Prasad raised questions on the basis of the arrangement of the apex court on collegium reinstatement

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नयी दिल्ली:  केन्द्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने शुक्रवार को कहा कि वह उच्चतम न्यायालय की कॉलेजियम प्रणाली का सम्मान करते हैं लेकिन मंत्रालय सिर्फ डाक घर की तरह काम नहीं करेगा और एक पक्ष होने के नाते अपनी भूमिका निभाएगा। अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद की ओर से आयोजित प्रोफेसर एन.आर. माधवा मेनन मेमोरियल लेक्चर श्रृंखला के अंतिम व्याख्यान में ‘कोविड-19 के बाद भारत के लिए कानूनी एवं डिजिटल चुनौतियां’ विषय पर प्रसाद व्याख्यान दे रहे थे। सभी श्रद्धालुओं के सबरीमला मंदिर में प्रवेश के मुद्दे पर कानून मंत्री ने कहा कि प्रोफेसर मेनन ने सबरीमला पर बहुत कड़ा रुख अपनाया था।

उन्होंने कहा कि प्रो. मेनन इस बात को मानते थे कि कॉलेजियम प्रणाली अब प्रासंगिक नहीं है और उसे बदलने की जरुरत है क्योंकि उसका समय खत्म हो गया है। उन्होंने कहा, ‘‘हम सभी जानते हैं कि राजग सरकार ने न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) सुझाया। संसद के दोनों सदनों और 50 प्रतिशत से ज्यादा विधानसभाओं से आमसहमति से इसे पारित किया। फिर भी उच्चतम न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया।”

प्रसाद ने कहा, ‘‘हम उच्चतम न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हैं, लेकिन मैं एक बात कहना चाहूंगा और उस पर बहस चाहूंगा। न्यायालय ने कहा कि न्यायिक आयोग में कानून मंत्री भी एक सदस्य हैं, ऐसे में सरकार के खिलाफ कोई याचिका आने पर नियुक्त व्यक्ति द्वारा की गई प्रक्रिया स्वतंत्र एवं तर्कपूर्ण नहीं होगा। लेकिन, अगर ऐसी बात है तो कानून का छात्र होने के नाते मेरी कई शंकाएं हैं, जिनकी जिक्र मैं पहले भी कर चुका हूं।”

इसी दौरान प्रसाद ने कहा कि कोरोना वायरस संक्रमण से जुड़ा केन्द्र सरकार का मोबाइल ऐप आरोग्य सेतु पूरी तरह से सुरक्षित है। निजता को लेकर उठ रहे सवालों और चिंताओं के बीच कानून मंत्री ने कहा कि आरोग्य सेतु ऐप की सुरक्षा में कोई सेंध नहीं लगी है और न हीं आंकड़ों के साथ कोई दिक्कत हुई है। उन्होंने कहा कि यह ऐप भारत की डिजिटल मस्तिष्क की देन है और यह कोरोना वायरस संक्रमण के खिलाफ आगाह करता है।(एजेंसी)