Ashfaqulla Khan

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    Ashfaqulla Khan Death Anniversary: अशफ़ाक़ उल्ला खान एक स्वतंत्रता सेनानी, कवि और काकोरी शहीद थे। उन्होंने न केवल स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि उनकी कई कविताएं है जो अभी भी हमें क्रांतिकारी चीजें करने के लिए प्रेरित करती हैं। क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी अशफ़ाक़ उल्ला खान का जन्म 22 अक्टूबर 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में मज़रुनिस्सा के घर हुआ था, जबकि 19 दिसंबर 1927 को शहीद हो गए थे। आज उनकी 94वीं जयंती है।

    अशफ़ाक़ उल्ला खान छह भाई बहनों में सबसे छोटे थे। वर्ष 1920 में महात्मा गांधी ने भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध असहयोग आंदोलन आरंभ किया था। लेकिन वर्ष 1922 में चौरी चौरा कांड के बाद महात्मा गांधी ने आंदोलन वापस ले लिया। इसके बाद अशफ़ाक़ उल्ला खान ने समान विचारधारा वाले स्वतंत्रता सेनानियों के साथ 1924 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया।

    हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का उद्देश्य भारत में स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए एक सशस्त्र क्रांति का आयोजन करना था। 9 अगस्त 1925 को अशफ़ाक़ उल्ला खान सहित उनके क्रांतिकारी साथियों राम प्रसाद ‘बिस्मिल’, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह, शचीन्द्रनाथ बख्शी, चन्द्रशेखर आज़ाद, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, बनवारी लाल, मुरारी शर्मा, मुकुन्दी लाल और मन्मथनाथ गुप्त ने मिलकर लखनऊ के निकट काकोरी में रेलगाड़ी में जा रहा ब्रिटिश सरकार का खजाना लूट लिया।

    ब्रिटिश सरकार ने खजाना लुटे जाने के बाद लुटेरों की तलाश शुरू कर दी लेकिन एक माह बीत जाने के बाद भी ट्रेन का कोई लुटेरा गिरफ्तार नहीं हुआ। इसी बीच ब्रिटिशों ने 26 अक्टूबर 1925 की एक सुबह बिस्मिल को पुलिस ने पकड़ लिया। जबकि अशफ़ाक़ उल्ला खान अकेले थे जिनका पुलिस कोई सुराख नहीं लगा सकी। वो छुपते हुए बिहार से बनारस चले गए, जहां उन्होंने 10 महीने तक एक अभियांत्रिकी कंपनी में काम किया।

    अशफ़ाक़ उल्ला खान अभियांत्रिकी के आगे के अध्ययन के लिए विदेश में जाना चाहते थे जिससे स्वतंत्रता की लड़ाई को आगे बढ़ाया जा सके। वह देश छोड़ने के लिए दिल्ली चले गए। उन्होंने अपने एक पठान दोस्त की सहायता ली जो पहले उनका सहपाठी रह चुका था। हालांकि उनके दोस्त ने उन्हें धोखा दिया और उनका ठिकाना पुलिस को बता दिया। जिसके बाद 17 जुलाई 1926 की सुबह पुलिस उनके घर आई और उन्हें गिरफ्तार किया।

    काकोरी डकैती मामले में बिस्मिल, खान, राजेन्द्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी। जबकि अन्य 16 लोगों को चार साल कैद से लेकर उम्रकैद तक की सजा हुई। 19 दिसंबर 1927 को फैजाबाद जेल में अशफ़ाक़ उल्ला खान को फांसी की सजा दी गई। उनके क्रांतिकारी व्यक्तित्व, प्रेम, स्पष्ट सोच, अडिग साहस, दृढ़ निश्चय और निष्ठा के कारण लोगों के लिए वो शहीद माने गये। खान को आज भी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान के लिए याद किया जाता है।