बैठक में भाजपा प्रतिनिधिमंडल ने पाक के साथ बातचीत का विरोध किया

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    नयी दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को “बढ़ावा” बंद करने तक पाकिस्तान के साथ बातचीत का विरोध करते हुए भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने बृहस्पतिवार को यहां एक सर्वदलीय बैठक में कहा कि पड़ोसी देश के साथ बातचीत की मांग करने वालों को हिंसा के पीड़ितों से मिलकर उनके दर्द को समझना चाहिए। प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व जम्मू-कश्मीर भाजपा के अध्यक्ष रवींदर रैना कर रहे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू कश्मीर के बारे में चर्चा करने के लिए यह बैठक बुलाई थी जिसमें केंद्रशासित प्रदेश के 14 नेताओं ने भाग लिया।

    रैना ने बैठक सताप्त होने के बाद पीटीआई-भाषा से कहा कि प्रतिनिधिमंडल ने जम्मू-कश्मीर से “पाकिस्तान, अलगाववाद और आतंकवाद की भावना” को खत्म करने के प्रयासों में तेजी लाने का आह्वान किया ताकि वहां के लोगों को शांतिपूर्ण माहौल मिल सके जो अपने “दिल, खून और डीएनए” से भारतीय हैं।

    उन्होंने कहा कि भाजपा की तीन सदस्यीय टीम ने कश्मीरी प्रवासी पंडित समुदाय के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत के लिए एक शीर्ष समिति के गठन पर बल दिया ताकि उनकी कश्मीर घाटी में जल्द से जल्द गरिमापूर्ण वापसी और पुनर्वास हो सके। प्रतिनिधमंडल में दो पूर्व उपमुख्यमंत्री – निर्मल सिंह और कविंदर गुप्ता भी शामिल थे।

    भाजपा नेता ने कहा कि उन्होंने जम्मू कश्मीर के प्रमुख नेताओं के साथ बातचीत कर राजनीतिक गतिरोध समाप्त करने के गंभीर प्रयासों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया।

    रैना ने बैठक में कहा, ‘‘प्रधानमंत्री जम्मू कश्मीर के लोगों के दिल की धड़कन को समझते हैं क्योंकि वह लंबे समय तक उनके बीच रहे हैं, और उनका दर्द भी जानते हैं… पाकिस्तान के साथ बातचीत करने की बात करने वालों को पता होना चाहिए कि इस्लामाबाद को छोड़कर हर देश के साथ भारत के अलावा अच्छे संबंध हैं और पाकिस्तान ने पिछले 35 वर्षों में आतंकवाद को बढ़ावा देकर जम्मू-कश्मीर को लहूलुहान कर दिया है।” उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) और पाकिस्तान में आतंकवादियों के लिए प्रशिक्षण शिविर अभी भी चल रहे हैं और ऐसे में भारत सरकार की नीति स्पष्ट है कि हथियार और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते।

    भाजपा नेता ने कहा, “पाकिस्तान के साथ बातचीत की मांग करने वालों को पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के शिकार लोगों के दुख को समझना चाहिए। उन लोगों को ऐसे पीड़ितों से मिलना चाहिए और पूछना चाहिए कि क्या हमें पाकिस्तान के साथ बातचीत करनी चाहिए और उनकी प्रतिक्रिया देखनी चाहिए।” उन्होंने कहा कि “कश्मीरी पंडितों, सिखों और राष्ट्रवादी मुसलमानों को पाकिस्तानी हथियारों के कारण 1990 में घाटी में अपने घरों से भागना पड़ा और उन्हें देश के विभिन्न हिस्सों में पलायन करना पड़ा।(एजेंसी)