Lal Bahadur Shastri

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    नई दिल्ली. आज 2 अक्टूबर, लाल बहादुर शास्त्री की 117वीं जयंती। शास्त्रीजी का जन्म उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में 2 अक्टूबर 1904 को शारदा प्रसाद और रामदुलारी देवी के घर हुआ था। अपनी सादगी के लिए मशहूर लाल बहादुर शास्त्रीजी को कुशल नेतृत्व और जनकल्याणकारी विचारों के लिए हमेशा याद किया जाता है। शास्त्रीजी जैसी सादगी वाला अभी तक देश में कोई भी दूसरा प्रधानमंत्री नहीं हुआ। देश की आजादी में उनका का खास योगदान है। वे साल 1920 में शास्त्रीजी भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल हुए थे।

    शास्त्रीजी अपनी साफ सुथरी छवि, सादगी और विनम्रता के लिए प्रसिद्ध थे। और उनके इसी स्वभाव के ही लोग कायल थे। उन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद 9 जून 1964 को प्रधानमंत्री का पदभार ग्रहण किया था। वह करीब 18 महीने तक देश के प्रधानमंत्री रहे।

    लाल बहादुर शास्त्री द्वारा दिया गया ‘जय जवान जय किसान’ नारा आज के परिप्रेक्ष्य में भी सटीक और सार्थक है। उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों की सेवा में समर्पित कर दिया था। 1921 के असहयोग आंदोलन, 1930 के दांडी मार्च और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में शास्त्रीजी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

    आजादी के बाद शास्त्रीजी 1951 में नई दिल्ली आ गए एवं केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई विभागों का प्रभार संभाला। वह रेल मंत्री, परिवहन एवं संचार मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, गृह मंत्री एवं नेहरू जी की बीमारी के दौरान बिना विभाग के मंत्री रहे।

    शास्त्रीजी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके शासनकाल में 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ। इससे तीन वर्ष पूर्व चीन का युद्ध भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी। उस समय युद्ध के दौरान देश में भयंकर सूखा पड़ा था और खाने की चीजों को निर्यात किया जाने लगा। संकट को टालने के लिए उन्होंने देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने की अपील की। साथ ही कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए उन्होंने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया।

    11 जनवरी 1966, ये वो दिन है जब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमयी मौत हुई थी। शास्त्रीजी 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद संघर्ष विराम के समझौते पर हस्ताक्षर करने ताशकंद गए थे। जिस दिन (10 जनवरी, 1966) उन्होंने समझौते के मसौदे पर हस्ताक्षर किए, उसके अगले ही दिन रहस्यमय ढंग से उनकी मौत हो गई।

    शास्त्रीजी की मौत का कारण हार्ट अटैक बताया गया, जबकि उनके निजी चिकित्सक डॉ. आरएन चुघ ने कहा- वे पूरी तरह स्वस्थ थे और ऐसी कोई आशंका नहीं थी। उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने जब अंतिम दर्शन किए तो देखा कि शास्त्रीजी की देह नीली पड़ चुकी थी। जिससे खाने में जहर देने का अंदेशा पैदा हुआ।

    एक प्रधानमंत्री की संदिग्ध मौत ने दुनियाभर में सनसनी फैला दी। सवाल उठते देख जांच शुरू हुई। जिस दिन शास्त्रीजी की मौत हुई उस रात दो लोग, उनके चिकित्सक डॉ. चुघ और सेवक रामनाथ उनके साथ थे। वे ही हकीकत के गवाह थे। मगर बाद में डॉ. चुघ की सड़क हादसे में संदिग्ध मौत हो गई और रामनाथ का सिर अज्ञात कार ने कुचल दिया जिससे उनकी स्मृति चली गई। इन हादसों से शास्त्रीजी की हत्या का संदेह और गहरा गया। जनता से गहरा जुड़ाव रखने वाले प्रधानमंत्री की मृत्यु का रहस्य आज तक नहीं सुलझ सका। अब भी ताशकंद का नाम आते ही शास्त्रीजी की याद आती है।