Maratha Reservation
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    नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने मराठा कोटा (Maratha Quota) मामले की सुनवाई के दौरान सोमवार को कहा कि राज्यों को शिक्षा (Education) को बढ़ावा देने और सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए संस्थानों की स्थापना के लिए और कदम उठाने चाहिए क्योंकि “सकारात्मक कार्रवाई” सिर्फ आरक्षण तक सीमित नहीं है। मराठा कोटा मामले की सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि इस उद्देश्य के लिए राज्यों द्वारा कई अन्य कार्य किए जा सकते हैं।

    पीठ ने कहा, “अन्य काम क्यों नहीं किए जा सकते। शिक्षा को बढ़ावा देने और अधिक संस्थानों की स्थापना क्यों नहीं की जा सकती? कहीं न कहीं इस विचार को आरक्षण से आगे लेकर जाना है। सकारात्मक कार्रवाई सिर्फ आरक्षण तक सीमित नहीं है।”

    पीठ में न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति रवीन्द्र भट शामिल हैं। झारखंड सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि इसमें राज्य के वित्तीय संसाधनों, वहां स्कूलों और शिक्षकों की संख्या सहित कई मुद्दे शामिल होंगे। शीर्ष अदालत शिक्षा और नौकरियों में मराठों को आरक्षण देने संबंधी 2018 महाराष्ट्र कानून की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।

    वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये हुई सुनवाई के दौरान सोमवार को महाराष्ट्र की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी एस पटवालिया ने इस मुद्दे पर राज्य में पहले हुए विरोध प्रदर्शनों का हवाला दिया और कहा कि यह एक “ज्वलंत मुद्दा” है। उन्होंने कहा, “यह वहां (महाराष्ट्र में) एक ज्वलंत मुद्दा है।”

    उन्होंने कहा, “एक रैली मुंबई में हुई थी और पूरा शहर में गतिरोध पैदा हो गया था। मामले में दलीलें अभी पूरी नहीं हुई है और मंगलवार को भी सुनवाई होगी। न्यायालय ने इससे पहले यह जानना चाहा था कि कितनी पीढ़ियों तक आरक्षण जारी रहेगा। न्यायालय ने 50 प्रतिशत की सीमा हटाए जाने की स्थिति में पैदा होने वाली असमानता को लेकर भी चिंता प्रकट की थी।”

    महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा था कि कोटा की सीमा तय करने पर मंडल मामले में (शीर्ष अदालत के) फैसले पर बदली हुई परिस्थितियों में पुनर्विचार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा था कि न्यायालयों को बदली हुई परिस्थितियों के मद्देनजर आरक्षण कोटा तय करने की जिम्मेदारी राज्यों पर छोड़ देनी चाहिए और मंडल मामले से संबंधित फैसला 1931 की जनगणना पर आधारित था। रोहतगी ने कहा था कि मंडल फैसले पर पुनर्विचार करने की कई वजह है, जो 1931 की जनगणना पर आधारित था। साथ ही, आबादी कई गुना बढ़ा कर 135 करोड़ पहुंच गई है।