Supreme court
सुप्रीम कोर्ट (File Photo)

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    नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को आंध्र प्रदेश से कहा कि वह 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाएं कराने के लिए राज्य द्वारा सुझाए एहतियाती कदमों से आश्वस्त नहीं है और जब तक वह इस बात से संतुष्ट नहीं होता कि कोविड-19 के कारण किसी की मौत नहीं होगी तब परीक्षाएं कराने की अनुमति नहीं दी जाएगी। न्यायालय ने कहा कि वह कई अन्य राज्यों की तरह किसी की मौत होने के मामले में मुआवजे के पहलू पर भी विचार कर सकता है। 

    कई राज्य कोविड-19 के कारण होने वाली मौत के लिए एक करोड़ रुपये देते हैं। न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की विशेष पीठ ने राज्य के स्थायी वकील महफूज ए नज्की से परीक्षा कराने की वजह बताते हुए ‘‘फाइल का स्नैपशॉट” न्यायालय में पेश करने को कहा। पीठ ने 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाएं कराने के आंध्र प्रदेश सरकार के फैसले पर उससे कड़े सवाल किए। 

    पीठ ने कहा, ‘‘हम उन एहतियाती कदमों से संतुष्ट नहीं हैं जो आप परीक्षाएं कराते वक्त उठाएंगे। आपने जो व्यवस्था दी है हम उससे आश्वस्त नहीं हैं। जब तक हम संतुष्ट नहीं होते कि आप बिना किसी के हताहत हुए परीक्षाएं कराने में सक्षम हैं तब तक हम आपको परीक्षाएं कराने की अनुमति नहीं देंगे।” पीठ ने कहा, ‘‘परीक्षा के दौरान किसी की मौत होने के मामले में मुआवजे के पहलू को हमें देखना होगा। कुछ राज्यों ने कोविड के कारण होने वाली मौत के लिए एक करोड़ रुपये का मुआवजा दिया है। हम उस पहलू के जरिए भी चीजों को देख सकते हैं।” 

    शीर्ष अदालत कोविड-19 महामारी के मद्देनजर बोर्ड परीक्षाएं न कराने के राज्य सरकारों को निर्देश देने का अनुरोध करने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायलाय ने परीक्षाओं के लिए कक्षाओं में 5,19,510 छात्रों को बैठाने की व्यवस्था पर खास चिंता जतायी और कहा कि राज्य सरकार का कहना है कि एक कक्षा में अधिकतम 15 से 18 छात्र होंगे। 

    पीठ ने कहा, ‘‘अगर आपके आंकड़ों पर चले तो हर कक्षा में 15 छात्रों के लिए आपको 34,644 कमरों की आवश्यकता होगी और अगर हम हर कक्षा में 18 छात्रों को बैठाने की बात करे तो आपको 28,862 कमरों की जरूरत होगी। हमें बताइए आप कहां से ये सभी कमरे लाएंगे।” न्यायालय ने नज्की से कहा, ‘‘केवल परीक्षाएं कराने के लिए परीक्षाएं मत कराइए। यह सिर्फ पांच लाख छात्रों के परीक्षाएं देने की बात नहीं है बल्कि इस प्रक्रिया में प्रत्येक कक्षा के लिए 34,000 पर्यवेक्षकों समेत एक लाख से अधिक लोग शामिल होंगे। आपको उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा के बारे में भी सोचना होगा।” 

    न्यायालय ने कहा कि राज्य को कोरोना वायरस की दूसरी लहर के असर को ध्यान में रखना चाहिए कि यह कितनी जल्दी फैली और अगर तीसरी लहर आती है तो वह इससे कैसे उबरेगा। पीठ ने कहा, ‘‘क्या आपके पास किसी आकस्मिक स्थिति से निपटने की योजनाएं हैं? अगर आप तीसरी लहर की चपेट में आ जाते हैं या कोई अवांछित स्थिति पैदा हो जाती है तो आप इससे कैसे निपटेंगे। हमने आपके हलफनामे में ऐसी कोई चीज नहीं देखी। यहां कोई भी कुछ साबित करने के लिए नहीं है। 

    आपको छात्रों तथा शिक्षकों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के बारे में सोचना चाहिए।” नज्की ने कहा कि बड़ी दिक्कत यह है कि 10वीं कक्षा के छात्रों को केवल ग्रेड दिए गए और छात्रों के मूल्यांकन का कोई तंत्र नहीं है। इस पर पीठ ने कहा, ‘‘हम आपकी परेशानी समझते हैं कि ग्रेड्स को अंकों में बदलने या छात्रों का मूल्यांकन करने में दिक्कत होगी। लेकिन हर समस्या के दस समाधान होते हैं। 

    आपको विशेषज्ञों से बात करनी चाहिए। आप यूजीसी, सीबीएसई, सीआईएससीई या अन्य राज्यों और विशेषज्ञों से बात कर सकते हैं तथा एक फॉर्मूला निकाल सकते हैं। कई राज्यों को दिक्कतें थीं लेकिन उन्होंने परीक्षाएं रद्द करने का फैसला किया।” शीर्ष अदालत ने इस पर भी चिंता जताई कि आंध्र प्रदेश ने परीक्षाओं या नतीजों के लिए कोई समयसीमा नहीं बतायी है और उसने राज्य को यह स्पष्ट करने के लिए कहा ताकि छात्रों के मन में कोई अनिश्चितता की स्थिति न हो। 

    न्यायालय ने कहा, ‘‘आप चीजों को अनिश्चितता में नहीं रख सकते। अगर आप परीक्षा कराना चाहते हैं तो हमें कल तक एक ठोस योजना चाहिए। हम जानना चाहते हैं कि आपका कोविड प्रोटोकॉल प्रबंधन क्या है और आप कैसे इसे लागू करेंगे। आपको यह पता होना चाहिए कि कोविड-19 की पहली और दूसरी लहर अलग है और विशेषज्ञों के अनुसार तीसरी लहर भी अलग होगी। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और केरल में डेल्टा स्वरूप को लेकर सतर्क किया गया है।” 

    उच्चतम न्यायालय ने नज्की को पूरी योजना बताते हुए शुक्रवार तक एक हलफनामा दायर करने को कहा और अदालत को यह आश्वस्त करने के लिए कहा कि किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए उसके पास सभी आवश्यक संसाधन हैं। पीठ ने केरल के हलफनामे पर भी गौर किया जिसमें कहा गया कि उसने 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाएं करा ली है और वह सितंबर में 11वीं कक्षा की परीक्षाएं भी कराएगा। 

    सोमवार को असम, त्रिपुरा और कर्नाटक सरकारों ने शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि उन्होंने महामारी के कारण 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाएं रद्द कर दी हैं। शीर्ष अदालत को 17 जून को बताया गया था कि 28 में से छह राज्यों ने बोर्ड परीक्षाएं करा ली है, 18 राज्यों ने परीक्षाएं रद्द कर दी है लेकिन चार राज्यों (असम, पंजाब, त्रिपुरा और आंध्र प्रदेश) ने अभी तक इन्हें रद्द नहीं किया है। (एजेंसी)