Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द किया और मामले को दोबारा ट्रायल कोर्ट भेजा। File Photo

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    नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने नारद स्टिंग (Narada sting case) से जुड़े मामले में सीबीआई (CBI) द्वारा 17 मई को चार नेताओं की गिरफ्तारी के दिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) और कानून मंत्री मलय घटक (Law Minister Moloy Ghatak) की भूमिका पर उनके द्वारा हलफनामा दाखिल करने से कलकत्ता उच्च न्यायालय के इनकार के खिलाफ अपील पर 22 जून को सुनवाई करने का फैसला किया। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन की अवकाशकालीन पीठ ने उच्च न्यायालय से सोमवार को मामले की सुनवाई नहीं करने का अनुरोध किया, लेकिन शीर्ष अदालत आदेश के खिलाफ राज्य सरकार और घटक की अपीलों पर एक दिन बाद विचार करेगी।

    पीठ ने आदेश में कहा, ‘‘मंगलवार को सूचीबद्ध करें। सॉलिसिटर जनरल (तुषार मेहता) ने पेश किया है। विशेष अवकाशकालीन याचिकाओं की प्रति उन्हें सौंपी जाए…इस बीच हमें आशा है कि उच्च न्यायालय सोमवार की सुनवाई को बुधवार तक के लिए टाल देगा।”

    कलकत्ता उच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने नौ जून को नारद स्टिंग टेप मामले को सीबीआई की विशेष अदालत से उच्च न्यायालय स्थानांतरित करने की सीबीआई की अर्जी पर सुनवाई की थी। पीठ ने कहा था कि मामले में चार नेताओं की गिरफ्तारी के दिन बनर्जी और घटक की भूमिकाओं के लिए उनके द्वारा पेश हलफनामे पर विचार करने का बाद में फैसला किया जाएगा।

    कानून मंत्री और राज्य सरकार की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी और विकास सिंह ने कहा कि उच्च न्यायालय के हलफनामे को रिकॉर्ड पर लाना जरूरी है क्योंकि वे 17 मई को संबंधित व्यक्तियों की भूमिका पर विचार कर रहे हैं। द्विवेदी ने कहा कि कानून मंत्री कैबिनेट की बैठक में हिस्सा ले रहे थे और वह सुनवाई के समय अदालत परिसर में नहीं थे। उन्होंने कहा कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के अधिकारी भी मौके पर नहीं थे क्योंकि एजेंसी के वकील ने डिजिटल तरीके से सुनवाई में हिस्सा लिया।

    आरोप लगाया गया है कि राज्य के सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने मामले में 17 मई को चारों नेताओं की गिरफ्तारी के बाद सीबीआई को अपना वैधानिक कर्तव्य निभाने में अड़चन डालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। पीठ ने कहा, ‘‘आप आंशिक रूप से सही नहीं हो सकते हैं। यह कहा गया था कि वह (कानून मंत्री) अदालत में थे।”

    द्विवेदी ने कहा, “सीबीआई ऐसी एजेंसी है जिसका लक्ष्य सच सामने लाना है। वे खुद सीबीआई कार्यालय में थे और डिजिटल तरीके से अदालत को संबोधित किया था। उन्हें नहीं पता था कि अदालत में क्या हुआ है। विधि मंत्री इस पर अदालत को अबतक अवगत नहीं करा पाए हैं।”

    सिंह ने कहा कि नियमों के तहत हलफनामा दाखिल करने का अधिकार है और सीबीआई ने तीन हलफनामे दाखिल किए और अदालत से इसकी अनुमति नहीं ली थी। उच्च न्यायालय ने नौ जून को बनर्जी और घटक के हलफनामे पर बाद में विचार करने का फैसला किया था। सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि हलफनामों को देरी के आधार पर स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि वे उनकी दलीलें पूरी होने के बाद दायर किए गए थे। नारद स्टिंग टेप मामले को सीबीआई की विशेष अदालत से उच्च न्यायालय स्थानांतरित करने के लिए दाखिल एक याचिका में मुख्यमंत्री और कानूनी मंत्री को पक्ष बनाया गया है।

    सीबीआई ने दावा किया था कि चारों आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद मुख्यमंत्री कोलकाता में सीबीआई कार्यालय में धरना देने लगीं, वहीं घटक बंशाल अदालत परिसर में मौजूद थे जहां सीबीआई की विशेष अदालत में डिजिटल तरीके से मामले की सुनवाई हो रही थी। उच्च न्यायालय के आदेश पर सीबीआई ने नारद स्टिंग मामले में मंत्री सुब्रत मुखर्जी और फरहाद हकीम, तृणमूल कांग्रेस के विधायक मदन मित्रा और कोलकाता के पूर्व महापौर शोभन चटर्जी को गिरफ्तार किया था। उच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने सुनवाई स्थगित कर दी थी और सोमवार को अगली सुनवाई के लिए मामले को सूचीबद्ध किया था। (एजेंसी)