21 साल की अमिका जार्ज MBE पदक से सम्मानित, ‘फ्री पीरियड प्रोडक्ट’ के लिए  मिला अवार्ड

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    नयी दिल्ली. पिछले चार साल से भारतीय मूल (Indian Origin) की अमिका जॉर्ज ब्रिटेन (Amika George) में अपनी हमउम्र लड़कियों की परेशानियों को दूर करने के लिए काम कर रही हैं। उनके प्रयासों का नतीजा है कि ब्रिटिश सरकार (UK Government) ने पिछले वर्ष शैक्षणिक संस्थानों में लड़कियों को महीने के मुश्किल दिनों में काम आने वाला सामान मुफ्त दिलाने का बंदोबस्त किया और जॉर्ज को इस वर्ष ‘ब्रिटिश एम्पायर अवार्ड’ (British Empire Award) के लिए चुना गया है।

    इससे भी बड़ी बात यह है कि उन्होंने सबसे कम उम्र में यह पुरस्कार हासिल किया है।  कैंब्रिज विश्वविद्यालय में इतिहास की पढ़ाई करने वाली जॉर्ज का कहना है कि भारत के औपनिवेशिक इतिहास को देखते हुए उनके लिए यह पुरस्कार ग्रहण करना आसान नहीं था, लेकिन फिर उन्होंने अपने परिवार और समुदाय की तरफ से इस पुरस्कार को लेने का फैसला किया। वह कहती हैं, ‘‘दरअसल मेरे लिए यह दिखाना बहुत जरूरी था कि युवाओं की आवाज में कितनी ताकत होती है, उससे कहीं ज्यादा जितना हम सोचते हैं। राजनीतिक हलकों में हमें भले अनदेखा किया जाता है, लेकिन इस अवार्ड ने यह दिखा दिया है कि हमें धीरे-धीरे बदलाव लाने वालों के तौर पर देखा जा रहा है, जो सरकार को भी प्रभावित कर सकते हैं।”  ब्रिटेन सरकार द्वारा जारी की गई एक विज्ञप्ति के अनुसार इस वर्ष 1,129 लोगों को महारानी के जन्मदिन पर दिए जाने वाले ‘ब्रिटिश एम्पायर अवार्ड’ के लिए चुना गया है। पुरस्कार पाने वालों में आधी महिलाएं हैं और 15 प्रतिशत जातीय अल्पसंख्यक हैं।  

    विज्ञप्ति के अनुसार, ‘‘इस वर्ष की सूची जातीय लिहाज से अब तक की सबसे विविधता वाली सूची है।” ‘फ्री पीरियड कैंपेन’ नाम से अभियान चलाने वाली जॉर्ज को शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए एमबीई (मेम्बर ऑफ द आर्डर ऑफ द ब्रिटिश अंपायर) देने का फैसला किया गया। जॉर्ज बताती हैं कि उन्होंने 17 साल की उम्र में एक लेख पढ़ा, जिससे उन्हें पता चला कि ब्रिटेन में ऐसी बहुत सी लड़कियां हैं, जिन्हें हर महीने मासिक धर्म के दिनों में स्कूल से छुट्टी लेनी पड़ती है क्योंकि उनके पास इन मुश्किल दिनों में काम आने वाला जरूरी सामान नहीं होता था और वे इसे खरीदने में असमर्थ थीं। इस जानकारी ने जॉर्ज को विचलित कर दिया और उन्होंने इस दिशा में कुछ करने का मन बना लिया।

    2017 के अंत में डाउनिंग स्ट्रीट के सामने इस मुद्दे को उठाते हुए विरोध प्रदर्शन किया गया, जिसमें 2000 से ज्यादा लोगों ने शिरकत की। इस दौरान एक याचिका पर 1,80,000 लोगों ने दस्तख्त किए।  फिर तो यह सिलसिला चल निकला और अगले तीन साल सरकार के मंत्रियों को ज्ञापन, विरोध प्रदर्शन और लोगों को इस मुद्दे के प्रति जागरूक करने में गुजरे। जॉर्ज के इन प्रयासों का ही परिणाम था कि वर्ष 2020 में सरकार ने स्कूलों को लड़कियों की माहवारी के लिए जरूरी सामान खरीदने के वास्ते धन मुहैया कराने का आदेश दिया।

    कोविड के दौरान इस अभियान को रफ्तार पकड़ने में थोड़ा वक्त लग सकता है, लेकिन जॉर्ज को उम्मीद है कि हालात बेहतर होंगे। पिछले तीन साल से दुनियाभर में अखबारों की सुर्खियां और ढेरों पुरस्कार जीत चुकीं जॉर्ज के कॉलेज की प्रेजिडेंट डेम बारबरा स्टॉकिंग ने जॉर्ज को यह प्रतिष्ठित अवार्ड मिलने पर कहा, ‘‘हमें अमिका पर बहुत गर्व है। उनके प्रयासों से यह सुनिश्चित हो सकेगा कि कोई भी लड़की माहवारी के दिनों में सिर्फ इसलिए स्कूल से छुट्टी नहीं लेगी कि उसके पास सैनिटरी पैड खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। अमिका के प्रयास प्रेरणादायक हैं।”