बाबा आमटे: अपना पूरा जीवन कुष्ठ रोगियों के लिए समर्पित करनेवाले, स्वतंत्रता आंदोलन में भी थे सहभागी

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    नई दिल्ली: दुनिया में कुछ लोग ऐसा काम कर जातें है, जो लोगों को दिलो में हमेशा जिंदा रहते है।अपना पूरा जीवन कुष्ठ रोगियों और जरूरतमंदों की सेवा के लिए समर्पित करनेवाले बाबा आमटे (Baba Amte Birth Anniversary) जिनकी आज 107 वीं जयंती है। इन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी अपनी अहम भूमिका निभाई थी। बता दें कि, बाबा आमटे ने जब एक कुष्‍ठरोगी को देखा, तब से उनका जीवन पूरी तरह बदल गया था। उन्होंने 35 साल की उम्र में ही अपनी वकालत को छोड़कर समाजसेवा शुरू कर दी थी। बाबा की जयंती पर आइये जानते है उनके जीवन से जुडी कुछ बातें.. 

    बाबा आमटे का जन्म 

    समाजसेवी बाबा आमटे का जन्म महाराष्ट्र के वर्धा जिले के हिंगनघाट में 26 दिसंबर, 1914 को एक धनी परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम मुरलीधर देवीदास आमटे था। उनके माता पिता उन्हें ‘बाबा’ कहकर बुलाते थे। आगे चलकर यही बाबा आमटे की पहचान बनी। बाबा के पिता का नाम देवीदास आमटे और पिता का नाम लक्ष्मीबाई था। उनके पिता ब्रिटिश भारत के प्रशासन में शक्तिशाली नौकरशाह थे। बाबा के पिता वर्धा जिले के धनी जमींदार भी थे। 

    बाबा आमटे की शिक्षा  

    समाजसेवी बाबा आमटे ने एमए.एलएलबी तक की पढ़ाई की थी। उनकी पढ़ाई नागपुर के क्रिस्चियन मिशन स्कूल में हुई थी। जिसके बाद उन्होंने नागपुर यूनिवर्सिटी में लॉ की पढ़ाई की और कई दिनों तक वकालत भी की थी। बाबा आमटे ने अपने पैतृक शहर में भी वकालत की थी जो कि काफी सफल रही थी।

    शादी

    बाबा आमटे ने साल 1946 में साधना गुलशास्त्री से शादी की थी। उनकी पत्नी ने भी उनके सामाजिक कार्यों में उनके साथ कड़ी थी। वह मानवता में विश्वास करती थीं। उनकी पत्नी साधना गुलशास्त्री ताई के नाम से काफी लोकप्रिय थीं। जिन्हें बाद में दो बच्चे हुए प्रकाश और विकास आमटे। बता दें कि बाबा आमटे के दोनों बेटें डॉक्टर हैं और वह भी गरीबों की मदद कर रही है। 

    स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका

    भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका समाजसेवी बाबा आमटे उस समय राष्ट्र पिता महात्मा गांधी और विनोबा भावे से काफी प्रभावित थे। उन्होंने ने  महात्मा गांधी और विनोबा भावे के साथ मिलकर पूरे भारत भर भ्रमण किया। उन्होंने देश के गांवों मे अभावों में जीने वालें लोगों की असली समस्याओं को समझने की कोशिश की। 

    बाबा आमटे ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में भी खुलकर भाग लिया था।उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में होने वाले बड़े आंदोलनों में भी भाग लिया था। दूसरे विश्वयुद्ध के समय 8 अगस्त, 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ था। इस आंदोलन  के दौरान बाबा आमटे ने पूरे भारत में बंद लीडरों का केस लड़ने के लिए वकीलों को संगठित किया था।

    समाज सेवा

    सामाजिक कार्यकर्ता बाबा आमटे का जीवन उस दिन पूरी तरह बदल गया था, जब उन्‍होंने एक कुष्‍ठरोगी को देखा था। इस घटना ने उन्‍हें जरूरतमंदों की मदद के लिए प्रेरित किया और उन्होंने 35 साल की उम्र में ही अपनी वकालत को छोड़कर समाजसेवा शुरू कर दी थी। बाबा ने जब एक कुष्ठ रोग के मरीज को देखा था।

    तब उन्होंने कहा था कि व्यक्ति शरीर का अंग से ज्यादा अपना जीवन खोता है, साथ ही अपनी मानसिक ताकत खोने के साथ अपना जीवन भी खो देता है। उन्होंने कुष्ठ रोगियों के बारे में जानकारी इकट्ठा की और उनके  सेवा के लिए आनंदवन नामक संस्था की स्थापना की थी। यहां पर अब भी कुष्ठ रोगियों की सेवा निःशुल्क की जाती है।

    उल्लेखनीय है कि, जो कुष्ठरोगी कभी समाज से अलग होकर रहते और भीख मांगते थे, उन्हें बाबा आमटे ने श्रम के सहारे समाज में सर उठाकर जीना सीखाया। आनंद वन  के अलावा और कई कुष्ठरोगी सेवा संस्थानों जैसे, सोमनाथ, अशोकवन आदि की स्थापना की है जहां हजारों रोगियों की सेवा की जाती है। 

    पुरस्कार

    समाजसेवी बाबा आमटे को उनके महानकार्यों के लिए विभिन्न पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्हें 1971 में पद्मश्री, 1978 में राष्‍ट्रीय भूषण, 1986 में पद्म विभूषण और 1988 में मैग्‍सेसे पुरस्‍कार मिला है।

    समाजसेवी बाबा आमटे के साहित्‍य

    समाजसेवी बाबा आमटे ने अपने जीवन में सामाजिक कार्य के साथ साहित्‍य के क्षेत्र में भी योगदान दिया है। उन्होंने ज्वाला आणि फुले नाम से काव्य संग्रह और उज्ज्वल उद्यासाठी नाम से काव्‍य भी लिखा।

    निधन

    भारत के विख्यात समाजसेवक बाबा आमटे का निधन 9 फरवरी, 2008 को महाराष्ट्र के आनंद वन में हुआ था।