दिन में पांच बार बदला जाता है द्वारकाधीश मंदिर का ध्वज, 2023 तक भक्तों ने कराया एडवांस बुकिंग

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    द्वारका: दुनिया में प्रसिद्ध मंदिरों में से एक द्वारकाधीश मंदिर (Dwarkadhish Temple) पर कल बिजली गिरी। इस दौरान मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ, लेकिन मंदिर के शीर्ष में लगे 52 गज का ध्वज को नुकसान पहुंचा है। मंदिर के शिखर में लगे इस ध्वज को दिन में पांच बार बदला जाता है। जिन्हे यहां आने वाले भक्त स्पॉन्सर करते हैं। ध्वज फहराने के लिए भक्तों में होड़ लगी रहती है। साल 2023 तक श्रद्धलुओं ने ध्वज फहराने के लिए एडवांस बुकिंग करा ली है। 

    आइये जानते हैं, द्वारकाधीश मंदिर और ध्वज से जुड़ी रोचक बातें:

    अबोटी ब्राह्मण करते हैं ध्वजारोहण 

    मंदिर में दिन भर में पांच बार आरती होती हैं। जिसमें मंगला आरती सुबह 7.30 बजे, श्रृंगार सुबह 10.30 बजे, इसके बाद सुबह 11.30 बजे, फिर संध्या आरती 7.45 बजे और शयन आरती 8.30 बजे होती है। इसी दौरान ध्वज चढ़ाया जाता है। मंदिर की पूजा करने का अधिकारी जहां गुगली ब्राह्मण करते हैं, वहीं ध्वज बदलने का काम अबोटी ब्राह्मण करते हैं। 

    जो परिवार या लोग ध्वज को स्पॉन्सर करता है, वह ध्वज बदलने के समय ढोल बाजे और नाचते गाते हैं। उनके हाथ में ध्वज होता है, पहले इसे भगवन को चढ़ाया जाता है। जिसके बाद अबोटी ब्राह्मण इसे मंदिर के शीर्ष पर लेकर जाते हैं और ध्वज को बदलते हैं। बदले हुए ध्वज को बदलने वाले लोग उसे अपने पास रखते हैं और उससे भगवन के कपड़े बनातें हैं। 

    द्वारकाधीश मंदिर पर 52 गज का ध्वज क्यों?

    द्वारकाधीश मंदिर में फहराता ध्वज कई किलोमीटर दूर से साफ देखा जा सकता है, क्योंकि यह झंडा पूरे 52 गज का है। 52 गज के इस झंडे के पीछे के कई मिथक हैं।

    • कुछ लोगों का मानना है कि द्वारकानगरी पर 56 प्रकार के यादवों का शासन था। उस समय सभी के अपने महल थे और सभी पर अपने-अपने ध्वज लगे थे। मुख्य भगवान कृष्ण, बलराम, अनिरुद्ध और प्रद्युम्न ये चार भगवानों के मंदिर अभी भी बने हुए हैं। जबकि बाकी के 52 प्रकार के यादवों के प्रतीक के रूप में भगवान द्वारकाधीश के मंदिर पर 52 गज का ध्वज फहराया जाता है।
    • एक और कहानी है कि 12 राशि, 27 नक्षत्र, 10 दिशाएं, सूर्य, चंद्र और श्री द्वारकाधीश मिलकर 52 होते हैं।
    • एक और मान्यता है कि द्वारका में एक वक्त 52 द्वार थे। ये उसी का प्रतीक है। 

    ध्वज में सूर्य और चंद्रमा के प्रतीक   

    मंदिर के शीर्ष में लगे ध्वज में सूर्य और चंद्रमा के प्रतीक होते हैं। मान्यता के अनुसार, जब तक सूर्य और चंद्रमा रहेंगे तब तक यह मंदिर रहेगा। द्वारका हिंदू धर्म में चारधाम की तीर्थ यात्रा में एक है। द्वारका में द्वारकाधीश कृष्ण का मंदिर उसी जगह है, जहां हजारों साल पहले द्वापर युग में भगवान कृष्ण की राजधानी थे।

    2023 तक ध्वज फहराने की एडवांस बुकिंग

    भक्तों में मंदिर के शीर्ष पर ध्वज चढ़ाने का कितना महत्व है, इससे समझा जा सकता है कि, श्रद्धालुओं ने 2023 तक ध्वज फहराने की  एडवांस  बुकिंग करवा चुके हैं। भक्त भगवान द्वारकाधीश के मंदिर में ध्वज अर्पण करते हैं और मानते हैं कि भगवान उन पर आशीर्वाद बरसाएंगे। यही कारण है कि कई श्रद्धालु ध्वज अर्पित करते हैं। ध्वज अर्पित करने के लिए एडवांस बुकिंग की जाती है। लेकिन छह महीने के लिए बुकिंग बंद है।