नई दिल्ली: भारत इस समय अपनी कुल बिजली जरूरतों में से 70 प्रतिशत के लिये कोयले पर निर्भर है और 2030 तक 50 प्रतिशत गैर-जीवाश्म ईंधन प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण होगा। ऐसे में कोयला अगले पांच दशक तक भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करता रहेगा। उद्योग विशेषज्ञों ने यह कहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सोमवार को की गयी घोषणा के बाद विशेषज्ञों ने यह राय जताई है। उन्होंने जलवायु सम्मेलन (सीओपी-26 में कहा कि भारत वर्ष 2070 तक शुद्ध रूप से शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करेगा। डेलॉयट टच तोहमात्सु में भागीदार देबाशीष मिश्रा ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘कोयला अगले पांच दशकों तक भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना जारी रखेगा और 2040 के दशक में यह चरम पर होगा। इसलिए हमें कोयला खदानों और बुनियादी ढांचे में निवेश जारी रखने की जरूरत है। अन्यथा हमें इस साल अक्टूबर में जिस तरीके से ईंधन संकट का सामना करना पड़ा है, उसी प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।”
उन्होंने कहा कि केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2030 तक भारत की कोयला आधारित बिजली घरों की क्षमता मौजूदा 2,10,000 मेगावॉट से बढ़कर 2,67,000 मेगावॉट पहुंच जाने का अनुमान है। साथ ही पुरानी क्षमताओं को हटाया भी जाएगा।
इसीलिए, ऐसी कोई स्थिति नहीं है, जिससे तापीय कोयला क्षमता जलवायु सम्मेलन में जतायी गयी प्रतिबद्धता की वजह से अटकेगी। कोल इंडिया के पूर्व चेयरमैन पार्थ सारथी भट्टाचार्य ने कहा कि कोयला अभी बना रहेगा और शुरू में वास्तव में मात्रा बढ़ानी होगी। उन्होंने कहा, ‘‘हिस्सेदारी घटेगी लेकिन मात्रा और क्षमता के हिसाब से यह मौजूदा स्तर से संभवत: बढ़ेगी।’