
नयी दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने नफरती भाषण मामले में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे को बोकारो की एक अदालत की ओर से जारी समन आदेश रद्द कर दिया और कहा कि आस्था व धर्म से संबंधित भावनाएं काफी लचीली होती हैं और ये किसी एक व्यक्ति के विचार से न तो आहत हो सकती हैं और न ही भड़क सकती हैं।
न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने कहा कि भारत की एकता विभिन्न धर्मों, आस्थाओं और भाषाओं के “सहअस्तित्व” पर निर्भर करती है तथा वे धर्म एवं आस्थाएं सदियों से बरकरार हैं तथा रहेंगी। अदालत ने कहा कि ये इंसानों की तरह नाजुक नहीं होतीं।
न्यायाधीश ने एक अन्य आदेश में भारतीय दंड संहिता के तहत हत्या, दंगों, और नफरती भाषण से संबंधित आरोपों में धनबाद की अदालत की ओर से ठाकरे को जारी समन आदेश भी रद्द कर दिया।
अदालत ने कहा कि बोकारो की अदालत द्वारा 2008 में जारी समन आदेश को केंद्र या झारखंड सरकार की पूर्व मंजूरी के अभाव में बरकरार नहीं रखा जा सकता। हालांकि अदालत ने आईपीसी की धारा 153ए (विभिन्न समूहों आदि के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 153बी (राष्ट्रीय एकता के बारे में प्रतिकूल दावे) के तहत दर्ज आपराधिक शिकायत को रद्द करने से इनकार दिया।
वर्ष 2008 के इस मामले में ठाकरे ने विशेष रूप से बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाई जाने वाली “छठ पूजा” को कथित तौर पर “नाटक” और “शक्ति प्रदर्शन” करार दिया था। (एजेंसी)