RAFALE

  • मोदी सरकार के ऑफसेट पॉलिसी CAG ने हाल ही में उठाए थे सवाल.
  • 2005 से 2018 तक विदेशी कंपनियों से 66 हजार करोड़ रुपये के कुल 46 ऑफसैट हुए साइन.
  • किसी भी मामले में कोई भी टेक्नोलॉजी नहीं ​की गई ट्रांसफर नहीं ​की गई ​है.

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नयी दिल्ली.  एक खबर के अनुसार मोदी सरकार (Narendra Modi) ने नई रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी)-2020 में अपनी ऑफसेट पॉलिसी (Offset Policies) को  बदल दिया है।  इसके तहत अब सरकार  से सरकार, अंतर-सरकार और एकल विक्रेता से रक्षा खरीद में कोई ऑफसेट पॉलिसी लागू नहीं होगी।  

दरअसल फ्रांस के साथ राफेल सौदे में ऑफसेट पॉलिसी पूरी न होने पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की थी।  इसके बाद सरकार ने यह कदम उठाया।  इस पर विस्तार से विशेष सचिव और महानिदेशक (अधिग्रहण) अपूर्वा चंद्रा ने बीते सोमवार को बताया कि, “हमने ऑफसेट दिशानिर्देशों में कुछ जरुरी  बदलाव किए हैं।  इसके तहत अब से सरकार-से-सरकार, अंतर-सरकार और एकल विक्रेता रक्षा में कोई ऑफसेट पॉलिसी नहीं होगी।  बताया जा रहा है कि रक्षा मंत्रालय ने ऑफसेट पॉलिसी के जरिए विदेशी निर्माताओं से टेक्नॉलोजी हासिल करने में विफलता के बाद यह फैसला किया है। 

क्या है ऑफसेट डील?

अगर हम ऑफसेट एग्रीमेंट को आसान शब्दों में समझे  तो यह चाय में चीनी डालने के सामन होती है ।  यानी सरकार जब किसी कंपनी के साथ कोई जरुरी डील करती है तो कुछ दूसरी कंपनियों के साथ साइड डील भी होती है। इसे ही ऑफसेट डील कहते  हैं। 

इस प्रकार कि डील खासतौर पर सरकार और किसी डिफेंस कंपनी के साथ ही होती है, लेकिन कई बार सिविल कंपनियों के साथ भी ऐसी डील की जा सकती सकती है। जब भी किसी देश की सरकार किसी विदेशी कंपनी को ऑर्डर देती है तो वह एक ऑफसेट एग्रीमेंट की मांग करती है।  सरकार ऑफसेट डील की मांग इसलिए करती है, ताकि डील की रकम का कुछ फायदा घरेलू कंपनियों को भी हो।  

बता दें कि अब तक इसी ऑफसेट पॉलिसी के चलते , फ्रांस से 36 राफेल जेट की खरीद के मामले में निर्माता डसॉल्ट एविएशन और एमबीडीए को भारतीय रक्षा क्षेत्र में अनुबंध राशि का 30 प्रतिशत निवेश करने के लिए अनिवार्य किया गया था।  राफेल सौदे में जहां 36 फाइटर जेट 59,000 करोड़ रुपये में खरीदे गए, वहीं ऑफसेट क्लॉज 50 फीसदी था। 

वहीं कैग ने संसद में डिफेंस ऑफसेट पॉलिसी पर संसद में अपनी रिपोर्ट पेश की।  इसके मुताबिक, डसॉल्ट एविएशन से 59 हजार करोड़ रुपये में 36 राफेल विमानों की डील करते समय ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट में DRDO को कावेरी इंजन की तकनीक देकर 30 प्रतिशत ऑफसेट पूरा करने की बात तय हुई थी, लेकिन अभी तक उनकी तरफ से  यह वादा पूरा नहीं हो पाया  है। 

आपको यह भी बता दें कि भारत की ऑफसेट पॉलिसी के अनुसार विदेशी कंपनियों को अपने अनुबंध का 30 प्रतिशत हिस्सा भारत में रिसर्च या उपकरणों पर खर्च करना होता है।  पुरानी ​रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया में रक्षा मंत्रालय ने यह ऑफसेट नीति विदेशी कंपनियों से 300 करोड़ रुपये से ज्यादा के रक्षा सौदों के लिए ही बनाई थी, जिसे ​अब डीएपी-2020 में बदल दिया गया है।  

इसके साथ ही कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा यह भी था कि ​राफेल सौदे के अलावा ​​2015 से लेकर अब​ ​तक​ मोदी सरकार के कई मामलों में ​ऑफसेट पॉलिसी​ ​का पालन नहीं हुआ है।  ​​ऑफसेट का समझौता पूरा ​न होने पर ​​पॉलिसी में ऐसा कोई  भी नियम नहीं है, जिसके तहत विदेशी कंपनी पर कोई जुर्माना लगाया जा सके​। 

बताया गया है कि ​2005 से 2018 तक विदेशी कंपनियों से 66 हजार करोड़ रुपये के कुल 46 ऑफसैट साइन हुए। ​ इनमें से 90 % मामलों में कंपनियों ने ऑफ​सेट के बदले में सिर्फ सामान ही खरीदा है, किसी भी मामले  में कोई भी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर नहीं ​की गई ​है।  इस विफलता को देखते हुए अब भारत सरकार ने ऑफसेट पॉलिसी को ही बदल दिया है। 

गौरतलब है कि भारत ने डसॉल्ट एविएशन से सरकार-से-सरकार अनुबंध के माध्यम से 36 राफेल लड़ाकू विमान की खरीद की हैं।  इनमे से कुछ दिनों पहले भारत आए 5 राफेल जेट्स को भारतीय वायु सेना (IAF) में शामिल भी कर लिया गया है।  जीमे से कुछ फिलहाल लद्दाख में भी तैनात हैं।