वीरगाथा : ऐतिहासिक कारगिल युद्ध की जानें अनसुनी कहानियां

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    नई दिल्ली :  देश के वीर जवानों की वजह से आज हम भारत में सुकून से सांस ले पा रहे है। इतिहास में कई महत्वपूर्ण युद्ध हुए जिन्हे हम आज भी अपने जेहन में याद करते है। ऐसा ही एक युद्ध हुआ था, जो हमारे देश के वीरो के शौर्य रचना का प्रतीक बन गया। कारगिल युद्ध में देश के लिए बलिदान हुए तमाम जवानों के स्वजनों और देश के सभी नागरिकों की आंखों में शौर्य और पीड़ा की मिली-जुली भावना दिखती है। कारगिल युद्ध से जुडी ऐसी अनकही कहानियां है।

     दुख के साथ गौरव का क्षण  

    कारगिल युद्ध को हमने दो पहलु में जिया न केवल हमने बल्कि जवानों के परिवार ने भी। ये तरफ हमारे जवानों की सहादत थी तो दूसरी और विजय हासिल हुआ था। जिंदगी की ओर एक कदम दुख के साथ बढ़ता है, तो दूजा कदम गौरव का पड़ता है। एक आंख से कलेजे के टुकड़े को खोने की पीड़ा तो दूजी से गर्व की लोर बहती है। जिंदगी में सुख-दुख की यह कैसी जुगलबंदी है जो अपनों के गम में टूटकर भी साहस और गौरव से भरी रहती है। एक फौजी माटी के मान और देश की शान के समर्पण में जिंदगी को यूं ही हंसते हुए बलिदान कर देता है।

    527 जवानों की शहादत को सलाम 

    माटी उसकी शहादत से उर्वर रहती है और तिरंगे में उसकी कुर्बानी का मान सदा के लिए सजा रहता है। अपनों के सिरहाने हर दिन उसकी यादें सजी रहती हैं। यही तो है शौर्य वीर के जीवन की पूंजी। इनके बलिदान का मान। इसी शहादत को आप हम और सारा देश जब भी सुनता है तो कुछ क्षण के लिए आश्चर्यचकित हो उठता है और हर सीना गौरवांवित हो जाता है लेकिन मां-पिता-बहन-पत्नी-भाई-बच्चों के दिल में तो ताउम्र उनकी यादें आठों प्रहर धड़कती हैं। कारगिल युद्ध के 21 बरस बाद भी उन 527 जवानों की शहादत कलेजे से यूं ही लिपटी है। वीरों के इसी बलिदान को हम अंनत काल तक याद करेंगे। 

    सूबेदार मेजर योगेन्द्र सिंह जान पर खेलकर लड़े कारगिल युद्ध 

    सूबेदार मेजर योगेन्द्र सिंह करगिल जंग के ऐसे ही वीर हैं जिन्होंने बीस साल पहले टाइगर हिल पर अपनी जान पर खेलकर इसे दुश्मनों से आजाद कराया था। सूबेदार मेजर योगेन्द्र सिंह जो आज भी सेना में रहकर देश की सेवा कर रहे हैं। करगिल जंग में जंग लड़ने वाले 18 ग्रेनेडियर्स के सूबेदार मेजर योगेन्द्र सिंह का कहना है कि उन्होंने कई गोलियां खाने के बाद भी टाइगर हिल पर जीत दर्ज की थी। सूबेदार मेजर योगेन्द्र सिंह का कहना है कि टाइगर हिल की ऊंचाई 17,000 फीट से ज्यादा है। जिस समय करगिल जंग की शुरुआत हुई तो यह रेंज द्रास की सबसे ऊंची रेंज में से ही एक थी। बर्फ और ऊंचाई की आड़ में पाकिस्तानी आतंकियों ने अपने बंकर तैयार कर रखे थे जिससे छिपकर वह हमारे सैनिकों को निशाना बना रहे थे और उनकी लोकेशन का अंदाजा भी नहीं लग पा रहा था। 

    सूबेदार मेजर योगेन्द्र सिंह ने बताया कि करगिल जंग के दौरान शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा इन्हीं पहाड़ियों में शहीद हुए थे। अब इस चोटी पर शहीद कैप्टन बिक्रम बत्रा प्वांइट नाम दिया गया मस्कोह घाटी को कब्जा करने के मकसद से चोटी 4875 जीतनी अहम थी। विक्रम बतरा ने पाकिस्तानी सैनिकों ने लेते हुए इस पीक को खाली कराया मगर इस जंग में विक्रम बतरा शहीद हो गए. उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र दिया गया गया। 

    करगिल युद्ध के दूसरे योद्धा ब्रिगेडियर कुशाल

    करगिल युद्ध में तोलोलिंग के योद्धा ब्रिगेडियर कुशाल ठाकुर ने सरहद पर सेना की तैयारियों के बारे में  बताते हुए कहां , ‘करगिल युद्ध के बाद पिछले 20 सालों में कई बार करगिल जाने पर मुझे इस बात का आभास हुआ कि हमारी सेना के जवानों और युवा अधिकारियों के जोश में कोई कमी नहीं है। इसी जोश ने करगिल में जीत दिलाई थी। 

    पहाड़ों की ऊंची छोटी पर युद्ध करना था कठनाई भरा 

    ब्रिगेडियर कुशाल ठाकुर ने कहा, ‘आज सरहद पर सेना ने रक्षा तैयारी कई गुना बढ़ाई है। पहली अहम बात करगिल युद्ध से सबक लेते हुए पिछले 20 सालों में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से लगने वाली लाइन ऑफ कंट्रोल पर अपनी तैयारियों को कई गुना बढ़ा दिया है। ब्रिगेडियर कुशाल ने दूसरी अहम बात बताते हुए कहा कि करगिल युद्ध दौरान भारतीय सेना को सबसे ज्यादा नुक्सान पहाड़ की ऊंची छोटी पर बैठे दुश्मन के हमले से उठाना पड़ा था ऐसे में अब सेना ने ज्यादातर ऊंची चोटियों तक पहुंचने के लिए रास्ते और सड़क बना ली हैं। टाइगर हिल, तोलोलिंग जैसी ऊंची चोटियों पर सेना ने दर्जनों मजबूत पोस्ट कायम कर ली हैं। 

    बोफोर्स तोप बना गेम चेंजर

    जानकारी के मुताबिक, करगिल की लड़ाई में बोफोर्स तोप एक ऐसा ब्रह्मास्त्र साबित हुआ जिसने गेम चेंजर का काम किया। अब हम आपको बोफोर्स की मारक क्षमता से रूबरू कराते हैं। बोफोर्स अब इन ऊंचे पहाड़ों पर सेना की मुख्य ताकत बन चुकी है। बोफोर्स की 40 किलोमीटर की मारक को देखते हुए दुश्मन इसके आसपास भी नहीं फटक सकता। 15 साल पहले बोफोर्स तोप को रात के वक्त दुश्मन से छुपाकर लाया गया था लेकिन आज ये तोप द्रास करगिल की हर पहाड़ी से परिचित हो गयी है। 

    ऐसे याद किया जाता है कारगिल विजय दिवस 

    इन सब के बीच द्रास में तोलोलिंग पहाड़ी के नीचे बने करगिल युद्ध स्मारक पर हर साल की तरह शहीदों को याद किया जाता है। युद्ध में शहीद 527  सैनिकों की याद में करगिल वार मेमोरियल में 562 लैम्प जलाये जाते है। सेना के बैंड शहीदों की याद में खास धुन भी बजाते हैं। भारत ने इस ऑपरेशन विजय का जिम्मा प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से करीब दो लाख सैनिकों को सौंपा था। जंग के मुख्य क्षेत्र कारगिल-द्रास सेक्टर में करीब तीस हजार सैनिक मौजूद थे। 

    दो महीनों सभी ज्यादा चला युद्ध 

    करगिल युद्ध के बाद पाकिस्तान के 600 से ज्यादा सैनिक मारे गए और जबकि 1500 से अधिक घायल हुए।  भारतीय सेना के 562 जवान शहीद हुए और 1363 अन्य घायल हुए। विश्व के इतिहास में करगिल युद्ध दुनिया के सबसे ऊंचे क्षेत्रों में लड़ी गई जंग की घटनाओं में शामिल है। दो महीने से ज्यादा चले इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को मार भगाया था। आखिरकार 26 जुलाई को आखिरी चोटी पर भी जीत मिली और ये दिन करगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।