नयी दिल्ली. केंद्र ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नया परामर्श जारी कर महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में अनिवार्य कार्रवाई करने को कहा है। परमार्श में इसके साथ ही कानून के दुष्कर्म के मामलों में जांच दो महीने में पूरी करने और मौत के समय दिए गए बयान को केवल इसलिए खारिज नहीं करने को कहा है क्योंकि वह मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज नहीं किया गया। उत्तर प्रदेश के हाथरस में महिला के साथ कथित सामूहिक दुष्कर्म और हत्या को लेकर देशभर में फूटे गुस्से के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने तीन पन्नों का विस्तृत परामर्श जारी किया है।
Ministry of Home Affairs issues advisory to States and Union Territories for ensuring mandatory action by police in cases of crime against women. pic.twitter.com/dx1sQmzXLW
— ANI (@ANI) October 10, 2020
क्या-क्या कहा गया है परामर्श में :
- गृह मंत्रालय ने कहा कि सीआरपीसी के तहत संज्ञेय अपराधों में अनिवार्य रूप से प्राथमिकी दर्ज होनी चाहिए। परामर्श में कहा गया कि नियमों के अनुपालन में पुलिस द्वारा असफल होना न्याय देने के लिए उचित नहीं है।
- परामर्श में कहा गया कि महिला के साथ यौन उत्पीड़न सहित अन्य संज्ञेय अपराध संबंधित पुलिस थाने के न्यायाधिकारक्षेत्र से बाहर भी होता है तो कानून पुलिस को ‘शून्य प्राथमिकी’ और प्राथमिकी दर्ज करने का अधिकार देता है।
- गृह मंत्रालय ने कहा,
‘‘सख्त कानूनी प्रावधानों और भरोसा बहाल करने के अन्य कदम उठाए जाने के बावजूद अगर पुलिस अनिवार्य प्रक्रिया का अनुपालन करने में असफल होती है तो देश की फौजदारी न्याय प्रणाली में उचित न्याय देने में बाधा उत्पन्न होती है, खासतौर पर महिला सुरक्षा के संदर्भ में। ''
- राज्यों को जारी परमार्श में कहा गया,
‘‘सख्त कानूनी प्रावधानों और भरोसा बहाल करने के अन्य कदम उठाए जाने के बावजूद अगर पुलिस अनिवार्य प्रक्रिया का अनुपालन करने में असफल होती है तो देश की फौजदारी न्याय प्रणाली में उचित न्याय देने में बाधा उत्पन्न होती है, खासतौर पर महिला सुरक्षा के संदर्भ में। ''
- गृह मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन से कहा कि सीआरपीसी की धारा-173 में दुष्कर्म के मामले में पुलिस जांच दो महीने में भी पूरी करने और सीआरपीसी की धारा-164ए में ऐसे मामलों में पीड़िता का शिकायत दर्ज होने के 24 घंटे के भीतर उसकी सहमति से पंजीकृत डॉक्टर से चिकित्सा परीक्षण कराने का प्रावधान है।
- परामर्श में कहा गया कि भारतीय प्रमाण अधिनियम-1872 के तहत जिस व्यक्ति की मौत हो गई है उसके लिखित या मौखिक बयान को जांच में उपयोगी तथ्य माना जाता है जब उसकी मौत की वजहों या परिस्थितियों की जांच की जाती है।
- गृह मंत्रालय ने कहा,
‘‘माननीय उच्चतम न्यायालय का सात जनवरी 2020 का फैसला है जिसमें निर्देश दिया गया है कि जब किसी बयान को मृत्यु के समय दिया गया बयान माना जाता है और वह सभी न्यायिक समीक्षाओं को पूरा करता हैं तो उसे सिर्फ इसलिए नहीं खारिज किया जा सकता कि उसे मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज नहीं किया गया या पुलिस अधिकारी को बयान देने के समय वहां मौजूद किसी व्यक्ति ने सत्यापित नहीं किया।''
- परामर्श में कहा कि यह अनिवार्य है कि प्रत्येक यौन उत्पीड़न के मामले की जांच में यौन उत्पीड़न सबूत संग्रहण (एसएईसी) किट का इस्तेमाल किया जाए जिसके लिए गृह मंत्रालय नियमित तौर पर सबूतों को एकत्र करने, संरक्षित करने और फॉरेंसिक सबूतों की कड़ियों को जोड़ने का प्रशिक्षण और प्रशिक्षकों के लिए प्रशिक्षक (टीओटी) कार्यक्रम पुलिस, अभियोजक और चिकित्सा अधिकारियों के लिए चलाता है।
- परामर्श में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश को यौन अपराधियों और आदतन यौन उत्पीड़कों की पहचान के लिए संबंधित राष्ट्रीय डाटा बेस का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। इसमें गृह मंत्रालय ने पूर्व में जारी परामर्श का भी उल्लेख किया गया है।
- गृह मंत्रालय ने कहा, ‘‘राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से अनुरोध किया जाता है कि वे कानूनी प्रावधानों का कड़ाई से अनुपालन के लिए सभी निर्देशों का अनुपालन करें। दर्ज मामलों में समयबद्ध कार्रवाई के लिए आरोप-पत्र आदि की निगरानी करें।’