राहत इंदौरी (Rahat Indori) अपने शेरो-शायरी और गज़लों मे हालात का दर्द बख़ूबी बयां करते थे। वैसे राहत इंदौरी (Rahat Indori) का हालात और दर्द से वास्ता बचपन से ही रहा।
“हम अपनी जान के दुश्मन को जान कहते हैं,
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं।“
जनवरी 1950… हिंदुस्तान के लिए बहुत मायने रखता है। इसी साल हिंदुस्तान का संविधान बना था। जिस साल और जिस महीने हिंदुस्तान का संविधान बना था, उसी साल उसी महीने इंदौर मे राहत इंदौरी (Rahat Indori) का भी जन्म हुआ।
राहत इंदौरी (Rahat Indori) अपने शेरो-शायरी और गज़लों मे हालात का दर्द बख़ूबी बयां करते थे। वैसे राहत इंदौरी (Rahat Indori) का हालात और दर्द से वास्ता बचपन से ही रहा। पिता रफ़तुल्लाह कुरेशी एक कपड़ा मिल मे कर्मचारी थे तो मां मकबूल बेगम घरेलू महिला थीं। गरीबी थी, मुश्किलें थीं पर उन्होने कभी हिम्मत नहीं हारी। अपने ख्वाब को पाने के लिए उन्होने पसीना बहाया, मेहनत की और अपनी लगन से सब कुछ पा लिया।
उर्दू अखबार घर पर आया करते थे… बस यहीं से राहत कुरैशी के अंदर छुपा राहत इंदौरी (Rahat Indori) बाहर आने लगा। कई दिक्कतों के बावजूद उन्होने इंदौर मे अपनी शुरुआती पढ़ाई पूरी की।बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी से उन्होने उर्दू साहित्य मे एमए किया। इसके बाद मध्य प्रदेश के भोज मुक्त यूनिवर्सिटी से उन्होने उर्दू साहित्य मे पीएचडी भी की।
वैसे तो राहत इंदौरी (Rahat Indori) बेहतरीन पेंटर थे और वो अच्छी ख़ासी पेंटिंग करते थे। पर शेरो-शायरी मे भी उन्हें दिलचस्पी थी। क़व्वाल किशन बेताब ने उन्हें रानीपुरे की बज़्म मे अदब लाईब्ररी मे ले आए। बज़्म ए अदब से निकली ये आवाज़ पूरे हिंदुस्तान मे ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया मे गूंजी।
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बतौर शायर राहत इंदौरी (Rahat Indori) की शुरुआत देवास के मुशायरे से हुई। माँ मकबूल बी ने उनकी सिफ़ारिश की थी। माँ की सिफ़ारिश मे कितनी ताकत होती है राहत इंदौरी (Rahat Indori) की कामयाबी को देख इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
अपने अंदाजे बयां के लिए राहत इंदौरी (Rahat Indori) ख़ूब पसंद किए गए। शुरुआती दौर मे उन्हें कोई जानता नहीं था, लेकिन जिस मुशायरे मे वो शेर पढ़ते थे उनके अंदाज़ का हर कोई दीवाना हो जाता था। देखते ही देखते शायरी की दुनिया मे राहत इंदौरी (Rahat Indori) का अंदाज़ बड़ा ही खास माना जाने लगा। उस दौर मे कुछ शायरों ने राहत इंदौरी (Rahat Indori) को चाँद की आँख मे आँख डालकर शेर पढ़ने वाला शायर भी कहा।
राहत इंदौरी (Rahat Indori) के शेर, गज़लें उन दिलों को हिम्मत और हौसले से नवाजती थी जो पस्त हो चुके होते थे।
“लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में, यहां पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है‘
सभी का ख़ून है शामिल यहां की मिट्टी में, किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है।”
इस पूरी गजल ने भी ऐसे कई पस्त दिलों की हौसला अफजाई की जो पूरी तरह टूट गए थे। राहत इंदौरी (Rahat Indori) अपने अंदाजे बयां के अलावा अपनी बेबाकी के लिए भी जाने जाते थे। शुरू से लेकर आख़िर तक हर दौर के मौजूदा हालात के खिलाफ आवाज़ बुलंद करना उनकी खासियत रही।
“सरहदों पर बहुत तनाव है क्या, कुछ पता तो करो चुनाव है क्या, और खौफ बिखरा है दोनों
समतो में, तीसरी समत का दबाव है क्या”
राहत इंदौरी (Rahat Indori) के शेरो-शायरी और गज़लों मे जोश और जज़्बे के अलावा नसीहत भी होती थी। यही वजह है की हर उम्र और हर तपके के लोगों को उनके अल्फ़ाज़ बहुत पसंद आते थे।
“बुलाती है मगर जाने का नहीं। ये दुनिया है इधर जाने का नहीं। मेरे बेटे इश्क़ कर, मगर हद से गुज़र जाने का नहीं।”
टिकटॉक के इस दौर मे भी राहत इंदौरी (Rahat Indori) का ये शेर आजके दौर मे भी ख़ूब पसंद किया गया। इसी से उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। एक नज़र उनके चुनिंदा शेरों पर डालते हैं
राहत इंदौरी के चुनिंदा शेर जो बहुत पसंद किए गए…
“एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तों
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो”
“बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूं पिला देनी चाहिए”
“वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा
मैं उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया”
“अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब है
लोगों ने पूछ पूछ के बीमार कर दिया”
“सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है”
“अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए”
“दो गज सही मगर ये मेरी मिल्कियत तो है,
मौत तूने मुझको जमींदार कर दिया”
“मैं जानता हूं दुश्मन भी कम नहीं,
लेकिन हमारी तरह हथेली पर जान थोड़ी है”
“किसने दस्तक दी, कौन है
आप तो अंदर है बाहर कौन है”
“शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे”
“ये ज़िंदगी जो मुझे क़र्ज़-दार करती रही
कहीं अकेले में मिल जाए तो हिसाब करूँ”
“हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते”
“जनाज़े पर मिरे लिख देना यारो
मोहब्बत करने वाला जा रहा है”
“दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए”
“आंख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो”
“मेरे हुजरे में नहीं और कहीं पर रख दो
आसमां लाए हो ले आओ ज़मीं पर रख दो”
“ये बूढ़ी क़ब्रें तुम्हें कुछ नहीं बताएँगी
मुझे तलाश करो दोस्तो यहीं हूँ मैं”
“अब ना मैं हूँ ना बाक़ी हैं ज़माने मेरे,
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे”
“लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सँभलते क्यूं हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूं हैं”
“मैं ताज हूं तो ताज को सर पर सजाएँ लोग
मैं ख़ाक हूं तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए”
“अजीब लोग हैं मेरी तलाश में मुझ को
वहाँ पे ढूँढ रहे हैं जहां नहीं हूँ मैं”
“बादशाहों से भी फेंके हुए सिक्के न लिए
हम ने ख़ैरात भी माँगी है तो ख़ुद्दारी से”
“ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था”
“हों लाख ज़ुल्म मगर बद-दुआ‘ नहीं देंगे
ज़मीन माँ है ज़मीं को दग़ा नहीं देंगे”
शेरो शायरी के अलावा राहत इंदौरी ने बॉलीवुड फिल्मों के गीत भी लिखे। उन्होने सर, खुद्दार, मर्डर, मुन्नाभाई एमबीबीएस, मिशन कश्मीर, करीब, इश्क, घातक और बेगम जान जैसी फिल्मों के गीत लिखे। हालांकि उन्हें बतौर शायर ही पहचाना गया।
राहत साहब न सिर्फ उर्दू अदब के बल्कि पूरे हिंदुस्तान के खुसुसी शायरों मे से एक थे। उनका यूं चले जाना पुरे मुल्क का बड़ा नुकसान है। आजके हालात मे उनके जैसे बेबाक शायर की ज़रूरत थी। खैर, उनके कहे अल्फ़ाज़ सदा हम सबको प्रेरित करते रहेंगे।
“मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना
लहू से मेरी पेशानी पर हिंदुस्तान लिख देना”
राहत इंदौरी (Rahat Indori) साहब को नवभारत की ओर से श्रद्धांजलि….
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