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    नयी दिल्ली. दोपहर की एक बड़ी खबर के अनुसार भारत-फ्रांस (India-France) के बीच हुए राफेल लड़ाकू विमान सौदे (Rafale Deal) में एक बार फिर भ्रष्टाचार का जिन्न बाहर आ खड़ा हुआ है। जी हाँ, फ्रांस के एक पब्लिकेशन ‘मीडियापार्ट’ (MediaPart) ने अपनी कुछ रिपोर्ट्स में ये दावा किया है कि फ्रांसीसी कंपनी दसॉ एविएशन ने 36 एयरक्राफ्ट की डील के लिए एक बिचौलिए को 7.5 मिलियन यूरो कमीशन दिया था।  

    इतना ही नहीं मीडियापार्ट का ये भी कहना है कि इसके दस्तावेज होने के बावजूद भारतीय पुलिस ने इस मामले में जांच अब तक शुरू नहीं की है।  इसके साथ ही मीडियापार्ट ने इस हम खुलासे के साथ ये भी दावा किया कि इसके लिए बाकायदा फर्जी बिल बनाए गए।  वहीं पब्लिकेशन की मानें तो  कि बीते अक्टूबर 2018 से CBI और ED को भी इस बारे में पता था कि दसॉ एविएशन ने सुशेन गुप्ता नाम के बिचौलिए को 7.5 मिलियन यूरो (करीब 65 करोड़ रुपये) का कमीशन दे दिया था।  ये सब कंपनी ने इसलिए किया ताकि भारत के साथ 36 लड़ाकू विमान की डील जरुर से पूरी हो सके। 

    रिपोर्ट्स में दावा ये भी है कि सुशेन गुप्ता ने दरअसल दसॉ एविएशन (Dassault Aviation) के लिए इंटरमीडियरी के तौर पर काम किया। वहीं सुशेन गुप्ता की मॉरिशस स्थित कंपनी इंटरस्टेलर टेक्नोलॉजीस को 2007 से 2012 के बीच दसॉ से 7.5 मिलियन यूरो मिले थे।  पब्लिकेशन की मानें तो मॉरिशस सरकार ने 11 अक्टूबर 2018 को इससे जुड़े कई अहम् दस्तावेज CBI को दिए थे, जिसे बाद में CBI ने ED से भी साझा किया था। 

    2001 में दसॉ से भी जुड़ा रहा था सुशेन गुप्ता 

    वहीं मीडियापार्ट के मुताबिक 4 अक्टूबर 2018 को ही CBI को राफेल डील में भ्रष्टाचार होने की शिकायत मिली थी और इसके एक हफ्ते बाद ही उन्हें एक सीक्रेट कमीशन के दस्तावेज भी मिले थे, फिर भी CBI ने इस मामले में दिलचस्पी नहीं दिखाई।  पब्लिकेशन के मुताबिक दसॉ ने 2001 में सुशेन गुप्ता को बिचौलिए के तौर पर हायर किया था, जब भारत सरकार ने लड़ाकू विमान खरीदने का ऐलान भर किया था।  हालांकि, इसकी प्रक्रिया तो 2007 में शुरू हुई थी।  सुशेन गुप्ता इसके पहले अगस्ता वेस्टलैंड डील से भी जुड़ा रहा था। 

    इसके साथ ही CBI को मिले दस्तावेजों से ये साफ़ था कि सुशेन गुप्ता की शेल कंपनी को इस तरह से 2002 से 2006 के बीच 9.14 लाख यूरो मिले थे।  इसी प्रकार ही इंटरस्टेलर टेक्नोलॉजीस भी दरअसल ऐसी ही एक एक शेल कंपनी ही थी, जिसका न तो कोई ऑफिस था और न ही कोई कार्यशील कर्मचारी।  मीडियापार्ट की मानी तो ED के दस्तावेजों के मुताबिक सुशेन गुप्ता ने कहा था कि ऐसे और भी कई भारतीय अधिकारियों को भी दसॉ की ओर से पैसा बांटा गया है। दावा तो ये भी है कि 2015 में जब राफेल डील आखिरी दौर में थी, तब इसी सुशेन गुप्ता ने भारतीय रक्षा मंत्रालय से कुछ जरुरी और अतिमहत्वपूर्ण गोपनीय दस्तावेज भी हासिल किए थे। 

    कांग्रेस ने उठाई थी आवाज 

    हालाँकि लोकसभा चुनाव 2019 से पहले कांग्रेस ने राफेल लड़ाकू विमान की दरों और कथित भ्रष्टाचार सहित इस सौदे को लेकर कई बड़े सवाल खड़े किये थे, लेकिन मोदी सरकार ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था। गौरतलब है कि तब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा था।