
सीमा कुमारी
नवभारत डिजिटल टीम: कल यानी गुरूवार 28 सितंबर को महान क्रांतिकारी ‘भगत सिंह’ (Bhagat Singh jayanti 2023) की 116वीं जयंती है। कल आजादी के उस नायक का जन्मदिन है जो महज 23 साल की उम्र में फांसी में झूलने के बाद भी कल के युवाओं के दिल में जिंदा हैं। हम बात कर रहे हैं भारत मां के सच्चे सपूत भगत सिंह की। जिनका भारत की आजादी की लड़ाई में भगत सिंह का बहुत बड़ा योगदान रहा है।
उन दिनों में भगत सिंह सभी नौजवानों के लिए यूथ आइकॉन थे, जो उन्हें देश के के लिए कुछ कर गुजरने और देश के प्रति अपना योगदान देने की प्रेरणा देते थे। महज 23 साल की उम्र में ही देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले भगत सिंह का जन्म सिख परिवार में हुआ था। उन्होंने बचपन से अंग्रेजों द्वारा भारतीय लोगों पर अत्याचार होता देखा, तभी से उनके मन में देश के लिए कुछ करने की ज्वाला उत्पन्न हो गई थी। ऐसे में कल उनकी जयंती पर आइए जानें उनके 23 साल के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में जो लोगों के अंदर देशभक्ति के जुनून को पैदा करती है।
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर के बांगा (अब पाकिस्तान में) गांव के एक सिख परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। पिता किशन सिंह अंग्रेज और उनकी शिक्षा को पहले से ही पसंद नहीं करते थे इसलिए बांगा में गांव के स्कूल में शुरुआती पढ़ाई के बाद भगत सिंह को लाहौर के दयानंद एंग्लो-वैदिक स्कूल में दाखिला दिलवा दिया गया।
भगत सिंह सिख धर्म से थे। जिसमें पगड़ी और दाढ़ी रखना बहुत जरूरी होता है लेकिन उन्होंने अंग्रेजों की नजर से बचने के लिए कटवा दिए थे। जॉन सॉन्डर्स की हत्या के लगभग एक साल बाद उन्होंने अपने सहयोगी बटुकेश्वर दत्त के साथ दिल्ली के सेंट्रल असेंबली हॉल में बम फेंके और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए थे। यहीं पर उनकी गिरफ्तारी भी हो गई थी।
भगत सिंह गिरफ्तारी के बाद जेल में भी देश की स्वतंत्रता को लेकर कैदियों को प्रेरित करते रहे जिसको लेकर अंग्रेजी हुकूमत परेशान हुई। उनके ऊपर जब केस चला तो उन्होंने कोई भी बचाव अपनी ओर से पेश नहीं किया था। इस दौरान भी वो लगातार आजादी को लेकर लोगों को प्रेरित करते रहे।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, भगत सिंह ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए लाहौर में पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट को मारने की साजिश रची थी, लेकिन उसकी सही पहचान ना कर पाने के कारण उन्होंने ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स को गोली मार दी।
भगत सिंह को सजा-ए मौत की सजा 7 अक्टूबर 1930 को सुनाई गई। 23 मार्च 1931 को उन्हें फांसी दे दी गई। फांसी की सजा सुनाने वाला न्यायाधीश का नाम जी.सी. हिल्टन था।
भगतसिंह की शहादत से न केवल अपने देश के स्वतंत्रता संघर्ष को गति मिली बल्कि नवयुवकों के लिए भी वह प्रेरणा स्रोत बन गए। वह देश के समस्त शहीदों के सिरमौर बन गए। उनके जीवन पर आधारित कई हिन्दी फिल्में भी बनी हैं जिनमें- द लीजेंड ऑफ भगत सिंह,शहीद,शहीद भगत सिंह आदि। कल भी सारा देश उनके बलिदान को बड़ी गंभीरता व सम्मान से याद करता है। भारत और पाकिस्तान की जनता उन्हें आजादी के दीवाने के रूप में देखती है जिसने अपनी जवानी सहित सारी जिंदगी देश के लिए समर्पित कर दी।