वर्षों में, कई सड़कों का निर्माण किया गया है। जब आईटीबीपी का गठन किया गया था, तो गश्ती दल को लेह से दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) तक पैदल जाना होता था। वहां पहुंचने में एक महीने से अधिक समय लग जाता था। लेह और डीबीओ के बीच की दूरी करीब 250 किलोमीटर है। 

बल प्रमुख ने कहा, ‘‘हमें उम्मीद है कि सड़क निर्माण की इस गति से अगले 5-6 वर्षों में हमारी सभी चौकियां सड़कों से अच्छी तरह से जुड़ जाएंगी।” महानिदेशक ने कहा कि बल अपने संचार बुनियादी ढांचे को भी प्रौद्योगिकी के मौजूदा स्तर पर उन्नत बना रहा है। जहां तक हथियारों के उन्नयन की बात है तो बल इस मोर्चे पर मान्य द्विपक्षीय ‘प्रोटोकॉल’ के लिए प्रतिबद्ध है। (एजेंसी)