farmers
File Photo

    Loading

    नई दिल्ली. आज यानी शनिवार को कृषि कानूनों (Farm Laws) के खिलाफ आंदोलन के दो साल पूरे होने के मौके पर अब किसान संघ (Farmers Protest) देश भर में राजभवनों तक अपना मार्च निकालेंगे। इस बाबत किसान नेताओं ने शुक्रवार को कहा कि, सरकार ने उनकी अब तक कई मांगें पूरी नहीं की हैं। इसलिए वे इस मार्च के जरिए किसान विरोध दर्ज कराएंगे। इतना ही नहीं इन किसान नेताओं ने यह भी दावा किया कि, सरकार ने उन्हें लिखित में जरुर दे दिया था कि वह चर्चा करके फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिए कानून लाएगी, लेकिन अब तक इस मामले पर कुछ नहीं किया गया। 

    क्या है न्यूनतम समर्थन मूल्य ?

    जानकारी दें कि, MSPयानि Minimum Support Price इसे हिंदी में न्यूनतम समर्थन मूल्य कहा जाता है। यह एक ऐसी प्रणाली है जिसके माध्यम से सरकार किसानों को एक निश्चित मूल्य पर उनकी उपज खरीदने की गारंटी देती है। वर्तमान में इस प्रणाली के तहत सरकार (Government) 23 कृषि उपजों (Agricultural produce) की खरीदी कर रही है। इनमें गेहूं, ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंग, मूंगफली, सोयाबीन, तिल और कपास शामिल हैं।

    कौन करता है निर्धारित ?

    इसे कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइसेस (Commission for agriculture cost and prices) के आंकड़ों के आधार पर भारत सरकार (Government of India) का ‘कृषि मंत्रालय’ (Ministry of Agriculture) न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करता है। एक कृषि उपज की गारंटी कृत कीमत पूरे देश में समान होती है। उदहारण के लिए, महाराष्ट्र (Maharashtra) में जीस दर से एक क्विंटल गेहूं खरीदा जाता है, उसी दर में उसे पंजाब में भी खरीदा जाता है। 

    हालांकि किसानों (Farmer protest) का मानना था कि, केंद्र सरकार द्वारा तब पारित किये इस नए कृषि कानून (Agriculture Law) से किसानों का ज्यादा संबंध निजी व्यापारियों (Private traders) से होगा और इससे सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य का महत्व कम हो जायेगा। वहीं सरकार ने बार-बार कहा था कि, न्यूनतम समर्थन मूल्य को बनाए रखा जाएगा, लेकिन किसानों को कहना था कि, गारंटी बनाए रखने के बावजूद, नए कानून के कारण प्रॅक्टिकली न्यूनतम समर्थन मूल्य का महत्व अपने आप कम होगा। हालांकि बाद में सरकार ने अपना फैलस अवापस ले लिया था।