असम, बुधवार को आखिर प्रचंड बहस के बाद राज्यसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पारित हो गया है. विदित हो कि लोकसभा में ये विधेयक सोमवार को ही पारित हो गया है। जहाँ लोकसभा में इस विधेयक के पक्ष में 311 वोट
असम, बुधवार को आखिर प्रचंड बहस के बाद राज्यसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पारित हो गया है. विदित हो कि लोकसभा में ये विधेयक सोमवार को ही पारित हो गया है। जहाँ लोकसभा में इस विधेयक के पक्ष में 311 वोट पड़े, वहीं विपक्ष में 80 वोट पड़े थे। राज्यसभा इसके पक्ष में 125 और विरोध में सिर्फ 99 मत पड़े। जिसके बाद राज्यसभा में यह ऐतिहासिक बिल पास हो गया है। अब नागरिकता संशोधन विधेयक को संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिल गई है। इसके बाद विधेयक पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह कानून भी बन जाएगा। लेकिन अब जहाँ इस विधेयक को कोर्ट में चैलेंज करने की तैयारी हो रही है। वहीं असम और कई पूर्वोत्तर राज्य भी इस विधेयक के चलते अब आग में उबल रहे हैं।
असम में तो वैसे इस विधेयक के लिए पहले से ही विरोध हो रहा था। लेकिन अब इसके पारित होने से वहां व्यापक प्रदर्शन हो रहे हैं। जहाँ असमी जनता विरोध-प्रदर्शन करते हुए "आरएसएस गो-बैक" के नारे लगा रहे हैं, वहीं वे अपने अपने नारों में सत्ताधारी बीजेपी को सतर्क भी कर रहे हैं। एक तरफ ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के कार्यकर्ताओं ने सड़कों पर उतर कर मशाल जुलूस कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ असम के स्थानीय कलाकार, लेखक – बुद्धिजीवी वर्ग और विपक्षी दल अलग-अलग तरीक़ों से अपना विरोध जता रहे हैं। सूत्रों के अनुसार संसद के दोनों सदनों में नागरिकता संशोधन विधेयक पारित हो जाने के बाद भी कांग्रेस अब भी हार मानने वाली नहीं है। कहा जा रहा है कि संसद में विधेयक का भारी विरोध करने के बाद अब कांग्रेस इस बिल को कोर्ट में ले जाने की तैयारी कर रही है।
क्यों हो असम में इस विधेयक का विरोध
अगर हम इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ने जाएं तो हमें इस विरोध के जड़ तक जाना होगा। दरअसल पूर्वोत्तर राज्यों के स्वदेशी लोगों का एक बड़ा वर्ग इस बात से डरा हुआ है कि नागरिकता बिल के पारित हो जाने से जिन शरणार्थियों को नागरिकता मिलेगी उनसे उनकी पहचान, भाषा और संस्कृति ख़तरे में पड़ जाएगी। वहीं ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने भाजपा पर नागरिकता संशोधन बिल की आड़ में हिंदू वोट बैंक की राजनीति करने का आरोप लगा रही है। वहीं पत्रकारों का एक विशिष्ट समूह को कैब लागू होने पर असमिया लोगो के अपने में भाषाई अल्पसंख्यक होने का दर सत्ता रहा है। क्यूंकि इनके अनुसार असम में सालों पहले आकर बसे बंगाली बोलने वाले मुसलमान पहले अपनी भाषा बंगाली ही लिखते थे लेकिन असम में बसने के बाद उन लोगों ने असमिया भाषा को अपनी भाषा के तौर पर स्वीकार कर लिया है। अब जहाँ इनके अनुसार राज्य में असमिया भाषा बोलने वाले 48 फ़ीसदी लोग हैं। अब अगर बंगाली बोलने वाले मुसलमान असमिया भाषा छोड़ देते हैं तो यह 35 फ़ीसदी ही बचेंगे, जबकि असम में बंगाली भाषा 28 फ़ीसदी है और वहीं कैब लागू होने से ये 40 फ़ीसदी तक पहुंच जाएगी।
फ़िलहाल तो असमिया यहां एकमात्र बहुसंख्यक भाषा है। लेकिन अब असमी लोगो को ये डर भी सता रहा है कि बहुसंख्यक भाषा का ये दर्जा कैब के लागू होने से, गाहे-बगाहे बंगाली लोगों के पास चला जाएगा। इसके अलावा कैब के लागू होने से यहां धार्मिक आधार पर राजनीतिक ध्रुवीकरण के आसार ज्यादा होंगे और वहीं स्थानीय और क्षेत्रीय मुद्दों की अहमियत धीरे धीरे क्रमशःघट जाएगी।लोगों का यह भी सोचना है कि बीजेपी और आरएसएस के लोग हिंदू के नाम पर सभी लोगों को एक टोकरी में लाने की मंशा काफ़ी हद तक यहां सफल भी हो चुकी है। जिसके चलते असमी संस्कृति की संप्रभुता भी खतरे पड़ने के आसार हैं।
वहीं असम के कुछ बुद्धजीवियों का ये भी मानना है कि नागरिकता संशोधन बिल में जहाँ धार्मिक उत्पीड़न के कारण पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से आए हुए हिंदू, सिख, पारसी, जैन और ईसाई लोगों को कुछ शर्तें पूरी करने पर भारत की नागरिकता देने की बात कही जा रही है। वहीं असम में नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी की फ़ाइनल लिस्ट से जिन 19 लाख लोगों को बाहर किया गया है उनमें क़रीब 12 लाख हिंदू बंगाली बताए जा रहे हैं। जिसके चलते लोगो का ये भी मानना है कि बीजेपी नेताओं का पहले एनआरसी को पूरी तरह ख़ारिज करना और फिर अब नागरिकता संशोधन बिल को सदन से पारित करवाने का ये प्रयास बीजेपी के हिंदू वोट बैंक की राजनीति की तरफ इंगित करता है।
उधर ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन से छात्र राजनीति की शुरुआत करते हुए असम के मुख्यमंत्री और बीजेपी के कद्दावर नेता सर्वानंद सोनोवाल ने व्यापक आंदोलन को देखते हुए कहा कि,"हमारी सरकार ने कभी भी जाति को नुकसान नहीं पहुंचाया है और कभी नहीं पहुंचाएगी और हम असमिया जाति की सुरक्षा के लिए शुरू से काम कर रहे हैं और आप लोग हमारे काम को देख भी रहे हैं। मैं आंदलोन कर रहे लोगों को बताना चाहता हूं कि आप लोग आंदोलन के ज़रिए असम का भविष्य नहीं बदल सकते।"
फिलहाल तो असम, नागरिकता संशोधन विधेयक के पारित होने के विरोध में हो रहे आंदोलन में जल रहा है वहीं इस विधेयक ख़िलाफ़ गुवाहाटी विश्वविद्यालय के एक छात्र ने अपने ख़ून से एक संदेश लिखकर विरोध जताया है। जिस तरह से असम में व्यापक प्रदर्शन हो रहा है, वो एक तरह से केंद्र शासन को एक चुनौती है कि अगर वक़्त रहते पूर्वोत्तर राज्यों को लेकर इस विधेयक की समीक्षा नहीं की गयी तो बात और बिगड़ सकती है और इसी तरह वहां का छात्र वर्ग अपना ध्यान पढ़ने-लिखने में न लगाकर इसी प्रकार अपने खून से विरोध प्रदर्शन करता रहेगा।
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