Supreme Court

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नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को केन्द्र सरकार से जानना चाहा कि वह देश में भवन और निर्माण श्रमिकों के निमित्त कोष का इस्तेमाल कोविड-19 के दौरान दूसरों के लिये करने हेतु अध्यादेश क्यों नहीं जारी कर सकती। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से मामले की सुनवाई करते हुये कहा कि दूसरे श्रमिक भी समान रूप से गरीब हैं और सरकार को इस मामले में सक्रिय होना होगा।

पीठ ने अतिरिक्त सालिसीटर जनरल माधवी दीवान से सवाल किया, ‘‘आप ऐसा अध्यादेश क्यों नहीं लाते कि कोविड-19 अवधि के दौरान आप निर्माण श्रमिकों के निमित्त कोष का इस्तेमाल दूसरे श्रमिकों के लिये भी कर सकते हैं।” दीवान ने पीठ से कहा कि वह इस बारे में आवश्यक निर्देश प्राप्त करेंगी और न्यायालय को इससे अवगत कराएंगी। यह मुद्दा मध्य प्रदेश सरकार के एक आवेदन पर सुनवाई के दौरान उठा। इस आवेदन में राज्य सरकार ने भवन और निर्माण श्रमिकों की कल्याण योजनाओं के तहत बने कोष में एकत्र 1,985 करोड़ रूपए में से एक हजार करोड़ रूपए निकालने की अनुमति न्यायालय से मांगी है।

मप्र सरकार के वकील ने पीठ से कहा कि राज्य सरकार को धन की आवश्यकता है क्योंकि महामारी की वजह से राजस्व में 50 फीसदी तक की कमी हो गयी है। उन्होंने कहा कि निर्माण और भवन श्रमिकों के कल्याण की योजनाओं के तहत एकत्र यह धनराशि राज्य कल्याण बोर्ड के पास है। राज्य सरकार के वकील ने कहा, ‘‘हम एक हजार करोड़ रूपये के लिये अनुरोध करते हैं और इसके लिये राज्य कल्याण बोर्ड को ब्याज भी देंगे जो उसे 12 महीने में मिलेगा।

हम ब्याज सहित राज्य कल्याण बोर्ड को यह धनराशि लौटा देंगे।” यह आवेदन देश भवन निर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिये बने दो कानूनों-भवन और अन्य निर्माण श्रमिक (रोजगार का नियमन और सेवा शर्ते) कानून, 1996 तथा भवन और अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण अधिभार कानून, 1996- को लागू कराने के लिये 2006 में दायर याचिका में दाखिल किया गया है। हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील ने मप्र सरकार के इस आवेदन का विरोध किया।

पीठ ने राज्य सरकार के वकील से जानना चाहा कि वे दूसरे काम के लिये बने इस कोष से एक हजार करोड़ रूपए क्यों निकालना चाहते हैं। इस पर वकील ने कहा, ‘‘हम इस राशि को हर साल एकत्र करते हैं और हर साल इसे वितरित करते हैं।” उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी की वजह से मप्र में अनेक प्रवासी श्रमिक आये हैं और राज्य उन्हें भुगतान नहीं कर सकता क्योंकि वे पंजीकृत नहीं हैं।

पीठ ने जानना चाहा, ‘‘आप उन्हें पंजीकृत क्यों नहीं करते? आप उनकी पहचान कीजिए जिन्हें आप यह लाभ देना चाहते हैं। एक बार आप उनकी पहचान कर लेंगे तो आप उन्हें यह लाभ दे सकते हैं।”

राज्य सरकार के वकील ने कहा कि राज्य सिर्फ उन्हीं श्रमिकों का पंजीकरण कर सकता है जो भवन और निर्माण कार्य में शामिल हैं क्योंकि 1996 के कानून के तहत बना यह कोष सिर्फ उन्हीं श्रमिकों के लिये है। पीठ ने दीवान से यह सवाल करते हुये कि क्या इस धन का इस्तेमाल दूसरे श्रमिकों के लिये करने के वास्ते अध्यादेश जारी किया जा सकता है, कहा कि सरकार यह शर्त लगा सकती है कि इससे धन निकालने वालों को इस निश्चित अवधि में इसे वापस करना होगा।

पीठ ने कहा, ‘‘केन्द्र की ओर से पेश अतिरक्त सालिसीटर जनरल माधवी दीवान आवश्यक निर्देश के लिये समय चाहती हैं। मामले को दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया जाये।” (एजेंसी)