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    नयी दिल्ली. आज पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज (Sushma Swaraj) की दूसरी पुण्यतिथि (Second Death Anniversary) है। स्वर्गीय सुषमा स्वराज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के पहले कार्यकाल में विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने अमिट छाप छोड़ी। इतना ही नहीं उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए प्रवासी भारतीयों को संकट के समय मदद पहुंचाने में उन्होंने सहानुभूति और मानवीय दृष्टिकोण का अनुपम उदाहरण पेश किया था।

    पता हो कि सुषमा स्वराज का नाम भारतीय जनता पार्टी (BJP) के तेज तर्रार नेताओं में सबसे अलहदा स्थान रखती थी। सर्वोच्च न्यायालय की ये पूर्व अधिवक्ता सुषमा स्वराज नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में भारत की विदेश मंत्री भी रह चुकी थीं। इसके साथ ही उन्हें 7 बार संसद सदस्य के रूप में और 3 बार विधान सभा के सदस्य के रूप में चुना गया है।

    इसके साथ ही उन्होंने 13 अक्टूबर 1998 से दिल्ली के 5 वें मुख्यमंत्री के रूप में भी काम किया। वास्तव में, उन्हें ही दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया था। वहीँ वे विभिन्न क्षमताओं में कई सामाजिक और सांस्कृतिक निकायों से जुड़ी हुई थी। लेकिन फिर अपने सफल राजनीतिक करियर के बीच खराब स्‍वास्‍थ्‍य के चलते उन्‍होंने 2019 के चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था। वहीं बीते 6 अगस्‍त 2019 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया था।

    उनके जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य : 

    • सुषमा स्वराज कभी भी अपने ‘गृहक्षेत्र’ में लोकसभा चुनाव नहीं जीतीं। यूँ तो वो वो अपने ‘घर’ में 3 बार लोकसभा चुनाव लड़ी और तीनों बार ही उन्हें शिकस्त मिली। वो भी एक ही नेता चिरंजी लाल से।
    • उनका राजनीतिक जीवन 1970 के उत्तरार्ध दशक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP)के साथ शुरू हुआ था।
    • सुषमा स्वराज ने प्रेम विवाह किया था। यह वह जमाना जब लड़कियों को पर्दे में ही रखा जाता था। खुद सुषमा स्वराज के मां-बाप भी उब्नकी शादी के लिए राजी नहीं थे। 
    • सुषमा स्वराज के पति का नाम स्वराज कौशल है। इन लोगों का विवाह 13 जुलाई 1975 को हुआ। पति स्वराज कौशल सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील रह चुके हैं।
    • सुषमा स्वराज अपने 25 साल की अल्पायु में ही हरियाणा की कैबिनेट मंत्री बन चुकी थीं। उनकी एक बेटी है बांसुरी, जो भी पेशे से वकील है। 
    • सुषमा स्वराज ने 2019 में लोकसभा चुनाव न लड़ने का फैसला लिया था। हालाँकि उनके स्वास्थ्य के चलते ही उन्होंने ये फैसला लिया था, वो कितनी तकलीफ में हैं उन्होंने ये अपने अंतिम समय तक किसी को भी जाहिर होने नहीं दिया।
    • यह सुषमा स्‍वराज की ही कोशिशें थीं कि 15 साल पहले भटककर सरहद पार पाकिस्‍तान पहुंच गई 8 साल की ही मासूम गीता को भारत लाया जा सका। गीता जब भारत लौटी तब उसकी उम्र 23 साल की हो चुकी थी।
    • वे केवल 2 बार नहीं बल्कि 7 बार संसद सदस्य के रूप में चुनी गई थीं। वह उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार की विजेता भी थीं।
    • इतना ही नहीं सुषमा स्‍वराज को भारत में एक राजनीतिक पार्टी की पहली महिला प्रवक्ता बनने का गौरव भी प्राप्त हुआ था।

    सुषमा स्वराज देश की उन चुनिंदा मंत्रियों में से थीं, जिनकी पहचान उनकी पार्टी से नहीं बल्कि उनके काम और राजनीतिक कामों के जरिए भी होती थी। सुषमा स्वराज के अंतिम समय तक उन्होंने अपने कामों से देश की राजनीति और अपनी पार्टी में एक अलग जगह बनाई हुई थी। सुषमा ने नौकरशाही में हमारे विश्वास को बहाल किया  और अधिक से अधिक लोगों की मदद करके दुनिया भर में प्रशंसा हासिल की। उनकी हमेशा से ही पूरी कोशिश रही थी कि वे दूसरों के लिए उपलब्ध रहें और उनकी हेल्‍प करें। इस जननायिका का बीते 6 अगस्‍त 2019 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया था। लेकिन वे आज भी हमारे स्मृति पटल में सजीव हैं।