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    सीमा कुमारी

    नयी दिल्ली.झारखंड (Jharkhand) राज्य का गठन आज से 20 साल पहले 15 नवंबर, 2000 किया गया था। यानी, झारखंड राज्य इस दिन आधिकारिक तौर पर अस्तित्व में आया था।बिहार को विभाजित कर झारखंड नाम से एक नए राज्य का निर्माण किया गया। इसके निर्माण में तात्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का अहम योगदान रहा। नए राज्य के सृजन के बाद इसके पहले राज्यपाल और मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य क्रमशः प्रभात कुमार और बाबूलाल मरांडी को मिला। अलग राज्य बनने के बाद हर साल 15 नवंबर को धूमधाम से स्थापना दिवस मनाया जाता है। लेकिन कोरोना के कारण 21वें स्थापना दिवस पर सिर्फ रश्मअदायगी की जा रही है।

    झारखंड पार्टी के गठन के बाद अलग राज्य की उठी मांग

    झारखंड क्षेत्र के आदिवासियों की अपनी अलग पहचान और संस्कृति रही है। राजनैतिक स्तर पर 1938 में जयपाल सिंह के नेतृत्व में झारखंड पार्टी का गठन हुआ। इसके बाद अलग राज्य की मांग ने जोर पकड़ा। पहले आमचुनाव में सभी आदिवासी जिलों में झारखंड पार्टी की दमदार उपस्थिति रही। जब राज्य पुनर्गठन आयोग बना तो झारखंड की भी मांग हुई जिसमें तत्कालीन बिहार के अलावा ओडिसा और पश्चिम बंगाल का भी क्षेत्र शामिल था। आयोग ने इस क्षेत्र में कोई एक आम भाषा न होने के कारण झारखंड के दावे को खारिज कर दिया। 1950 के दशक में ‘झारखंड पार्टी’ की बिहार में सबसे बड़ी विपक्षी दल की भूमिका रही। लेकिन बाद में इसकी शक्ति क्षीण होने लगी। झारखंड आंदोलन को सबसे बड़ा आघात 1963 में पहुंचा जब जयपाल सिंह ने झारखंड पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया।

     अटल बिहारी वाजपेयी की अविस्मरणीय भूमिका

    ‘झारखंड’ राज्य के गठन  में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) का अहम योगदान रहा।1980 में ‘भारतीय जनता पार्टी’ (BJP) की स्थापना हुई। अटल बिहारी वाजपेयी इसके पहले अध्यक्ष बने। 1984 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार हुई। इसके बाद झारखंड क्षेत्र में भाजपा का जनाधार बढ़ाने के लिए यहां के नेताओं- इंदर सिंह नामधारी और समरेश सिंह ने अलग झारखंड राज्य की मांग को भाजपा के एंजेंडे में शामिल करने का सुझाव दिया। इस सुझाव को भाजपा ने अपने एजेंडे में शुमार किया। हालांकि नाम अलग था। झारखंड के बजाय भाजपा ने अलग वनांचल राज्य निर्माण के लिए आंदोलन शुरू किया।

    इस आंदोलन के बल पर भाजपा ने झारखंंड के आदिवासियों में अपनी पैठ बनाई। विश्वास दिलाया कि वह झारखंड नामधारी दलों की तरह अलग राज्य के आंदोलन को बेचेंगे नहीं। 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में झारखंड क्षेत्र की 14 में 12 सीटें भाजपा जीत गई। केंद्र में भाजपा की सरकार बनी। अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। इसके बाद भाजपा ने अपना वादा निभाया। नाम को लेकर विवाद था। ‘झारखंड मुक्ति मोर्चा’ समेत तमाम झारखंड नामधारी दल चाहते थे कि राज्य का नाम ‘झारखंड’ हो।

    भाजपा ‘वनांचल प्रदेश’ के पक्ष में थी। अंत में विवाद को समाप्त करने के लिए भाजपा ने ‘झारखंड’ नामधारी दलों की बात मान ली। केंद्र की वाजपेयी सरकार ने लोकसभा और राज्यसभा में राज्य पुनर्गठन विधेयक के माध्यम से देश में तीन नए राज्यों-उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और झारखंड का निमार्ण किया।झारखंड की जनता की मांग को कांग्रेस पचास साल तक ठुकराती रही। लेकिन भाजपा के बड़े नेता और प्रधानमंत्री अलट बिहारी वाजपेयी ने एक झटके में ही ‘झारखंड’ राज्य का निर्माण कर डाला।