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    नयी दिल्ली.  कांग्रेस (Congress) के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के विरोधी आज भले ही उनकी राजनीतिक सूझबूझ को लेकर सवाल खड़े करते हों, लेकिन उनकी दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) सिर्फ 14 साल की उम्र ही में उन्हें परिपक्व मानती थीं और उनके ‘साहस एवं दृढ़ संकल्प’ की कायल थीं।

    वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई की नई किताब ”लीडर, पॉलिटीशियन्स, सिटिजन्स” में यह दावा किया गया है। इस पुस्तक में यह भी कहा गया है कि जब राहुल गांधी 14 साल के थे तब इंदिरा गांधी उनसे उन सभी विषयों पर चर्चा करती थीं जिन पर वह अपने ज्येष्ठ पुत्र राजीव गांधी एवं पुत्रवधू सोनिया गांधी से बात करने से बचती थीं। लेखक ने इस पुस्तक में भारत के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करने वाली 50 हस्तियों से जुड़े घटनाक्रमों का संकलन किया है।

    साथ ही, देश की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद के दुखद क्षणों और गांधी एवं बच्चन परिवार के बीच घनिष्ठ संबंधों का भी स्मरण किया है। वह लिखते हैं, ‘‘अक्टूबर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के तुरंत बाद, नेहरू-गांधी परिवार के एक सदस्य अरुण नेहरू दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में, अपने बच्चों राहुल और प्रियंका के जीवन को लेकर चिंतित सोनिया गांधी से मिलने पहुंचे थे।” इसके बाद अरुण नेहरू राहुल और प्रियंका को अभिनेता अमिताभ बच्चन की मां तेजी बच्चन के गुलमोहर पार्क स्थित आवास पर ले गए। इंदिरा गांधी पर लिखे अध्याय में, किदवई ने उन क्षणों का विवरण दिया है जब तत्कालीन प्रधानमंत्री को उनके ही सिख सुरक्षाकर्मियों ने गोली मार दी थी।

    किदवई लिखते हैं, ”31 अक्टूबर 1984 की सुबह, इंदिरा गांधी ने अपने पोते राहुल और पोती प्रियंका को स्कूल जाने से पहले ही अलविदा कहा। प्रियंका गांधी, जो उस समय 12 वर्ष की थीं, ने बाद में बताया कि उस दिन उनकी दादी ने उन्हें सामान्य से ज्यादा देर तक अपने साथ रखा था। वह फिर राहुल के पास गई थीं।” उन्होंने लिखा है ‘‘इंदिरा गांधी के दिमाग में मौत का ख्याल बहुत पहले से था। राहुल की ओर मुड़कर उन्होंने उनसे ‘जिम्मेदारी संभालने’, उनकी मृत्यु पर नहीं रोने के लिए कहा था। यह पहली बार नहीं था जब इंदिरा ने अपने पोते से मौत के बारे में बात की थी।”

    लेखक के अनुसार, कुछ दिन पहले ही इंदिरा ने राहुल को अंतिम संस्कार की व्यवस्था के बारे में बताया था। राशिद किदवई ने कई किताबें लिखी हैं, जिनमें ”द हाउस ऑफ सिंधियाज : ए सागा ऑफ पावर, पॉलिटिक्स एंड इंट्रीग्यू”, ”बैलेट- टेन एपिसोड्स दैट हैव शेप्ड इंडियाज डेमोक्रेसी” और ”24, अकबर रोड” शामिल हैं। इस नयी किताब के अनुसार, ”वह उनकी अंतिम सुबह थी। इंदिरा गांधी को पीटर उस्तीनोव के साथ एक साक्षात्कार के बाद अपने आधिकारिक कामकाज की शुरुआत करनी थी।

    उस समय सुबह के नौ बजकर 12 मिनट हुए थे। कैमरे लगे हुए थे, जब एक चमकदार केसरिया रंग की साड़ी पहने इंदिरा गांधी ने अपने घर 1 सफदरगंज रोड और अपने कार्यालय 1 अकबर रोड के बीच बने गेट को पार किया। उनके गेट पार करते ही, पगड़ी वाले सुरक्षाकर्मी ने उनका अभिवादन किया। वह उसकी ओर देख कर मुस्कुराईं, तभी उन्होंने उसे बंदूक उनकी ओर (इंदिरा की ओर) तानते देखा।

    इंदिरा के लिए छाता पकड़ने वाला कांस्टेबल नारायण सिंह मदद के लिए चिल्लाया। लेकिन भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के सुरक्षाकर्मियों के मौके पर पहुंचने से पहले ही, हत्यारों- बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने उन्हें 36 गोलियां मार दीं।” गौरतलब है कि ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद इंदिरा गांधी को बुलेटप्रूफ जैकेट पहनने और अपने सिख सुरक्षाकर्मियों को हटाने की सलाह दी गई थी, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया था। किताब के मुताबिक, कुछ हफ्ते पहले इंदिरा ने गर्व से बेअंत सिंह की ओर इशारा करते हुए कहा था, ”जब मेरे आसपास उनके जैसे सिख हैं, तो मुझे किसी चीज से डरने की जरूरत नहीं है।”

    नेहरू-गांधी परिवार और बच्चन परिवार के बीच रिश्तों पर किदवई लिखते हैं, ”अमिताभ बच्चन मुश्किल से चार साल के थे जब उनका परिचय राजीव गांधी से हुआ, जो तब दो साल के थे। जब अमिताभ बच्चन एक सफल अभिनेता के रूप में उभरे, तो राजीव गांधी अक्सर सेट पर उनसे मिलने आते थे और शॉट पूरा होने तक धैर्यपूर्वक इंतजार करते थे।”

    जब अमिताभ बच्चन ने 1982 में एक घातक दुर्घटना का सामना किया, तो उनका और बच्चन परिवार का समर्थन करने वाले पहले लोगों में से एक इंदिरा गांधी थीं। अमेरिका के आधिकारिक दौरे से लौटने के तुरंत बाद इंदिरा मुंबई गई थीं। राजीव भी अपने दोस्त के लिए बेहद चिंतित थे। हालांकि, बोफोर्स से जुड़े हंगामे के बाद, इलाहाबाद से तत्कालीन सांसद अमिताभ बच्चन का राजनीति से मोहभंग हो गया। बच्चन ने अपने सम्मान के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और जीती। लेकिन वे राजनीति से अपने संबंध नहीं तोड़ सके।

    किदवई लिखते हैं कि इतना सब हो जाने के बावजूद, सोनिया गांधी का तेजी बच्चन से लगाव बरकरार रहा। तेजी ने सोनिया के 1968 में राजीव गांधी की मंगेतर के रूप में पहली बार दिल्ली आने पर उन्हें भारतीय रीति-रिवाज़ सिखाए थे। बच्चन परिवार के करीबी सूत्रों ने बताया था कि अक्टूबर 2004 में, अमिताभ की पत्नी जया बच्चन और राहुल गांधी के बीच इस बात को लेकर आरोप – प्रत्यारोप हुए कि किस परिवार ने किसे नीचा दिखाया तब तेजी बच्चन ने अपने बेटे अमिताभ से फौरन इस आग को बुझाने के लिए कहा था।

    तब जया बच्चन समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुकी थीं। किताब में शेख अब्दुल्ला, ज्योति बसु, शीला दीक्षित, राजीव गांधी, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, प्रणब मुखर्जी, अहमद पटेल, राजेश पायलट, पी वी नरसिम्हा राव, सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी और अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में भी विस्तार से बताया गया है। ”लीडर, पॉलिटीशियन्स, सिटिजन्स” पिछले सप्ताह बाजार में आई है। इसे ‘हैचेट इंडिया’ द्वारा प्रकाशित किया गया है।